गुरुकुल से स्मार्ट क्लास तक: हर युग में शिक्षक रहे प्रासंगिक शिक्षक दिवस पर विशेष

अन्तर्द्वन्द

नई दिल्ली, 5 सितंबर। आज जब पूरा देश शिक्षक दिवस मना रहा है, तब यह प्रश्न और भी प्रासंगिक हो जाता है कि क्या कृत्रिम बुद्धिमत्ता (AI) और डिजिटल उपकरणों के इस दौर में शिक्षक की भूमिका कम हो रही है? तकनीक ने शिक्षा को सरल और सुलभ तो बनाया है, लेकिन क्या यह गुरु-शिष्य परंपरा का स्थान ले सकती है? इसका उत्तर स्पष्ट है—नहीं। शिक्षक का स्थान कोई यंत्र या मशीन कभी नहीं ले सकती।

प्राचीन काल में आश्रम जहाँ गुरु शिष्य परम्परा का सूत्र पात हुआ। जहाँ शिष्य गुरु के सान्निध्य में रहकर व्यावहारिक एवं पारम्परिक शिक्षा के माध्यम से ज्ञानार्जन किया करता था.

शिक्षा में निपूर्ण होने के पश्चात उसे परीक्षा देनी होती एवं उत्तीर्ण करनी होती थी।

शनै शनै समय बदला आश्रम का स्थान पाठशालाओं ने लिया जहा शिक्षक विद्यार्थी परम्परा ने जन्म लिया शिष्य कक्षा कक्ष में उचित स्थान ग्रहण कर

शिक्षक उनके सम्मुख खड़ा होकर विद्याध्ययन कराता। जब तक आँखों का आँखों से संपर्क नहीं हो अर्थात Eye Contact न हो तब तक न तो शिक्षक कुछ दे सकता न विद्यार्थि कुछ प्राप्त कर सकता।

शिक्षक जो कक्षा में प्रत्येक विद्यार्थी से सीधा सम्पर्क साधता वही इलेक्ट्रोनिक उपकरण जो शिक्षा का माध्यम बना है वह यह नहीं कर पाता।

शिक्षक अपनी भावभंगिमाओं के माध्यम से विद्याथियो को अध्ययन कराता है एवं अपनी प्रतिमा के माध्यम से सीखाने का प्रयास करता है।

वर्तमान युग में विज्ञान कितने चमत्कारी आविष्कार करले पर घरातल पर जो सिद्ध होगा वही सार्थक होगा।

शिक्षक को हम अनगढ़त बालक देते जिसे वह अपने हाथो से तराशता है और उसे एक मूर्त रूप देता है।

एआई अर्थात कृत्रिम बुद्धिमता आज के दौर में सहायक तो है, परन्तु इससे आने वाले परिणाम भयावह हो सकते हैं।.

एआई या अंगुलिक (डिजिटल) शिक्षा पढ़नेवाले के मस्तिष्क को कमजोर और लिखने की गति शीतल कर देगी।

एक समय आयेगा कि न तो सोचने की क्षमता न विचारों का प्रवाह होगा, लेखनी भी मंथर हो जाएगी।

वर्तमान में यह गैजेट (छोटा उपकरण) प्रासंगिक तो लग रहे पर स्थायीत्व नहीं दे पाएंगे।

जिस प्रकार गुरुकुल समाप्त हुए उसी प्रकार पाठशाला या विद्यालय कहीं ओझल नहीं हो जाए और शिक्षा का केंद्र छोटे से उपकरण में समाकर हमारे हाथों में क़ैद ना हो जाए।

गुरुकुल के समय गुरु की, विद्यालय में शिक्षक की प्रासंगिकता थी, प्रासंगिकता है, प्रासंगिकता रहेगी।

कबीर दास जी ने कहा है-“गुरु बिन ज्ञान कहाँ से पाऊँ”

महाकवि तुलसी ने भी रामचरित मानस में लिखा है-

बंदऊँ गुरु पद पदुम परागा। सुरुचि सुबास सरस अनुरागा।

शिक्षक ही है जो मानव के अंतस में छिपी शक्ति को जागृत कर सकता है।

शिक्षक ही जो अज्ञानता के अंधकार से शिक्षा के उजाले की ओर ले जाता है।

भले ही कृत्रिम बुद्धिमता व अंगुलिक विद्यार्थियों के लिए शिक्षा की दृष्टि से काफ़ी उपयोगी सिद्ध हो सकता है

परंतु शिक्षा में शिक्षक की प्रासंगिकता को नकारा नहीं जा सकता है।..

लेखक – कमल किशोर दाधीच, शिक्षाविद्

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