उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने मंगलवार को जयपुर के जगतपुरा में ‘द कुलिश स्कूल’ का उद्घाटन और श्रद्धेय कर्पूर चन्द्र कुलिश जी की प्रतिमा का अनावरण किया। इस मौके पर उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने समारोह को संबोधित करते हुए कहा कि काश आज मैं बच्चा होता तो मेरी ख्वाहिश होती कि मुझे कुलिश स्कूल में पढ़ने का अवसर मिले। द कुलिश स्कूल राजस्थान की शान और बान में एक नायाब हीरा है, जो सदैव चमकता रहेगा।
उपराष्ट्रपति धनखड़ ने कहा कि द कुलिश स्कूल के प्रिंसिपल शिक्षाविद् देवाशीष चक्रवर्ती के नाम से ही मुझे नमस्कार कहना पड़ेगा। बंगाल के तीन साल की याद फिर ताजा हो गई है। वो सभी पल मेरे सामने है। आज में ममतामयी हो गया हूं। हमने यहां देखा हैं, जो कल्पना से परे करता है। दुनिया में मैंने बहुत स्कूल देखे है लेकिन कुलिश स्कूल नाम ही काफी है। ये नाम स्कूल की परिभाषा है और स्कूल का पूरा विवरण है। कुलिश जी की पूरी पूंजी उनके नाम में निहित है और ये नाम स्कूल को दे दिया है। स्कूल के भविष्य को लेकर कोई शंका नहीं है।
सबसे बड़ा दान शिक्षा
उन्होंने कहा कि सबसे बड़ा धन ज्ञान और सबसे बड़ा दान शिक्षा है। शिक्षा की लालसा क्या होती है, इसका अंदाजा महाभारत को देखकर लगाया जा सकता है। एकलव्य में शिक्षा की आग थी। उसने बिना पता चले गुरु द्रोणाचार्य से शिक्षा ली। जब गुरु को पता चला तो अंगूठा मांगा और शिष्य ने दे दिया, जिसमें पूरी शिक्षा केंद्रित थी। ये भारतीय शिक्षा का मूलमंत्र हैं, यहां आते ही में समझ गया।
भैरोसिंह शेखावत और कुलिश जी की दोस्ती का किया जिक्र
उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने पूर्व उपराष्ट्रपति भैरोसिंह शेखावत के नाम का जिक्र करते हुए कहा कि कुलिश जी के संबंध उनसे रहे हैं, जो मेरे प्रेरणा स्त्रोत रहे और मेरी राजनीति के शिल्पी बने। आज मैं उस पद पर हूं, जिस पर वो पहले थे लेकिन कुलिश जी और भैरोसिंह शेखावत की मित्रता घनिष्ठ थी।
समारोह में ये रहे मौजूद
कार्यक्रम में पत्रिका ग्रुप के प्रधान संपादक गुलाब कोठारी, उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़, उनकी धर्मपत्नी सुदेश धनखड़, उप मुख्यमंत्री डॉ. प्रेमचंद बैरवा, राज्यसभा सांसद घनश्याम तिवाड़ी, विधानसभा अध्यक्ष वासुदेव देवनानी, जयपुर नगर निगम ग्रेटर मेयर डॉ. सौम्या, जयपुर नगर निगम हेरिटेज मुनेश गुर्जर, ज्योति खंडेलवाल सहित कई गणमान्य लोग मौजूद थे।
-एजेंसी