होली की मस्ती में चार चांद लगाने का काम करती है भांग की ठंडाई, जिसे पीकर लोग सारी चिंताओं को भूलकर मतवाले होकर नृत्य करते हैं. रंगो के त्योहार होली पर आखिर भांग पीने की परंपरा क्यों शुरू हुई, इसका वर्णन पौराणिक ग्रंथ शिव पुराण की एक पौराणिक कथा में मिलता है
शिवपुराण की कथा के अनुसार, भगवान विष्णु के परम भक्त प्रहलाद ,राक्षस हिरण्यकश्यप के पुत्र थे. प्रहलाद भगवान विष्णु की भक्ति करते थे इस कारण से उनके पिता उन पर तरह तरह से घोर अत्याचार करते थे और उनको मारने की कोशिश करते थे. हिरण्यकश्यप से अपने भक्त की प्राण रक्षा के लिए भगवान विष्णु ने नरसिंह रूप धारण किया और हिरण्यकश्यप का वध कर दिया. लेकिन हिरण्यकश्यप का वध करने के बाद भी भगवान विष्णु के नरसिंह अवतार का क्रोध शांत नहीं हो पा रहा था, तब भगवान विष्णु के क्रोध को शांत करने के लिए भगवान शिव ने शरभ अवतार लिया.
शरभ अवतार के शरीर का आधा भाग सिंह, आधा भाग मनुष्य का और आधा भाग शरभ नामक एक जंगली पक्षी जो शेर से भी ज्यादा शक्तिशाली था और जिसके आठ पैर थे एक पक्षी का था. जब भगवान शिव के शरभ अवतार ने भगवान विष्णु के नरसिंह अवतार को परास्त कर दिया, तब जाकर नरसिंह भगवान का क्रोध शांत शांत हुआ और नरसिंह भगवान ने अपना छाल भगवान शिव को आसन के तौर पर भेंट किया.
इसके बाद कैलाश में शिव गणों ने खुशी में आनंदित होकर उत्सव मनाया और भांग पीकर मस्त होकर नृत्य किया. भक्तगण आज भी भगवान शिव और विष्णु की इस लीला की याद में होली के अवसर पर भांग पीकर मस्त होकर नाचते हैं. तभी से होली पर भांग पीने का चलन शुरू हो गया.
इस वजह से भी किया जाता है भांग का सेवन
भांग को एक जड़ी बूटी माना जाता है. मान्यता के अनुसार, समुद्र मंथन के दौरान जब भगवान शिव ने अपने कंठ में विष धारण किया था तब विष के प्रभाव से उनके शरीर में बहुत अधिक जलन होने लगी थी. तब विष के प्रभाव के कारण हुई उस जलन को शांत करने के लिए भगवान शिव को भांग ,धतूरा और जल अर्पित किए गए.
क्योंकि भांग की तासीर ठंडी होती है इसलिए इसने भगवान शिव को जलन से राहत प्रदान की. होली के मौके पर लोग तरह तरह के पकवान खाते हैं. ऐसे में भांग औषधि के तौर पर पाचक का काम करती है. इसके अलावा कहा जाता है भांग के सेवन से लोग चिंता और तनाव से मुक्त होकर खुलकर त्योहार का आनंद ले पाते हैं.
– एजेंसी