आगरा में जीवंत हुआ शिवाजी महाराज का पराक्रम — “जाणता राजा” महा नाट्य बना इतिहास और आस्था का संगम

स्थानीय समाचार

आगरा। छत्रपति शिवाजी महाराज के अदम्य साहस, राष्ट्रनिष्ठा और धर्मरक्षण की भावना को जीवंत करते हुए दिव्य प्रेम सेवा मिशन द्वारा प्रस्तुत “जाणता राजा” महा नाट्य का भव्य मंचन शनिवार को ऐतिहासिक गरिमा और सांस्कृतिक आस्था का अद्भुत संगम बन गया। हजारों दर्शकों से खचाखच भरे कलाकृति कन्वेंशन सेंटर में जब भव्य मंच पर शिवाजी महाराज का तेजस्वी व्यक्तित्व जीवंत हुआ, तो पूरा वातावरण “जय भवानी, जय शिवाजी” के नारों से गूंज उठा।

छत्रपति शिवाजी महाराज के अदम्य साहस, राष्ट्रनिष्ठा और धर्मरक्षण की भावना को जीवंत करते हुए दिव्य प्रेम सेवा मिशन द्वारा प्रस्तुत “जाणता राजा” महा नाट्य का भव्य मंचन शनिवार को ऐतिहासिक गरिमा और सांस्कृतिक आस्था का अद्भुत संगम बन गया।

हजारों दर्शकों से खचाखच भरे कलाकृति कन्वेंशन सेंटर में जब भव्य मंच पर शिवाजी महाराज का तेजस्वी व्यक्तित्व जीवंत हुआ, तो पूरा वातावरण “जय भवानी, जय शिवाजी” के नारों से गूंज उठा।

हाथी,घोड़े, ऊंटों ने नाटक ने महा नाट्य की भव्यता को जब बढ़ाया तो उपस्थित दर्शक हतप्रभ से देखते रहे। छत्रपति शिवाजी महाराज के राज्याभिषेक के दृश्यों को आतिशबाजी और संगीत मय मंत्रों की ध्वनि ने आकर्षक रूप दिया।

पद्म विभूषण बाबासाहेब पुरंदरे द्वारा लिखित महा नाट्य का निर्देशन योगेश शिरोले ने किया है और महासचिव अजीत राव आप्टे हैं। अपने सशक्त अभिनय से शिवाजी महाराज के पात्र में अभिजीत पाटाने ने दर्शकों को बांधे रखा।

महा नाट्य दृश्य दर दृश्य

नाटक का प्रारंभ राजमाता जिजाबाई के मातृत्व और शिवाजी को दिए गए धर्मरक्षण के संस्कारों से हुआ। उनकी संवाद प्रस्तुति ने दर्शकों को भावविभोर कर दिया।

युवा शिवाजी द्वारा तोरणा किले पर विजय प्राप्त करने और “हिंदवी स्वराज्य” के उद्घोष ने वातावरण को रोमांचित कर दिया। अफजल खान के वध का दृश्य पूरे नाट्य का शिखर रहा। अफजल खान के छल का अंत शिवाजी के वाघनख से हुआ और सभागार “जय भवानी” के नारों से गूंज उठा।

आगरा की ऐतिहासिक पृष्ठभूमि में शिवाजी और औरंगजेब का सामना विशेष आकर्षण का केंद्र रहा। शिवाजी की संयम, बुद्धिमत्ता और रणनीतिक कौशल ने दर्शकों को अभिभूत कर दिया। यह दृश्य आगरा के लिए भावनात्मक दृष्टि से विशेष महत्व रखता है।

रायगढ़ किले पर राज्याभिषेक का दृश्य नाट्य की भव्यता का शिखर था। मंत्रोच्चार, शंखध्वनि और पुष्पवर्षा के बीच जब शिवाजी महाराज सिंहासन पर विराजमान हुए, तो दर्शकों ने खड़े होकर अभिवादन किया।

अंतिम दृश्य में शिवाजी महाराज द्वारा “जनकल्याण और धर्मरक्षण” की शपथ ने नाटक को भावपूर्ण विराम दिया।

तकनीकी वैभव और कलाकारों का प्रदर्शन

500 से अधिक कलाकारों, तकनीशियनों और स्वयंसेवकों की टीम ने इस प्रस्तुति को ऐतिहासिक स्तर पर जीवंत किया। मंच सज्जा में रायगढ़ दुर्ग, युद्ध दृश्य में अश्वारोहण और तोपों की गर्जना ने वास्तविकता का आभास कराया। निर्देशन, संवाद अदायगी और पार्श्व संगीत ने दर्शकों को 17वीं शताब्दी के स्वराज्य युग में पहुँचा दिया।

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