दीपावली की तारीख़ को लेकर फैले भ्रम को ज्योतिषाचार्यों ने किया दूर, इस समय पूजन करना शुभ फलदायी होगा

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लखनऊ। कार्तिक कृष्ण चतुर्दशी तिथि को नरक चतुर्दशी  और रूप चतुर्दशी मनाए जाने की परंपरा है। चतुर्दशी तिथि बुधवार को दोपहर 1:05 बजे शुरू होगी और 31 अक्तूबर गुरुवार को दोपहर 3:52 बजे समाप्त होगी।

आचार्य एसएस नागपाल ने बताया कि रूप चतुर्दशी के दिन सूर्याेदय से पहले उठकर तिल के तेल से मालिश करके स्नान करना चाहिए। इसके बाद भगवान श्रीकृष्ण के समक्ष दीपक जलाकर लंबी आयु और आरोग्य की प्रार्थना करनी चाहिए। शाम को महालक्ष्मी और कुबेर के समक्ष भी दीप प्रज्ज्वलित कर उनके मंत्रों का जाप करना चाहिए। आर्थिक समृद्धि की प्रार्थना करें। शाम के समय यमराज के निमित्त भी दीप दान करना चाहिए। इस बार नरक चतुर्दशी पर यम के समय दीपक प्रज्ज्वलित करने का समय शाम 05:30 से 07:02 बजे के बीच है। इस समय दीपदान शुभ फलदायी होगा।

दीपावली 31 अक्तूबर को मनाएं या 1 नवंबर को, इसको लेकर चल रहे भ्रम को प्रमुख ज्योतिषाचार्यों ने दूर किया है। ज्योतिषाचार्यों के मुताबिक 31 अक्तूबर को दीपावली मनाना उत्तम होगा। 31 को सूर्यास्त के डेढ़ घंटे बाद लक्ष्मी और गणेश पूजा का मुहूर्त शुरू होगा। विशेष मुहूर्त शाम 6:48 से 8:18 बजे के बीच। सूर्यास्त के बाद पूरी रात पूजन के लिए अच्छा समय रहेगा।

दीपावली के मुहूर्त को लेकर फैले भ्रम को दूर करने के लिए केंद्रीय संस्कृत विश्वविद्यालय के आचार्यों की मौजूदगी में विभिन्न राज्यों और नेपाल के प्रमुख ज्योतिषाचार्यों की मंगलवार को ऑनलाइन बैठक हुई। करीब ढाई घंटे तक यह बैठक चली। लखनऊ परिसर के निदेशक प्रो. सर्वनारायण झा ने बताया कि धर्मशास्त्र निर्णय सिंधु में रजनी शब्द का इस्तेमाल हुआ है। इस शब्द के अर्थ को लेकर भ्रम के चलते कुछ विद्वानों ने एक नवंबर को दीपावली का निर्धारण किया है, जो गलत है।

प्रो. झा के मुताबिक रात के आदि और अंत के डेढ़-डेढ़ घंटे को छोड़कर रजनी काल होता है। यानी बीच के नौ घंटे का समय ही रजनी काल कहलाता है। इसलिए दीपावली 31 अक्तूबर को मनाना उत्तम रहेगा। ऑनलाइन बैठक में दरभंगा से प्रो. शिवाकांत झा, लखनऊ से प्रो. मदनमोहन पाठक, तिरुपति से प्रो. श्रीपाद भट्ट, नागपुर से प्रो. कृष्णकांत पांडेय, कर्नाटक से प्रो. हंसधर झा आदि शामिल रहे।

साभार सहित




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