आगरा में ‘अशांत’ शांति और धारा-163 का ‘महापर्व’

स्थानीय समाचार

खबर है कि आगरा कमिश्नरेट में ‘शांति’ और ‘कानून-व्यवस्था’ बनाए रखने के लिए एक ‘महाअभियान’ शुरू हो गया है. अपर पुलिस आयुक्त, रामबदन सिंह जी, ने फरमाया है कि आने वाले त्योहारों – रक्षाबंधन (9 अगस्त), स्वतंत्रता दिवस (15 अगस्त), और श्रीकृष्ण जन्माष्टमी (16 अगस्त) को सकुशल संपन्न कराने के लिए, और वक्फ (संशोधन) विधेयक-2024 की ‘सुरक्षा’ के लिए, भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता की धारा-163 लागू कर दी गई है. यह आदेश 17 अगस्त तक प्रभावी रहेगा. और हां, उल्लंघन करने पर भारतीय न्याय संहिता की धारा 223 के तहत दण्डनीय अपराध होगा.

अब यहां सवाल यह नहीं कि धारा-163 क्यों लागू की गई, सवाल यह है कि क्या आगरा में कभी ‘शांति’ बिना धारा-163 के रह ही नहीं सकती? क्या यहां का ‘शांति व्यवस्था’ तंत्र इतना कमजोर है कि हर त्योहार पर उसे एक डंडे की जरूरत पड़ती है?

त्योहारी ‘बंदिशें’ और ‘असामाजिक’ तत्वों का डर!

प्रेस विज्ञप्ति बताती है कि ‘विश्वस्त सूत्रों’ से सूचना मिली है कि ‘कुछ असामाजिक तत्व’ आगरा की शांति व्यवस्था भंग करने का प्रयास कर सकते हैं. वे ‘जनभावना को उद्द्वेलित करके भड़का’ सकते हैं, और ‘शांत व्यवस्था भंग हो सकती है’. तो क्या हमारी पुलिस इतनी ‘कमजोर’ है कि उसे हर असामाजिक तत्व से इतना डर लगता है कि वह पूरे शहर पर धारा-163 थोप देती है? क्या यह ‘असामाजिक’ तत्व हर साल त्योहारों के मौसम में ही प्रकट होते हैं?

और देखिए, ‘जनभावना को उद्द्वेलित’ करने का डर! क्या हमारी जनता इतनी भोली है कि उसे कोई भी ‘असामाजिक तत्व’ आसानी से भड़का सकता है? या फिर ये धाराएं इसलिए लगाई जाती हैं, ताकि जनता अपनी ‘भावनाओं’ को खुलकर व्यक्त न कर सके?

‘रामराज’ में ‘परीक्षा’ और ‘ड्रोन’ का खतरा!

अरे हां! 27 जुलाई को समीक्षा अधिकारी/सहायक समीक्षा अधिकारी (प्रा.) परीक्षा-2023 भी है. आगरा के 76 परीक्षा केंद्रों पर यह परीक्षा होगी. तो धारा-163 सिर्फ त्योहारों के लिए नहीं, परीक्षा को ‘निर्विवाद व सुचितापूर्ण’ संपन्न कराने के लिए भी है. क्या परीक्षा केंद्रों के 100 मीटर के दायरे में 5 से अधिक लोग इकट्ठा होने से ‘सुचिता’ भंग हो जाती है? क्या प्रदर्शन, झांकी, जुलूस, ईंट-पत्थर, सोडावाटर की बोतल, पर्चे, पम्पलेट और अफवाहें सिर्फ ‘असामाजिक’ तत्व ही फैलाते हैं, या कभी-कभी तो ‘आम आदमी’ भी?

पुलिस दुवारा जारी प्रेस विज्ञप्ति में ड्रोन नियमावली 2021 (यथा संशोधित 2023) का शत-प्रतिशत अनुपालन करने की भी बात कही गई है. अगर कोई ड्रोन संचालक/मालिक नियम का उल्लंघन करता है, तो ‘आवश्यक वैधानिक कार्यवाही’ होगी. क्या ‘असामाजिक तत्वों’ के पास ड्रोन भी होते हैं? या फिर ड्रोन का बहाना सिर्फ ‘वीवीआईपी/विशिष्ट महानुभावों’ की सुरक्षा के लिए है, ताकि कोई ‘अनचाही’ तस्वीर न उतर जाए?

ध्वनि प्रदूषण’ का ‘राग’ और ट्रैफिक जाम का ‘महाभारत’!

वाह! ‘ध्वनि प्रदूषण’ विनियमन एवं नियंत्रण नियम-2000 का भी जिक्र है. डीजे वाले भैया अब 75/70, 65/55, 55/45 और 50/40 डेसीबल के गणित में उलझे रहेंगे. क्या आगरा में ध्वनि प्रदूषण सिर्फ डीजे से होता है? क्या सड़कों पर चलने वाले अनगिनत हॉर्न, उद्योगों का शोर और नेताओं की चुनावी सभाएं ‘ध्वनि प्रदूषण’ नहीं करतीं?
और ट्रैफिक जाम का ‘महाभारत’! शहर/देहात में प्रदूषण, जाम, सड़कों पर विभिन्न निर्माण कार्य और मेट्रो निर्माण कार्य. इन सबके चलते ‘बैण्ड बाजे के साथ चलने वाली साउण्ड ट्रॉली को पूर्णरूप से प्रतिबंधित’ कर दिया गया है. तो क्या आगरा का जाम सिर्फ बैंड बाजे की वजह से लगता है? क्या मेट्रो का काम, सड़कों के गड्ढे और बेतरतीब ट्रैफिक व्यवस्था जाम नहीं करती? क्या यह सिर्फ बैंड बाजे वालों पर ‘गाज’ गिराने का एक आसान तरीका नहीं है?

अपर पुलिस आयुक्त ने यह भी कहा है कि ‘जनहित में तत्काल इस कार्यवाही को किया जाना आवश्यक है तथा इतना समय नहीं है कि किसी व्यक्ति अथवा व्यक्तियों के समूह को नोटिस दिया जा सके, अतः यह आदेश एक पक्षीय पारित किया जा रहा है.’ तो क्या आगरा की जनता इतनी नादान है कि उसे यह सब समझाने का भी समय नहीं है?

आखिर में, एक सवाल जो समझ नहीं आता, वह यह है कि लोग त्योहारों पर इकट्ठा होते हैं, एक-दूसरे से मिलते हैं, खुशियां बांटते हैं, जबकि आगरा पुलिस हर त्योहार पर यही धारा लागू कर देती है. इससे तो ऐसा लगता है कि लोग एक-दूसरे से मिलें ही नहीं, इकट्ठा ही न हों. क्या यह ‘त्योहारों’ पर ‘धारा-163’ का एक नया ‘महापर्व’ है, जहां ‘शांति’ के नाम पर ‘स्वतंत्रता’ ही छीन ली जाती है? और क्या हमारे ‘असामाजिक तत्व’ इतने शक्तिशाली हैं कि उन्हें रोकने के लिए पूरे शहर को ‘बांधना’ पड़ता है? या फिर यह ‘पुलिसिया दंभ’ है, जहां हर समस्या का इलाज सिर्फ ‘प्रतिबंध’ है?

-मोहम्मद शाहिद की कलम से

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