साहित्य अकादमी युवा पुरस्कार और माफ़िया गैंग: क्या साहित्य में माफ़िया गैंग का प्रवेश हो चुका है?

अन्तर्द्वन्द

डॉ सत्यवान सौरभ

इस बार की साहित्य अकादमी युवा पुरस्कार की अंतिम घोषणा पूर्णतः जाली और संशयाधीन प्रतीत हो रही है। इससे बड़ी साहित्यिक दुर्घटना और क्या हो सकती है? इन मानदंडों पर चलते हुए हम कहाँ जा रहे हैं? समाज को क्या सीख दे रहे हैं? क्या इन्हीं अनैतिक मूल्यों के साथ आज का युवा और उनका साहित्य टिका हुआ है? साहित्य को गोरखधंधा बना दिया गया है। बहुत ही शर्म और जहालत की बात है। क्या साहित्य में माफ़िया गैंग का प्रवेश हो चुका है? आख़िर क्या हो रहा है?

कल केंद्रीय साहित्य अकादेमी द्वारा 2024 के युवा व बाल साहित्य पुरस्कारों की घोषणा की सोशल मीडिया पर खबर के बाद बधाईयों के साथ- साथ, जैसे अकादेमी पुरस्कारों को लेकर हर साल होता रहा है, कोई न कोई सवाल, विवाद तो उठता ही उठता है, इस बार भी कुमार सुशांत ने प्रविष्टि की अंतिम तिथि, और उसके बाद छपी पुस्तकों पर सवाल उठाते हुए पोस्ट लिखी तो जाहिर है मामला तूल पकड़ना ही था, कई प्रतिक्रियाएं, सवालों के रूप में सामने आ रही हैं. अकादमी के किसी भी नियम में अंतिम तिथि के बाद प्राप्त किताबों पर विचार के लिए कहीं कोई विशेषाधिकार का जिक्र या प्रावधान नहीं है।

नियम -३ के बिन्दु (६) में स्पष्ट लिखा है कि २४ भारतीय भाषाओं में प्राप्त सुयोग्य पुस्तकों की सूची संबध्द भाषा परामर्श मण्डल के (संयोजक सहित) सभी सदस्यों को इस अनुरोध के साथ भेजी जाएगी कि वे अकादेमी द्वारा निर्धारित तिथि तक दो पुस्तकों का अनुमोदित करें.

नियम ७ – विविध के पहले पैराग्राफ में यह जरूर लिखा है कि यदि भाषा परामर्श मण्डल के किसी सदस्य या निर्णायक के द्वारा संस्तुति भेजने की समय सीमा की अनदेखी की जाती है तो अकादेमी यह मानकर चलेगी कि उसकी कोई संस्तुति नहीं है और तदनुसार अपनी पुरस्कार प्रक्रिया को आगे बढ़ाएगी सिवाय उस विशेष परिस्थिति के जिसमें अकादेमी समय- सीमा को बढ़ा पाने की स्थिति में हो तथा वास्तव में उसे बढ़ाती हो.

आश्चर्य की बात जिन तीन लोगों के बारे में सवालिया निशान हैं वे तीनों ज्यूरी के द्वारा रेकॉमेंडेड हैं यानी तीनों पुस्तकों की पैरवी की गई है। वाह रे साहित्य अकादमी। कमाल तो यह कि तीन पैरवी वाले लोगों में एक को पुरस्कार दिया गया है। अब ज्यूरी कितनी ईमानदार है यह सोचने वाली बात है। कहीं ऐसा तो नहीं कि लिस्ट में जितने नाम आये हैं वे सभी ज्यूरी द्वारा रेकॉमेंडेड ही हैं। कहीं ऐसा तो नहीं रेकॉमेंडेड नाम पर ही केवल विचार हुआ और जो लेखक निर्धारित समय के भीतर अपनी पुस्तक जमा किये उनकी पुस्तक पर ( रिकमेंड न होने के कारण ) विचार ही नहीं किया गया। लिस्ट में शामिल किस किताब को किस ज्यूरी मेंबर ने रेकॉमेंड किया क्या साहित्य अकादमी यह बतलायेगी ?

प्रसिद्ध आलोचक,कवि, लेखक नवनीत पांडेय के अनुसार सवाल यह है कि अगर अकादेमी अपनी विञप्ति में घोषित अंतिम तिथि में परिवर्तन नहीं करती है या बिना पब्लिक सूचना तिथि केवल निर्णायक पैनल को ही व्यक्तिश: सूचित कर तिथि बढ़ा देती है तो बात अलग है, बावजूद इसके किसी नियम में यह कहीं लिखा है कि निर्णायक मण्डल या पैनल को अंतिम तिथि के बाद प्राप्त या किसी व्यक्तिगत जानकारी,सोर्स से प्रकाशित किताब को सूची में शामिल कर, करा सकता है.

यदि इन नियमों में कोई संशोधन नहीं हुआ है, यही हैं तो इनके प्रावधानों की जानकारी के बावजूद भी अगर निर्णायक मण्डल, पैनल तिथि के बाद प्राप्त, प्रकाशित किताबों पर विचार कर उसे अंतिम सूची में शामिल कर उन्हें पुरस्कार योग्य पाती है, पुरस्कार घोषित करती है तो अवश्य ही ये प्रतिभाए अप्रतिम और विलक्षण हैं, इस में संदेह नहीं होना चाहिए.

याद दिला दूँ कि साहित्य अकादमी युवा पुरस्कार-2024 हेतु आवेदन और प्रविष्टि जमा करने की अंतिम तिथि 31 अगस्त 2023 थी। साहित्य अकादमी ने पुरस्कार की घोषणा के साथ जिन 12 लेखकों का नाम प्रकाशित किया है उनमें दो लेखकों की पुस्तक आवेदन की तिथि के बाद आयी है। पहले लेखक हैं शहादत और दूसरे विहाग वैभव। शहादत की पुस्तक ‘कर्फ़्यू की रात’ लोकभारती प्रकाशन से 2024 में पब्लिश हुई यानी आवेदन की अंतिम तिथि के 5 महीने बाद और विहाग वैभव की पुस्तक राजकमल प्रकाशन से सितम्बर 2023 में प्रकाशित हुई यानी आवेदन की अंतिम तिथि के एक महीने बाद।

पाठक दोनों पुस्तक के प्रकाशन का प्रमाण गूगल में देखें। ऐसी स्थिति में साहित्य अकादमी ने इन दोनों लेखकों की पुस्तकों पर विचार कैसे किया? इन दोनों पुस्तकों का नाम अंतिम सूची में कैसे है? नियमतः तो यह अमान्य और अनैतिक है। इस विषय पर शोध करने के दौरान पाया कि पुरस्कृत लेखक की पुस्तक 30 अगस्त 2023 को प्रकाशित हुई और 31 अगस्त 2023 आवेदन की अंतिम तिथि थी। एक दिन में स्वयं लेखक महोदय पुस्तक प्रकाशक से लेकर साहित्य अकादमी के कार्यालय कैसे पहुंचा दिए? क्योंकि साहित्य अकादमी की प्रेस विज्ञप्ति में साफ-साफ लिखा है कि “आवेदक को पुस्तक की दो प्रतियाँ स्वयं प्रमाणित जन्म प्रमाण पत्र के साथ जमा करानी होगी।”

साहित्य अकादमी से अनुरोध है कि इसपर ग़ौर फ़रमाया जाए और तुरन्त काररवाई करते हुए साहित्य अकादमी युवा पुरस्कार 2024 की घोषणा वापिस ली जाए। नए सिरे से पुरस्कृत युवा की नयी घोषणा की जाए. यह अन्य समर्थ युवा लेखकों के साथ ज़्यादती है। यह तो बहुत गंभीर मामला है, पारदर्शिता का दावा करने वाली अकादमी के लिए बहुत ही अपमानजनक भी, लेखकों को संज्ञान लेना चाहिए, अकादमी सचिव, अध्यक्ष से जवाब तलब करना चाहिए। सुशांत जी, आपने प्रमाण सहित जो साहित्य अकादमी की पोल खोली है उस पर सभी साहित्यकारों की दृष्टि जानी चाहिए। अब इन पुरस्कारों का कोई मूल्य नहीं रह गया। क्या इनके सदस्य भी प्रायोजित होते हैं और निर्णायक भी। कम से कम साहित्यिक पुरस्कारों को पारदर्शिता अवश्य रखनी चाहिए। उचित लेखन का मूल्यांकन करके ही पुरस्कार घोषित होने चाहिए।

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