सिर्फ बिल्डिंग डिजायन से बाहर निकल शहर नियोजन में शामिल हों वास्तुकार, आगरा आर्केटेक्ट एसोसिएशन के स्वर्ण जयन्ती समारोह के उपलक्ष्य में आयोजित राष्ट्रीय कार्यशाला में शामिल हुए देश विदेश के 400 वास्तुकार
आगरा। शहरों को रहने लायक बनाना है तो वास्तुकारों को सिर्फ बिल्डिंग डिजायन से बाहर निकलकर शहर नियोजन और उसके विकास में भागीदार बनना होगा। शहरों के विकास के लिए मास्टर प्लान वह लोग बना रहे हैं जो शहरों को समझते ही नहीं। इसके लिए टाउन प्लानिंग विभाग जिम्मेदार है। वर्तमान स्थिति में होरीजोन्टल फैलाव के बजाय वर्टीकल फैलाव की जरूरत है। यह कहना था चंडीगढ़ से आगरा आर्केटेक्ट एसोसिएशन की वार्षिक कार्यशाला में शामिल होने आए वास्तुकार जीत गुप्ता का।
उन्होंने अपने व्याख्यान में कहा कि विश्व की 17 फीसदी आबादी और मात्र 4 फीसदी जमीन भारत में है। इसलिए भारत के लिए जमीन बहुत कीमती है, जिसका उपयोग सोच समझ कर किया जाना चाहिए। हर शहर का रहन-सहन, जलवायु, व्यापार अलग-अलग होते हैं। मसलन लखनऊ प्रशासनिक, नोयेडा, औद्योगिक नगर कानपुर और आगरा व्यावसायिक नगर है। आगरा ऐतिहासिक दृष्टि से भी महत्वपूर्ण है। इसलिए तीनों की प्लानिंग में अंतर होना चाहिए, जो नहीं किया जा रहा है। कार्यशाला के समापन समारोह में संस्थापक अध्यक्ष शशि शिरोमणी ने सभी अतिथियों को स्मृति चिन्ह प्रदान कर सम्मानित किया। अध्यक्ष अश्वनि शिरोमणी ने धन्यवाद ज्ञापन व संचालन देविना व किरन गुप्ता ने किया। इस अवसर पर मुख्य रूप से सीएस गुप्ता, अध्यक्ष अश्वनी सचिव सौरभ सक्सेना, कोषाध्यक्ष अनघा शर्मा, गौरव शर्मा, कार्यशाला समन्वयक ध्रुव कुलश्रेष्ठ, अर्चना यादव, किरन गुप्ता, बृजेन्द्र सिंह, ललित द्विवेदी, राजीव द्विवेदी, संगीता अग्रवाल आदि उपस्थित थे।
इमारत की उम्र बढ़ानी है तो लोहे का प्रयोग कम करें
आगरा। वास्तुकार रजत अग्रवाल ने कहा कि ताजनगरी में तापमान 2 से 48 डिग्री तक रहता है। यही वजह है कि यहां इमारतों में क्रेक आने की समस्या अधिक देखने को मिलती है। इसलिए ऐसे बिल्डिंग मेटीरियल का प्रयोग किया जाना जाहिए जो तापमान के इस परिवर्तन को समाहित कर सके। पुरानी इमारतों की उम्र इसलिए अधिक होती थी क्योंकि उनमें लोहा प्रयोग नहीं किया जाता था। चूने का प्रयोग होता था। लोहा हवा और पानी के सम्पर्क में आने पर फूल जाता है। इसलिए लोहे का प्रयोग कम से कम और ट्रीटमेंट के साथ करें। सीलन से बचाव के लिए नींव व छत का विशेष खयाल रखें।
शहर में 25 और बिल्डिंग में 75 प्रतिशत खुला क्षेत्र होना चाहिए
आगरा। शहर का विकास करते समय इस बात का खयाल रखना चाहिए कि वहां कम से कम 25 प्रतिशत खुला हरित क्षेत्र है। जबकि मल्टीस्टोरी बिल्डिंग में 75 फीसदी खुला क्षेत्र होना जरूरी है। वर्तमान परिवेश में वर्टीकल लिविंग को बढ़ाने की जरूरत है। जिससे कम क्षेत्र में लोगों को सुवधाजनक आवास के साथ ट्रांसपोर्ट की समस्या से भी निजात मिले।
शहरों के विकास में माइग्रेन बहुत बड़ी समस्या
आगरा। काउंसिल ऑफ आर्केटेक्चर के पूर्व अध्यक्ष उदय गडकरी ने आज कार्यशाला में क्षेत्रीय प्लानिंग के बिना मास्टर प्लान कभी सफल नहीं हो सकता। सदियों से गांव से शहरों और छोटे शहरों से बड़े शहरों में माइग्रेन का सिलसिला चल रहा है। जिससे शहरों में आने वाले व शहरी लोगों दोनों की समस्याएं बढ़ जाती है। शहरों का विकास करने के साथ हमें गांवों में भी विकास करना होगा। 4-5 गांव का लूप बनाकर उन्हें सड़क मार्क से जोड़ कर बेहतर सुविधाएं देनी होंगी, जिससे माइग्रेशन रुक सके। शहरों के विकास में स्थानीय नेताओं के हित और शहरों की प्लानिंग में वास्तुकारों को शामिल न करना भी एक बड़ा कारण
ताजनगरी के पुराने क्षेत्रों में सर्जीकल ट्रीटमेंट की जरूरत
आगरा। यूपी आर्केटेक्ट एसोसिएशन के अध्यक्ष राजीव द्विवेदी ने अपने व्याख्यान में बताया कि ऐतिहासिक नगरी आगरा में समुचित विकास के लिए पुराने क्षेत्रों में सर्जीकल ट्रीटमेंट की जरूरत है। जैसे नगलापदी, लोहामंडी, जगदीशपुरा, बल्केश्वर आदि। जहां कुछ स्थान को अधिग्रहित कर पार्क, कॉमन टॉयलेट आदि की सुविधाएं हो। रावतपाड़ा, किनारी बाजार जैसे धरोहर क्षेत्र को मैन्टेन करने की जरूरत है। यहां वाहनों के आवागमन को बंद कर सिर्फ रिक्शों की व्यवस्था होनी चाहिए, जिससे लोगों को रोजगार भी मिलेगा। कहा कि एसएम अस्पताल को जब नयी तरह से प्लान किया जा रहा है तो फिर इसे दूसरे स्थान पर शिफ्ट किया जा सकता है।
पुराने शहर को चौड़ा नहीं सुव्यवस्थित करें
आगरा। आगरा आर्केटेक्ट एसोसिएशन के संस्थापक अध्यक्ष शशि शिरोमणी ने कहा कि पुराने शहर की सड़कों को चौड़ा करने की नहीं बल्कि सुव्यवस्थित करने की जरूरत है। पतली गलियों में बनी हवेली और मकान सुन्दर होने के साथ स्वच्छ हवा और रोशनी से पूर्ण थे। पुराना आगरा बहुत सुव्यवस्थित था। प्राचीन निर्माण में प्रकति को साधने का प्रयास किया जाता था। लेकिन आज शहर की जरूरत को जाने बिना भेड़ चाल में निर्माण हो रहे हैं। पहले बारीक जालियों के झरोखों से छनकर ठंडी हवा मकानों में पहुंचती थी। लेकिन आज लू के थपेड़े चलने वाले शहरों में अमेरिका जैसे ठंडे देश की तरह बड़े-बड़े शीशों का प्रयोग किया जा रहा है। एयर कंडीशनर के दौर में हम प्राकृतिक व्यवस्था को पलटने की कोशिश में लगे हैं, जो गलत है।