
कोआर्डिनेटर
(जनसंपर्क, प्रका, शनशोध ग्रंथागार, सांस्कृतिक प्रशिक्षण)
जन्माष्टमी पर्व की पूर्व संध्या पर विशेष
भगवान श्रीकृष्ण का जन्मोत्सव केवल एक धार्मिक पर्व नहीं, बल्कि यह ब्रज की आत्मा और संस्कृति का अनंत उत्सव है। पौराणिक मान्यता के अनुसार, इस बार उनका 5052 वाँ जन्म दिवस मनाया जा रहा है। हर वर्ष की भाँति, मथुरा और सम्पूर्ण ब्रज में यह पर्व दिव्यता, भक्ति और उल्लास के साथ मनाया जाता है।
पौराणिक वृतांत
धार्मिक ग्रंथों में वर्णित है कि जब अत्याचारी राजा कंस का आतंक चरम पर था, तब देवकी और वसुदेव के आठवें पुत्र के रूप में भगवान विष्णु ने धरती पर अवतार लिया। यह जन्म भाद्रपद कृष्ण पक्ष की अष्टमी की अर्धरात्रि को, कारागार में हुआ। जैसे ही श्रीकृष्ण का अवतार हुआ, कारागार के द्वार अपने आप खुल गए, पहरेदार गहरी नींद में सो गए और यमुनाजी ने अपने जल को मार्ग देने के लिए विभाजित कर दिया। वसुदेव जी बालकृष्ण को गोकुल ले गए और नंद बाबा के घर यशोदा जी के पास छोड़कर, वहां जन्मी कन्या को कारागार में ले आए। वही कन्या योगमाया थीं, जिन्होंने प्रकट होकर कंस को चेताया— “हे कंस! तेरा संहार करने वाला जन्म ले चुका है।”
जन्म के समय उपस्थित देवगण
पुराणों में वर्णित है कि श्रीकृष्ण के जन्म के अवसर पर ब्रह्मा, शिव, इन्द्र, वरुण, यम, सूर्य, चंद्र, कुबेर, वायु, और अनेक देवता तथा ऋषिगण दर्शनार्थ पधारे थे। देवताओं ने पुष्पवृष्टि की, आकाश में मंगलध्वनि गूंजी और सम्पूर्ण ब्रजमंडल आनंद में भर उठा।
ब्रज में उत्सव की परंपरा
मथुरा के श्रीकृष्ण जन्मस्थान मंदिर में जन्माष्टमी पर आधी रात को जन्माभिषेक होता है। ठीक बारह बजे मंदिर की घंटियों और शंखनाद के बीच “नंद के आनंद भयो, जय कन्हैया लाल की” का गगनभेदी घोष होता है। मंदिरों में रात्रिभर भजन-संकीर्तन, रास-लीला और झांकियों का आयोजन होता है। वृंदावन, गोकुल, नंदगांव, बरसाना, बलदेव, महावन और राधाकुंड-गोवर्धन में मंदिर सजाए जाते हैं, दही-हांडी और माखन-चोरी की झांकियां सजीव प्रस्तुत की जाती हैं।
ब्रज में कृष्ण की बाल-लीलाएं
श्रीकृष्ण ने जन्म से लेकर 14 वर्ष की अवस्था तक ब्रज में निवास किया। यहाँ उन्होंने बाल्यकाल में अनेकों लीलाएं कीं— पूतना वध, शाकटभंजन, त्रिणावर्त का संहार, यमलार्जुन उद्धार, कालिय नाग मर्दन, गोवर्धन धारण, रास-लीला और ग्वाल-बालों के साथ माखन-चोरी जैसी मधुर लीलाएं आज भी ब्रजवासियों के हृदय में जीवंत हैं।
श्रीकृष्ण का संदेश
श्रीकृष्ण का जन्म असत्य पर सत्य, अन्याय पर न्याय और अत्याचार पर धर्म की विजय का प्रतीक है। उन्होंने गीता के माध्यम से जगत को यह अमर संदेश दिया—
“जब-जब धर्म की हानि और अधर्म की वृद्धि होगी, तब-तब मैं अवतार लेकर सज्जनों की रक्षा और दुष्टों का विनाश करूंगा।”
आज भी ब्रज से यही संदेश जाता है कि भक्ति, प्रेम, सेवा और धर्म ही जीवन का सच्चा पथ है।
निष्कर्ष
मथुरा और ब्रज में श्रीकृष्ण जन्माष्टमी का उत्सव केवल एक धार्मिक आयोजन नहीं, बल्कि यह उस दिव्य स्मृति का उत्सव है, जिसमें भगवान ने अपने बाल्यकाल की अठखेलियों से, अपने मधुर वचनों से और अपनी लीलाओं से सम्पूर्ण जगत को प्रेम और आनंद में सराबोर कर दिया।