आगरा: श्री श्वेताम्बर स्थानकवासी जैन ट्रस्ट, आगरा के तत्वावधान में जैन स्थानक महावीर भवन में चल रही चातुर्मासिक कल्प आराधना की श्रृंखला में रक्षा बंधन के पावन पर्व पर आध्यात्मिक और भौतिक ज्ञान की गंगा प्रवाहित हुई। इस अवसर पर जैन संतों ने करुणा, ज्ञान, विनय और आत्मसंयम के विविध आयामों पर प्रकाश डाला
भगवान महावीर की करुणा यात्रा पर जय मुनि जी का उद्बोधन
आगम ज्ञान रत्नाकर बहुश्रुत श्री जय मुनि जी महाराज ने भगवान महावीर की करुणा को मानवता के लिए वरदान बताया। उन्होंने कहा कि महावीर ने ज्ञान रूपी करुणा से जन-जन का उद्धार किया। संयमित ध्यान को ही शुक्ल ध्यान बताते हुए उन्होंने जप और त्याग को जीवन में शांति का मार्ग बताया।
पूज्य श्री ने ज्ञान के पाँच प्रकारों—मतिज्ञान, श्रुतज्ञान, अवधिज्ञान, मनः पर्यवज्ञान और केवलज्ञान—का विश्लेषण करते हुए बताया कि केवलज्ञान ही आत्मा का पूर्ण ज्ञान है, जिसमें अन्य सभी ज्ञान विलीन हो जाते हैं।
रक्षा बंधन का सांस्कृतिक और आध्यात्मिक विश्लेषण
गुरु हनुमंत, हृदय सम्राट पूज्य श्री आदीश मुनि जी ने रक्षा पर्व की ऐतिहासिक पृष्ठभूमि पर प्रकाश डालते हुए बताया कि प्राचीनकाल में ब्राह्मण, क्षत्रिय और वैश्य वर्गों में रक्षा सूत्र का आदान-प्रदान सुरक्षा और सहयोग का प्रतीक था। उन्होंने कहा कि आज के भौतिक युग में भाई-बहन का संबंध स्वार्थ की छाया में आ गया है, जबकि यह प्रेम और कर्तव्य का पवित्र बंधन है। उन्होंने श्रावण पूर्णिमा पर एक-दूसरे के लिए मंगलकामना और शुद्ध भावों की महत्ता पर बल दिया।
विनय पर आदित्य मुनि का प्रेरक प्रवचन
आदित्य मुनि जी ने ‘विनय’ विषय पर बोलते हुए कहा कि सुसंस्कारों से बच्चों को विनीत बनाया जा सकता है। अविनीत व्यक्ति समाज में तिरस्कृत होता है, जबकि विनम्र व्यक्ति हर स्थान पर सम्मान पाता है। उन्होंने विनय को सामाजिक सौहार्द और आत्मविकास का मूल बताया।
धर्मसभा का समापन और तपस्या की झलक
धर्मसभा के अंत में जय मुनि जी ने “श्री सुविधिनाथाय नमः” का जाप कराया और आज के त्याग—जामुन, जलेबी, जलजीरा, झूठा न छोड़ने की शपथ दिलाई।
तपस्या के क्रम में बालकिशन जी का 31वाँ आयंबिल, सुनीता कुमारी की 13वीं वृत्ति का सातवाँ दिन, और श्रीमती संतोष जी का चौथा उपवास जारी है, जो श्रद्धा और आत्मसंयम का प्रतीक है।