Agra News: धार्मिक और सामाजिक सेवा के नाम पर करोड़ों की ठगी, ट्रस्ट का पर्दाफाश, एक गिरफ्तार, दो फरार

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आगरा। धार्मिक और सामाजिक सेवा का दिखावटी आवरण ओढ़कर बड़े पैमाने पर की जा रही आर्थिक ठगी का एसटीएफ और एटीएफ ने भंडाफोड़ कर दिया है। जांच में सामने आया कि एक कथित धार्मिक ट्रस्ट वर्षों से यूपी और बिहार के कई जिलों—लखनऊ, देवरिया, आगरा और बिहार—में बार-बार ठिकाना बदलकर साइबर-फाइनैंशल नेटवर्क चला रहा था। धार्मिक आयोजन और दान की अपील केवल दिखावा थे, जबकि पर्दे के पीछे करोड़ों रुपये का साइबर फ्रॉड संचालित किया जा रहा था।

धार्मिक ट्रस्ट की ओट में साइबर-फाइनैंशल रैकेट

एसटीएफ इंस्पेक्टर यतीन्द्र शर्मा के अनुसार, ट्रस्ट बार-बार अपने बैंक खाते और लोकेशन बदलता था, ताकि धन के वास्तविक स्रोत और ट्रेल को छुपाया जा सके। गरीबों की मदद, धार्मिक आयोजन और सामाजिक सेवा के नाम पर लोगों से छोटी-छोटी रकम ली जाती थी और बाकायदा रसीदें भी दी जाती थीं। वास्तव में यह पैसा धार्मिक कार्यों में न लगकर साइबर फंड मैनेजमेंट और निजी लाभ में खपाया जाता था।

एक आरोपी गिरफ्तार, दो फरार; फर्जी पहचान बनाकर खाते खोलने का आरोप

जांच के बाद एसटीएफ ने रवि प्रकाश निवासी बहादुरपुर, देवरिया को गिरफ्तार कर लिया है। वहीं अजय उर्फ़ रूपेश (आवास विकास, बोदला आगरा) और एजाज़ (जयपुर हाउस, आगरा) फरार हैं। इन पर फर्जी पहचान से कई बैंक खाते खोलने, दान राशि हड़पने और साइबर फंड ट्रांसफर नेटवर्क संचालित करने के गंभीर आरोप हैं।

“सरकार से अनुदान आएगा” कहकर फंसाते थे लोग

शिकायतकर्ताओं ललित कुमार गर्ग और सतीश सिंघल ने बताया कि उन्हें धार्मिक सेवा व सरकारी अनुदान के नाम पर ट्रस्ट से जोड़ा गया। धीरे-धीरे अजय ने दबाव बनाना शुरू किया और कई बार मारपीट की नौबत भी आई। आरोपी लोगों से आधार, पैन, बैंक पासबुक, मोबाइल नंबर सहित महत्वपूर्ण दस्तावेज लेकर खातों की पूरी कमान अपने हाथ में ले लेते थे।

अजय मदद के नाम पर ₹50,000 तक देता था और बाद में इसी राशि को दबाव का हथियार बना लेता था। चेकबुक पर पहले से साइन कराए जाते थे और पूरे बैंकिंग सिस्टम पर ट्रस्ट का कंट्रोल कर दिया जाता था।

झारखंड–नोएडा साइबर नेटवर्क से आता था पैसा

एसटीएफ की जांच में खुलासा हुआ कि ट्रस्ट के खातों में झारखंड और नोएडा आधारित साइबर नेटवर्क से बड़ी मात्रा में फ्रॉड मनी आती थी। यह रकम फर्जी खातों और डिजिटल चैनलों के जरिए घुमाकर अंत में नकद के रूप में निकाल ली जाती थी।

शिकायतकर्ताओं के नाम पर नए सिम कार्ड लिए जाते थे, ओटीपी कंट्रोल किया जाता था और मोबाइल बैंकिंग के जरिए बड़े ट्रांजैक्शन दैनिक प्रक्रिया की तरह किए जाते थे। एक मामले में ललित के नाती की सहायता के नाम पर लगभग ₹5 लाख खर्च कराने का दबाव बनाया गया।

छापेमारी में मिली ठगी की ‘फैक्ट्री’

एसटीएफ को छापेमारी में भारी मात्रा में आपत्तिजनक सामग्री 24 एटीएम कार्ड (एसबीआई, इंडियन बैंक, IDBI, बंधन बैंक, उज्जीवन बैंक सहित), कई बैंक पासबुक, 32 फर्जी प्लास्टिक कार्ड, एक से अधिक आधार-पैन कार्ड, लैपटॉप, मोबाइल फोन, सिम कार्ड, चेकबुक, नोट्स, रसीदें, दान रजिस्टर, ₹10,000 नकद मिला है।

फरार आरोपियों पर शिकंजा कसने की तैयारी

इंस्पेक्टर यतीन्द्र शर्मा के अनुसार, ट्रस्ट से जुड़े बैंक खातों, डिजिटल ट्रेल, सिम कार्ड और दस्तावेजों की गहन जांच जारी है। फरार आरोपी अजय उर्फ़ रूपेश और एजाज़ की तलाश में लगातार दबिश दी जा रही है।

जांच एजेंसियों को आशंका है कि यह केवल धार्मिक ट्रस्ट का मामला नहीं, बल्कि मल्टी-स्टेट साइबर–फाइनैंशल रैकेट है, जिसकी कड़ियां कई राज्यों तक जुड़ी हो सकती हैं।

शिकंजा कसता जा रहा है—जांच आगे और बड़े खुलासों का संकेत दे रही है।

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