शिक्षक सम्मान: सच्चे समर्पण की पहचान और पारदर्शिता की आवश्यकता

अन्तर्द्वन्द

प्रियंका सौरभ स्वतंत्र पत्रकार, कवयित्री और व्यंग्यकार

सच्चे पुरस्कार का मूल्य उस कार्य में निहित है, जो किसी व्यक्ति ने समाज और समुदाय के लिए किया है। पुरस्कार का असली उद्देश्य किसी की व्यक्तिगत पहचान या नौकरी बढ़ाने के लिए नहीं होना चाहिए। इसके बजाय, यह उन लोगों को सम्मानित करना चाहिए, जो समाज में सार्थक बदलाव लाने में सफल रहे हैं, चाहे वह शिक्षा के क्षेत्र में हो या किसी अन्य क्षेत्र में। ऐसे पुरस्कार समाज के वास्तविक विकास और भले के लिए होना चाहिए, न कि केवल एक व्यक्तिगत सम्मान का प्रतीक।

शिक्षक सम्मान, जो हमेशा से समाज में एक उच्च स्थान प्राप्त है, आजकल कुछ बदलावों का सामना कर रहा है। शिक्षा के प्रति कुछ शिक्षकों का जूनून और उनका समर्पण वाकई शिक्षा की नींव को मजबूत करता है। लेकिन पिछले कुछ वर्षों में एक नया ट्रेंड देखने को मिला है—”गैर सरकारी संगठन” द्वारा शिक्षकों को सम्मानित करने की प्रक्रिया। जहां एक ओर यह कदम सराहनीय है, वहीं दूसरी ओर इसमें पक्षपात और व्यक्तिगत पसंद-नापसंद का भी असर देखा जा रहा है। विद्यालयों या महाविद्यालयों के प्रिंसिपल द्वारा नाम लेने के दौरान अक्सर यह देखा गया है कि कुछ मेहनती शिक्षकों को नजरअंदाज कर दिया जाता है, जिससे उनका मनोबल गिरता है।

आजकल “गैर सरकारी संगठन” और अन्य संस्थाएं शिक्षक सम्मान समारोहों का आयोजन करती हैं, लेकिन इन आयोजनों में पारदर्शिता की कमी साफ़ तौर पर महसूस होती है। शिक्षक का चयन कई बार पक्षपात या व्यक्तिगत निर्णयों के आधार पर किया जाता है। यह उन शिक्षकों के लिए निराशाजनक होता है, जो वर्षों से अपनी मेहनत और समर्पण से शिक्षा के क्षेत्र में उत्कृष्टता को बढ़ावा दे रहे होते हैं, लेकिन उन्हें उचित सम्मान नहीं मिलता। ऐसे में उनका मनोबल प्रभावित हो सकता है, और यह उनके कार्यों की गुणवत्ता पर भी असर डाल सकता है।

शिक्षक-सम्मान देने वाली संस्थाओं और सरकार को इस प्रक्रिया को और अधिक पारदर्शी बनाना चाहिए। जब पुरस्कार दिए जाते हैं, तो यह जरूरी है कि प्रत्येक स्तर पर पात्रता की जांच की जाए, और यह जांच सिर्फ स्कूल या महाविद्यालय के प्रिंसिपल तक सीमित न हो। इसमें विद्यार्थियों, अभिभावकों और आसपास के निवासियों का भी योगदान होना चाहिए, क्योंकि वे ही उस शिक्षक के वास्तविक प्रभाव को समझते हैं। यह परख पूरे वर्ष भर चलनी चाहिए, ताकि चयन प्रक्रिया में कोई भी भेदभाव न हो और सभी को समान अवसर मिले।

आज के समाज में पुरस्कार और सम्मान एक प्रतिष्ठा के प्रतीक माने जाते हैं। राज्य शिक्षक पुरस्कार हो या महामहिम राष्ट्रपति द्वारा प्रदत्त राष्ट्रीय शिक्षक पुरस्कार, इन पुरस्कारों का चयन एक निश्चित प्रक्रिया से होता है। शिक्षक को पुरस्कार प्राप्ति के लिए स्वयं आवेदन करना पड़ता है, जिसमें ऑनलाइन आवेदन, तस्वीरें, विडियो, विभागीय आख्या, पुलिस वेरिफिकेशन और इंटरव्यू जैसी प्रक्रियाएं शामिल होती हैं। इसके बावजूद, बहुत से पुरस्कार इस रूप में प्रचारित होते हैं जैसे यह केवल कार्य के कारण मिले हैं, जबकि असल में इसे प्राप्त करने के लिए कुछ शिक्षक अपनी व्यक्तिगत पहुंच और प्रभाव का सहारा लेते हैं।

वास्तव में, यह चयन प्रक्रिया इस उद्देश्य से बनाई गई थी कि पुरस्कार के लिए योग्य शिक्षक स्वयं आगे आएं, क्योंकि पहले जब अधिकारियों द्वारा चयन किया जाता था, तो निष्पक्षता या भाई-भतीजावाद का खतरा बना रहता था। लेकिन यहीं पर एक गंभीर समस्या उत्पन्न होती है। हर नियम और प्रक्रिया को बिगाड़ने वाले लोग हर क्षेत्र में होते हैं। इनकी वजह से कभी-कभी वे लोग पुरस्कार प्राप्त कर लेते हैं जो शायद उतने योग्य नहीं होते, बल्कि उनकी पहुंच और गलत तरीके से पुरस्कार प्राप्त करने की कला उन्हें सफल बना देती है। यही कारण है कि अच्छे शिक्षक भी कभी-कभी आलोचना का शिकार हो जाते हैं।

यहां पर एक महत्वपूर्ण सवाल यह उठता है कि क्या सच में हमें पुरस्कार के लिए आवेदन करना चाहिए? मेरी विचारधारा से यह मेल नहीं खाता कि मैं स्वयं पुरस्कार मांगूं। पुरस्कार प्राप्त करना एक सम्मान की बात है, लेकिन क्या उसे प्राप्त करने के लिए स्वयं आगे आना सही है? एक शिक्षक का असली उद्देश्य अपनी शिक्षा और छात्रों के विकास में योगदान करना होता है, न कि अपनी नौकरी या वेतन बढ़ाने के लिए पुरस्कार प्राप्त करना।

जब हम पुरस्कारों को केवल व्यक्तिगत फायदे के रूप में देखते हैं, तो यह सवाल उठता है कि इस पुरस्कार से स्कूल, बच्चों, समाज और समुदाय को क्या फायदा होता है? क्या इसका कोई वास्तविक प्रभाव समाज में दिखता है, या यह सिर्फ एक सम्मान और पहचान का प्रतीक बनकर रह जाता है? अक्सर हम यह नहीं देख पाते कि पुरस्कार मिलने से स्कूल के बुनियादी ढांचे, विद्यार्थियों की शिक्षा, या समग्र समाज के भले के लिए कुछ ठोस बदलाव आया हो।

जहां तक पुरस्कार की बात है, मैं पुरस्कार प्राप्त शिक्षकों का पूरी तरह सम्मान करती हूं, लेकिन मेरा मानना है कि पुरस्कार का असली उद्देश्य कभी भी व्यक्तिगत लाभ के लिए नहीं होना चाहिए। यदि पुरस्कार के माध्यम से किसी स्कूल को बेहतर संसाधन, रास्ता, मैदान, कमरे या कोई अन्य जरूरी सुविधाएं मिल सकती हैं, तो मैं हाथ जोड़कर पुरस्कार हेतु आवेदन करूंगी, ताकि स्कूल और बच्चों का भला हो सके। लेकिन मैं किसी पुरस्कार के लिए खुद को कभी आगे नहीं बढ़ाऊंगी, यदि वह पुरस्कार केवल व्यक्तिगत लाभ के लिए हो।

सच्चे पुरस्कार का मूल्य उस कार्य में निहित है, जो किसी व्यक्ति ने समाज और समुदाय के लिए किया है। पुरस्कार का असली उद्देश्य किसी की व्यक्तिगत पहचान या नौकरी बढ़ाने के लिए नहीं होना चाहिए। इसके बजाय, यह उन लोगों को सम्मानित करना चाहिए, जो समाज में सार्थक बदलाव लाने में सफल रहे हैं, चाहे वह शिक्षा के क्षेत्र में हो या किसी अन्य क्षेत्र में। ऐसे पुरस्कार समाज के वास्तविक विकास और भले के लिए होना चाहिए, न कि केवल एक व्यक्तिगत सम्मान का प्रतीक।.

-up18News

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *