कुम्भ स्नान सनातन परंपरा का ऐसा पर्व है, जिसमें आस्था, आध्यात्मिकता और संस्कृति का गहन संगम देखने को मिलता है। यह महापर्व केवल धार्मिक अनुष्ठान नहीं, बल्कि आत्मा की शुद्धि, पापों से मुक्ति और जीवन के गहन संदेशों को समझने का एक माध्यम है। समुद्र मंथन की कथा से प्रेरित यह आयोजन चार पवित्र स्थलों – प्रयागराज, हरिद्वार, उज्जैन और नासिक – पर बारह वर्षों में चक्रानुसार होता है। मान्यता है कि अमृत कलश की बूंदें इन स्थानों पर गिरी थीं, और इसी कारण यहाँ स्नान का महत्व अन्यत्र कहीं नहीं है।
प्रयागराज के त्रिवेणी संगम पर, जहाँ गंगा, यमुना और अदृश्य सरस्वती मिलती हैं, कुम्भ स्नान का महत्व कई गुना बढ़ जाता है। यह संगम आत्मा और परमात्मा के मिलन का प्रतीक है। ज्योतिषीय दृष्टि से भी कुम्भ स्नान का समय अत्यंत पवित्र माना गया है। जब सूर्य मकर राशि और गुरु कुंभ राशि में होते हैं, तब यह समय आध्यात्मिक साधना और आत्मशुद्धि के लिए सर्वोत्तम होता है। ग्रहों की यह स्थिति जल को ऊर्जावान बनाती है, जो स्नान के समय व्यक्ति के मानसिक और शारीरिक स्वास्थ्य पर सकारात्मक प्रभाव डालती है।
कुम्भ स्नान का वैज्ञानिक पक्ष भी उतना ही रोचक है। संगम का जल खनिजों और औषधीय गुणों से भरपूर होता है, जो शरीर को शुद्ध करता है। सामूहिक स्नान और साधना से उत्पन्न सकारात्मक ऊर्जा मानसिक शांति प्रदान करती है। यह केवल व्यक्तिगत शुद्धि का पर्व नहीं, बल्कि सामूहिक चेतना का उत्सव भी है। करोड़ों श्रद्धालुओं का संगम, उनका सामूहिक ध्यान, और मंत्रोच्चार ऊर्जा का ऐसा प्रवाह उत्पन्न करता है, जो हर व्यक्ति को भीतर से नई शक्ति प्रदान करता है।
इस आयोजन की भव्यता भी अद्वितीय है। करोड़ों की संख्या में श्रद्धालुओं के आने के बावजूद यहाँ की व्यवस्थाएँ चौंकाने वाली होती हैं। आधुनिक तकनीक और कुशल प्रबंधन ने कुम्भ मेले को विश्व का सबसे बड़ा और व्यवस्थित आयोजन बना दिया है। स्वच्छता, सुरक्षा, और सुविधा का ऐसा संगम शायद ही कहीं और देखने को मिले। सरकार और प्रशासन ने इसे पर्यावरण अनुकूल बनाने के लिए विशेष प्रयास किए हैं, जिससे यह आयोजन न केवल धार्मिक, बल्कि सामाजिक और पर्यावरणीय संदेश भी देता है।
कुम्भ केवल स्नान का पर्व नहीं, बल्कि भारतीय संस्कृति, समर्पण और एकता का प्रतीक है। यह पर्व हमें “वसुधैव कुटुंबकम्” की भावना सिखाता है। जाति, धर्म, और वर्ग की सीमाएँ यहाँ समाप्त हो जाती हैं। हर व्यक्ति संगम के पवित्र जल में एक समान है। यह आयोजन मानवता, समानता और सार्वभौमिक भाईचारे का जीवंत प्रमाण है।
अक्सर यह कहा जाता है कि कुम्भ में स्नान करने से पापों से मुक्ति मिलती है। यह धारणा भले ही प्रतीकात्मक हो, परंतु इसके पीछे का संदेश गहरा है। यह व्यक्ति को आत्मनिरीक्षण और आत्मशुद्धि के लिए प्रेरित करता है। यह हमें हमारे भौतिक जीवन से परे आत्मा की वास्तविकता को समझने का अवसर देता है।
कुम्भ का महत्व केवल सनातन धर्म के अनुयायियों तक सीमित नहीं है। यह आयोजन भारतीय संस्कृति का विश्वव्यापी परिचय कराता है। हर बार लाखों विदेशी पर्यटक यहाँ आते हैं, जो हमारी परंपराओं और जीवन दर्शन को समझने का प्रयास करते हैं।
प्रयागराज में जारी कुम्भ मेला 2025 विश्व भर में सनातनी परम्परा का वाहक होकर कई मायनों में ऐतिहासिक और अभूतपूर्व है। मकर संक्रांति से शुरू हुए इस महापर्व में अब तक करोड़ों श्रद्धालु पवित्र स्नान कर चुके हैं। पहले ही दिन लगभग 1.5 करोड़ श्रद्धालुओं ने संगम में आस्था की डुबकी लगाई। संगम का नजारा अद्भुत और अलौकिक था। आंकड़ा प्रतिदिन बढ़ता ही जा रहा है।
कुम्भ मेले के लिए इस बार सरकार ने विशेष तैयारियां की हैं। 3000 हेक्टेयर भूमि में फैले इस आयोजन के लिए 25,000 से अधिक शौचालय, 20,000 अस्थायी तंबू, और 1.5 लाख से अधिक रोशनी के साधन लगाए गए हैं। आतंकी चेतावनियों के बाद चप्पे चप्पे पर सुरक्षा के कड़े प्रवन्ध किये गये है।सुरक्षा के लिए 50,000 पुलिसकर्मियों की तैनाती और पूरे क्षेत्र में 4000 सीसीटीवी कैमरों की निगरानी हो रही है
संगम पर साधु-संतों के अखाड़ों की शोभायात्राएं, नागा साधुओं की अलौकिक साधनाएं, और गंगा आरती का दिव्य नजारा हर किसी को अभिभूत कर देता है। इस आयोजन में लाखों विदेशी पर्यटक भी हिस्सा ले रहे हैं, जो भारतीय संस्कृति और अध्यात्म की गहराइयों को समझने के लिए यहां पहुंचे हैं।
कुम्भ मेला हमें यह सिखाता है कि धर्म केवल पूजा-पाठ तक सीमित नहीं, बल्कि यह समाज, प्रकृति, और मानवता के साथ सामंजस्य का मार्ग है। यह आयोजन हर बार इस सत्य को दोहराता है कि आस्था, अध्यात्म और विज्ञान का संगम ही जीवन को पूर्ण बनाता है।
-up18News
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