एटा (आगरा) चोरी गए ट्रकों के चैसिस नंबर बदलकर बेचने वाले गिरोह के दो आरोपितों को एसटीएफ ने गिरफ्तार कर लिया। इनके कब्जे से दो ट्रक भी मिले हैं। गिरोह में एटा के तीन आरोपित शामिल हैं, जिनमें से दो पकड़ में आ चुके हैं। आरोपित अंतरराज्यीय माड्यूल से जुड़े हैं, चोरी के ट्रक उत्तराखंड, आंध्र प्रदेश व उड़ीसा सहित अन्य प्रांतों में भी दौड़ रहे हैं। एसटीएफ की टीम गिरफ्तार किए गए आरोपितों को अपने साथ ले गई और पूछताछ की जा रही है।
लखनऊ एसटीएफ के पास सूचना थी कि एटा शहर के मुहल्ला नेहरू नगर निवासी प्रेमपाल का पुत्र पंकज राठौर तथा कोतवाली देहात के गांव नगला पुरबिया निवासी विनोद प्रकाश शर्मा का पुत्र मनीष शर्मा दो ट्रकों के चैसिस नंबर बदलकर उन्हें बेचने के लिए कासगंज जनपद के थाना ढोलना क्षेत्र क गांव भगवंतपुर गए हैं। इस पर एसटीएफ की टीम ने अपना जाल बिछा दिया और रविवार को दोनों आरोपितों को गिरफ्तार कर लिया तथा ट्रक भी बरामद कर लिए। एसटीएफ की टीम नगला पुरबिया और नेहरू नगर भी गई। जहां से आरोपितों के बारे में जानकारी जुटाई गई। पुलिस सूत्रों ने बताया कि आरोपितों ने कई अहम जानकारियां एसटीएफ को दी हैं। 38 वर्षीय आरोपित पंकज और 42 वर्षीय आरोपित मनीष शर्मा ने पूछताछ के दौरान एसटीएफ को जानकारी दी कि बरामद किए गए ट्रक उत्तराखंड प्रांत के नैनीताल जनपद के रामनगर निवासी मोहम्मद दानिश ने दिए थे, जिनके चैसिस नंबर बदल दिए गए और इन्हें बेचने की तैयारी थी। मामले में आधा दर्जन आरोपितों के खिलाफ एसटीएफ ने ढोलना थाने में एफआइआर दर्ज कराई है।चोरी के ट्रक बेचने वाले गिरोह में कोतवाली देहात क्षेत्र के गांव नगला भजा निवासी पंजाबी सिंह भी शामिल है। जो ट्रक बरामद हुए हैं उनके कागजात पूछताछ के दौरान पकड़े गए आरोपितों ने पंजाबी सिंह के पास ही बताए हैं।
ऐसे बदलते थे चैसिस नंबरः चैसिस नंबर बदलकर चोरी के ट्रक खपाने वाले गिरोह से जुड़े लोग बेहद शातिर हैं। पकड़े गए आरोपितों ने एसटीएफ को जानकारी दी कि चोरी के ट्रक को सुरक्षित ठिकाने पर खड़ा कर ग्राइंडर से असली चैसिस नंबर को घिस देते थे। फिर पतली सुम्मी से नया चैसिस नंबर डाल देते थे। इंजन नंबर पर लगाई गई कंपनी की पत्ती को हटाकर दूसरी पत्ती लगा दी जाती थी। विभिन्न जिलों के एआरटीओ कार्यालयों से गिरोह की दूसरी टुकड़ी कागजात तैयार कराती थी। यह कागजात पहले से ही तैयार मिलते थे। फर्जी कागजात तैयार कराने की जिम्मेदारी एटा के जितेंद्र और औरैया के इसरार चौधरी की होती थी। नए इंजन नंबर और चैसिस नंबर के आधार पर एआरटीओ दफ्तर में आसानी से रजिस्ट्रेशन हो जाता था। सांठ-गांठ करके एनओसी भी प्राप्त कर लेते थे।