आगरा। विश्व मैत्री मंच की उत्तर प्रदेश इकाई ने दिसंबर माह की काव्य चौपाल सजाई। दूर दूर से ऑनलाइन जुड़कर कवयित्रियों ने ऐसी रसधार बहाई कि सभी भाव विभोर हो गए। शुभारंभ ललिता कर्मचंदानी की सरस्वती वंदना से हुआ।
सर्वप्रथम मंच की निदेशक डॉ.सुषमा सिंह ने जाने वाले वर्ष में सम्पन्न कार्यक्रमों का उल्लेख करते हुए सबको आगामी नववर्ष की शुभकामनाएँ दीं। उन्होंने अपनी कविता के माध्यम से प्रिय के साथ होने पर प्रकृति में आए सुहावने परिवर्तनों का रुचिकर वर्णन करके समाँ बाँध दिया।
मीना गुप्ता ने पत्थरों की संवेदनशीलता पर प्रकाश डाला और पतझड़ में झड़े पत्तों की उपयोगिता की ओर भी संकेत किया। चारुमित्रा ने पेड़ की अभिलाषा को शब्द दिए- “सीखा है बस देना, कुछ न लेना..‘’ उन्होंने आदमी को भावी पीढ़ी को बचाने के लिए पर्यावरण को बचाने और नए पौधे लगाने की राय दी ।
झाँसी की संध्या निगम ने पति प्रेम से वंचित महिलाओं के दर्द को वाणी दी -“मैं नदी बन के दिन रात बहती रही, तुम मेरे लिए सागर न बन सके।”
डॉ. नीलम भटनागर ने समय को परिभाषित करते हुए उसे अखण्ड बताया और उसे अतीत, वर्तमान और भविष्य में बाँटने से इनकार किया और ना उसके आने -जाने को स्वीकार किया। कहा- “यह तो हम हैं जो बीत रहे हैं, रीत रहे हैं। पल को जिया नहीं, वर्ष को गिनते रहे। प्रतिपल नया है, इसमें डूबना स्वयं को पाना है। पल पल का जीना ही ज़िंदगी है। आज अभी जी लें, अमृत पा जाएंगे, समय के साथ हो लें, पूरा वर्ष सत-चित-आनंद होगा।”
अलका अग्रवाल ने कृष्ण प्रेम के दोहों से प्रारंभ किया और उन बहानों को त्यागने का संकल्प लिया जो आगे नहीं बढ़ने देते, और सपनों के बूटे हक़ीक़त की मेहंदी से लगाने की बात की।
रमा वर्मा श्याम ने इंसानी सोच में आई कमी की ओर इंगित करते हुए कहा – “झूठ फूला फला इस क़दर, सत्य के घर में मातम हुआ। आदमी हो गया जानवर, इतना हावी शैतान हुआ।”
उषा जी ने ओस और कुहासे से प्रकृति में आए परिवर्तनों का सुंदर वर्णन किया और क्रिसमस त्योहार के आनन्द का भी वर्णन किया। *साधना वैद* ने एक त्रस्त मज़दूर की व्यथा कथा सुनाई और उसके मन की बगावत की चर्चा की।दूसरी कविता में राम के दर्द में डूबे हुए कुछ नग़मात सुनाए। तीसरी कविता में नववर्ष का स्वागत किया।
चारुमित्रा ने बहुत सुंदर संचालन किया। साधना वैद के धन्यवाद ज्ञापन के साथ काव्य-चौपाल का समापन हुआ।
