अपनी कमियों को खत्म करते जाना है और योग का परसेंटेज बढ़ाना है

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माउंटआबू में बाबा की कुटिया के पास फोटो खिंचातीं रचना शर्मा व नर्मदा बघेल।

गजब का प्रबंधतंत्र है माउंटआबू के ब्रह्माकुमारी आश्रम में

माउंआबू से लौटकर लाखन सिंह बघेल । राजस्थान और गुजरात की सीमा पर स्थित माउंटआबू स्थित ब्रहमाकुमारी आश्रम  में गजब का प्रबंधतंत्र है । यहां सभी लोग स्वेच्छा से अपना कार्य करते हैं । इनमें ज्यादातर स्वयंसेवक होते हैं । लगभग दस हजार अतिथि एक साथ भोजन कर लेते हैं । पता भी नहीं चलता । हमारे घर पर चार अतिथि आ जाएं तो कितनी व्यवस्थाएं जुटानी पड़ती हैं । लेकिन यहां तो हर रोज, बारह महीने हजारों लोग सुबह चार बजे की चाय से लेकर रात का खाना तक खाते हैं । शांतिवन परिसर में गजब की सफाई व्यवस्था है । कहीं कोई गंदगी देखने को नहीं मिलेगी । लगभग चौबीस घंटे यहां महिला और पुरुष स्वयंसेवक बाबा की सेवा में तल्लीन नजर आएंगे ।

देश के कोने-कोने से बहन और भाई यहां पहुंचते हैं । आबू रोड रेलवे स्टेशन पर अलग से एक छोटा गेट बना हुआ है । जिसमें ब्रह्माकुमारी आश्रम जाने वाले लोग ही पहुंचते हैं। उन्हें लेने के लिए आश्रम की बसें आती हैं। अतिथियों को लेकर शांतिवन पहुंचती हैं। जहां गेट के अंदर पहुंचते ही सबको पहले तो पहचानपत्र दिये जाते हैं । इसके पश्चात उन्हें ठहरने के स्थल पर पहुंचाया जाता है । बहनें अलग विंग में रहती हैं तो भाई अलग विंग में रहते हैं । उनको चाय-पानी, खाने आदि के बारे में बता दिया जाता है। जिनकी जहां ड्यूटी लगी होती है, वह बता दी जाती है। शांतिवन में पहुंचकर इन भक्तों को एक अलग ही राहत महसूस होती है। न ही कोई सुरक्षा का खतरा न ही अन्य कोई समस्या । केवल बाबा की सेवा और ध्यान में अपने आप को लगाना होता है । ये स्वयंसेवक चाहे वे महिला हों या पुरुष सुबह तीन बजे ही उठकर स्नान के बाद सीधे बाबा के ध्यान में लग जाते हैं।  इसके पश्चात उनकी जहां ड्यूटी लगी होती है, उसको करते हैं। सात बजे से आठ बजे तक डायमंड हाल में मुरली सुनते हैं। तब तक ब्रेकफास्ट तैयार हो जाता है तो नाश्ता करने के बाद अपने विश्रामस्थल पर पहुंच जाते हैं। जिनकी ड्यूटी लगी रहती है वे सेवा करते हैं। यहां कोई किसी से होड़ नहीं करता है। काम करने में किसी को कोई हिचक नहीं होती। जो जिस सेवा के लायक होता है, उसको वही सेवा दी जाती है। स्वास्थ्य संबंधी कोई समस्या है तो चिकित्सकों और अस्पताल की व्यवस्था है। हालांकि योग पर यहां विशेष ध्यान दिया जाता है।

सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट भी यहां का जबर्दस्त है। पानी की एक-एक बूंद को उपयोग किया जाता है। पहाड़ी क्षेत्र होने के बावजूद यहां हरियाली भी गजब की है। इनका सोलर प्लांट भी जबर्दस्त है। जो आने वाले लोगों को बारह महीने गरम पानी भी देता है। कुलमिलाकर यहां आकर लगता है कि हम वास्तव में स्वर्ग में आ गए हैं। जहां रात-दिन चहल-पहल और भक्तिभाव ही रहता है ।अपनी यात्रा के दौरान मुझे भी डायमंड हाल में दादीमम्मा का प्रवचन सुनने का अवसर मिला। उन्होंने अपने संदेश में कहा कि हममें पत्थर बुद्ध से पारस बुद्धि बनना है। प्रयास करें कि अपने से कोई पाप न हो । ऊंशांति….  उन्होंने अपने प्रवचन में कहा कि सतयुग में राजा-रानी, प्रजा सब पावन थे । आत्मा शरीर के साथ है तो सुख-दुख भोगना पड़ता है। आत्मा जब एक शरीर से निकलकर दूसरे शरीर में चली जाती है तो शरीर चैतन्य हो जाता है। हम संगम पर हैं। एक तरफ मैला और दूसरी तरफ अच्छा पानी है। उन्होंने कहा कि मां-बाप कन्या को पूजते हैं। उसकी कमाई नहीं खाते हैं। यह कन्या भी देवताओं के आगे माथा टेकती है कि उसने जन्म मां-बाप से ही तो लिया है ।

ब्रह्ममाकुमारी आश्रम की नींव 1937 में रखी गयी थी। 1950 में ब्रह्मा बाबा माउंटआबू आए। यहां आकर कुटिया में रहने लगे। तब से लेकर अब तक इनका काफी विस्तार हुआ है। इनका ईश्वरीय विश्वविद्यालय है। जिसमें 50 हजार बहनें सेवा दे रही हैं। इनका मानना है कि नारी अबला नहीं सबला है। शांति वन जैसा बड़ा महिलाओं का संगठन कहीं नहीं मिलेगा। माउंटआबू में ज्ञान सरोवर है काफी ऊंचाई पर । पांडव भवन है, जहां बाबा 1950 में आकर रुके थे । बाबा की झोंपड़ी है। जहां वे लोगों की समस्या सुनते थे। लाइब्रेरी है। जिसमें बाबा की पुरानी यादें संजोकर रखी गयी है। इसके अलावा मानसरोवर है। तपोवन है लगभग सौ एकड़ में जहां फल और सब्जी उगायी जाती है। बिना किसी खाद का उपयोग किये। यहां आने वाले लोगों को संदेश दिया जाता है कि सुबह जल्दी उठकर आधा घंटा बैठकर अपने आप से जरूर बात करें। बुद्धि को ज्ञान से भरपूर करना है। अपनी कमियों को खत्म करते जाना है और योग का परसेंटेज बढ़ाना है। मेरे साथ मेरी पत्नी नर्मदा बघेल, पत्रकार साथी सुनयन शर्मा, उनकी पत्नी रचना शर्मा, पुत्री कात्यायनी शर्मा, भानुप्रताप सिंह, उनकी पत्नी इंदु सिंह भी थे ।

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