नई दिल्ली: नमस्कार, देखिए, आज-कल एक अजीब कहानी चल रही है. आपके फ़ोन में, मेरे फ़ोन में, और देश में लाखों लोगों के एंड्रॉयड फ़ोन में. अचानक फ़ोन का चेहरा-मोहरा बदल गया है. कॉल करते समय या कॉल आती है तो स्क्रीन पर कुछ नया ही दिख रहा है. लोगों का दिमाग़ चकरा गया है.
कई लोग पूछ रहे हैं कि ये क्या हो गया? किसने किया? क्या मेरा फ़ोन हैक हो गया है? क्या कोई मेरी जासूसी कर रहा है? एक सज्जन ने तो सोशल मीडिया पर लिखा कि “आपके फ़ोन की सेटिंग बदल दी गई है. एक सॉफ्टवेयर भी अपने आप इंस्टॉल हो गया है जो अब तोते की तरह आपके ख़िलाफ़ बोलेगा.”
तो क्या अब हम सब ‘तोते’ बन गए हैं? क्या हमारे फ़ोन में ‘सॉफ्टवेयर’ नाम का एक तोता घुस गया है जो हमारी सारी बातें सुन रहा है? या फिर ये सिर्फ़ एक ‘डिजिटल डर’ है, जो हमारे अंदर फैलाया जा रहा है?
‘डिजिटल भारत’ में ‘डिजिटल बदलाव’ से डरना क्यों?
जब भी कोई बदलाव होता है, हम डर जाते हैं. चाहे वह हमारे जीवन में हो, या हमारे फ़ोन में. पिछले कुछ दिनों से, एंड्रॉयड फ़ोन इस्तेमाल करने वाले लोग अपने फ़ोन में हो रहे बदलावों से परेशान हैं. उन्हें लग रहा है कि उनके फ़ोन के साथ छेड़छाड़ की गई है. सोशल मीडिया पर ‘डिजिटल’ भारत के लोग, जो हर बात पर ख़ुश होते हैं, आज अचानक डर गए हैं. क्या ये डिजिटल दुनिया का कोई नया खेल है?
आईफ़ोन वालों को तो कोई फ़र्क ही नहीं पड़ा. वो मजे से बैठे हैं, क्योंकि गूगल ने यह जादू सिर्फ़ एंड्रॉयड वालों पर चलाया है. तो क्या आईफ़ोन वाले ज़्यादा सुरक्षित हैं? या फिर ये सिर्फ़ गूगल की एक नई ‘मायावी लीला’ है, जिसे समझना हमारे बस की बात नहीं है?
गूगल ने क्यों खेला यह ‘जादू’ का खेल?
आप परेशान न हों. मैंने इस ‘जादू’ का राज़ पता लगा लिया है. ये कोई हैकिंग या जासूसी नहीं है. यह सिर्फ़ एक सॉफ्टवेयर अपडेट है, जो गूगल ने किया है.
आप सोच रहे होंगे कि अगर यह सिर्फ़ एक अपडेट था, तो हमें बताया क्यों नहीं? क्या हमारा फ़ोन हमारा नहीं है? क्या गूगल हमारी मर्ज़ी के बिना कुछ भी बदल सकता है?
दरअसल, गूगल ने इस साल मई में ‘मटेरियल 3डी एक्सप्रेसिव’ नाम का एक अपडेट जारी करने का ऐलान किया था. यह अपडेट फ़ोन को और भी बेहतर, तेज़ और इस्तेमाल में आसान बनाने के लिए है. इस अपडेट से नोटिफ़िकेशन, कलर थीम, फोटो, जीमेल और यहाँ तक कि कॉल ऐप का डिज़ाइन भी बदल गया है.
गूगल का कहना है कि यह सब कुछ यूज़र को बेहतर अनुभव देने के लिए है. जैसे-
‘रीसेन्ट कॉल्स’ और ‘फेवरेट’ को हटाकर ‘होम’ में मिला दिया गया है.
अब एक ही नंबर से आने वाले सारे कॉल एक साथ नहीं दिखेंगे, बल्कि अलग-अलग दिखेंगे. गूगल का कहना है कि इससे आप अपनी कॉल हिस्ट्री को बेहतर तरीके से समझ पाएंगे.
इनकमिंग कॉल का डिज़ाइन भी बदल दिया गया है, ताकि फ़ोन जेब से निकालते समय गलती से कॉल रिसीव या डिस्कनेक्ट न हो जाए.
क्या ये वाकई हमारे लिए है? या फिर गूगल अपने हिसाब से हमें चलाना चाहता है?
‘ऑटो-अपडेट’: क्या हम सबने अपनी मर्ज़ी गूगल को सौंप दी है?
अब आप पूछेंगे कि ये सब अपने आप कैसे हो गया? क्या हमारे फ़ोन में कोई ‘भूत’ घुस गया था?
इसका जवाब भी आसान है, और थोड़ा कड़वा भी. हममें से ज़्यादातर लोगों ने गूगल प्ले स्टोर में ‘ऑटो-अपडेट’ का विकल्प चुन रखा है. इसका मतलब है कि जब भी किसी ऐप का नया अपडेट आता है, तो वह अपने आप इंस्टॉल हो जाता है, बिना आपसे पूछे.
तो क्या हमने अपनी मर्ज़ी से यह किया है? क्या हमने अपनी मर्ज़ी गूगल को सौंप दी है? हम बिना सोचे-समझे एक बटन दबा देते हैं, और फिर हैरान होते हैं कि हमारा फ़ोन हमसे बिना पूछे क्यों बदल गया?
वनप्लस जैसी कंपनियों ने भी यही कहा है. एक यूज़र ने जब उनसे पूछा कि ये क्या किया, तो उन्होंने साफ़-साफ़ बताया कि “यह वनप्लस की तरफ़ से नहीं, बल्कि गूगल फ़ोन ऐप के अपडेट से है. अगर आपको अभी भी अपने फ़ोन में पुराना स्टाइल पसंद है, तो अपडेट अनइंस्टॉल कर सकते हैं.”
.तो अब आपके पास दो रास्ते हैं.
पहला, इन बदलावों को स्वीकार करें और मान लें कि ‘डिजिटल भारत’ में यही नियम है.
दूसरा, अगर आपको पुराना स्टाइल पसंद है, तो आप गूगल प्ले स्टोर में जाकर उस अपडेट को ‘अनइंस्टॉल’ कर सकते हैं.
लेकिन क्या हम हमेशा पुराने को ही पकड़े रहेंगे? या नए को समझने की कोशिश करेंगे? यह सवाल सिर्फ़ गूगल या कंपनियों से नहीं, बल्कि हमसे भी है.
मोहम्मद शाहिद की कलम से