विज्ञान या आस्था: केंद्रीय मंत्री अनुराग ठाकुर के बयान पर उठते सवाल

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क्या आज भारत की राजनीति में इतिहास और विज्ञान के बीच की रेखा इतनी धुंधली हो गई है कि एक केंद्रीय मंत्री छात्रों के सामने मनगढ़ंत दावे पेश कर रहे हैं? हाल ही में भाजपा सांसद अनुराग ठाकुर ने एक स्कूल कार्यक्रम में बच्चों के ज्ञान पर सवाल उठाते हुए जो बयान दिया, वह चिंताजनक और हास्यास्पद दोनों है।

हमीरपुर से सांसद अनुराग ठाकुर एक स्कूल कार्यक्रम में गए। सामने सैकड़ों बच्चे बैठे थे, जो देश का भविष्य हैं। सवालों का दौर शुरू हुआ। अनुराग ठाकुर ने पूछा, “अंतरिक्ष में जाने वाला पहला व्यक्ति कौन था?” बच्चों ने एक स्वर में जवाब दिया, “नील आर्मस्ट्रांग।” यह जवाब वही है जो दुनिया भर के स्कूलों में पढ़ाया जाता है, जो विज्ञान और इतिहास के तथ्यों पर आधारित है। लेकिन, ठाकुर साहब को यह जवाब शायद पसंद नहीं आया। उन्होंने बच्चों के ज्ञान को चुनौती देते हुए कहा, “मुझे तो लगता है हनुमान जी थे।”

अब सवाल यह उठता है कि क्या हमारा शिक्षा मंत्री शिक्षा व्यवस्था को धार्मिक कहानियों से संचालित करना चाहता है? क्या अब हमारे स्कूल में पढ़ाया जाएगा कि पहला अंतरिक्ष यात्री नील आर्मस्ट्रांग नहीं, बल्कि हनुमान जी थे? अगर यही नई शिक्षा नीति है, तो इसका भविष्य क्या होगा?

अनुराग ठाकुर ने आगे कहा कि जब तक हमें अपनी हजारों साल पुरानी परंपरा, ज्ञान और संस्कृति का ज्ञान नहीं होगा, तब तक हम वही देखेंगे जो अंग्रेजों ने हमें दिखाया है। लेकिन सच तो यह है कि यह बयान खुद अंग्रेजों की परंपरा को आगे बढ़ाता है, जहाँ तथ्य और विज्ञान की जगह अपनी आस्था को ऊपर रखा जाता है।

यह बयान बच्चों को सही ज्ञान से दूर ले जा रहा है।
अगर अनुराग ठाकुर का यह मानना है कि हमारी परंपरा में विज्ञान का ज्ञान है, तो उन्हें इसे साबित करना चाहिए, न कि बच्चों के सामने इस तरह के हास्यास्पद बयान देना चाहिए। दुनिया भर में वैज्ञानिक खोजों पर सेमिनार होते हैं। वैज्ञानिक अपनी खोजों को तर्क और तथ्यों के साथ पेश करते हैं। अगर अनुराग ठाकुर के पास कोई ऐसा तर्क है, तो उन्हें संयुक्त राष्ट्र में जाकर दुनिया के सामने यह साबित करना चाहिए कि पहला अंतरिक्ष यात्री नील आर्मस्ट्रांग नहीं, बल्कि हनुमान जी थे। उन्हें यह साबित करना चाहिए कि पहला विमान Wright Brothers ने नहीं, बल्कि हमारे ऋषियों ने बनाया था।

लेकिन ये सब छोड़िए, क्योंकि यह सब सिर्फ बच्चों को गुमराह करने के लिए है। अगर अनुराग ठाकुर को अपने ज्ञान और संस्कृति पर इतना गर्व है, तो वे अपने बच्चों को उन्हीं “अंग्रेजों” से पढ़ने के लिए विदेश क्यों भेजते हैं? क्या वे वहाँ भी अपने बच्चों को यही सिखाते हैं कि पहला अंतरिक्ष यात्री नील आर्मस्ट्रांग नहीं, बल्कि हनुमान जी थे?

यह एक गंभीर प्रश्न है। हम अपने बच्चों को किस दिशा में ले जा रहे हैं? क्या हम उन्हें अंधविश्वास और धार्मिक कट्टरता की ओर धकेल रहे हैं? क्या हम उन्हें एक ऐसे भविष्य की ओर ले जा रहे हैं, जहाँ तर्क और विज्ञान का कोई स्थान नहीं होगा? यह हमारे देश के भविष्य के साथ खिलवाड़ है। यह हमारे बच्चों को गुमराह कर रहा है। यह एक ऐसा कदम है जो भारत को विकास और प्रगति के रास्ते से हटाकर पीछे की ओर ले जाएगा।

“क्या हमारे मंत्री जी हमें ये सिखाना चाहते हैं कि अब हमें अपनी ही मान्यताओं के आधार पर विज्ञान की व्याख्या करनी चाहिए? अगर ऐसा ही है तो फिर हमें अपने बच्चों को IIT या IIM जैसे संस्थान में क्यों भेजना चाहिए? क्या हमें उन्हें गुरुकुल भेज देना चाहिए, जहाँ उन्हें बताया जाएगा कि न्यूटन का नियम कोई नियम नहीं है, और आइंस्टीन का सापेक्षता का सिद्धांत कोई सिद्धांत नहीं है? क्या हम अब अपनी वैज्ञानिक प्रगति को दरकिनार कर अंधविश्वास की ओर बढ़ रहे हैं?”

“यह सवाल इसलिए भी उठता है क्योंकि जब इन मंत्रियों के बच्चे विदेश में पढ़ने जाते हैं तो उन्हें क्या सिखाया जाता है? क्या उनके बच्चे भी वहीं पढ़ते हैं कि पहला अंतरिक्ष यात्री नील आर्मस्ट्रांग था? क्या उन्हें वहाँ भी यही पढ़ाया जाता है कि पहला विमान राइट ब्रदर्स ने बनाया था? या फिर वहाँ वे विज्ञान के साथ-साथ अपनी आस्था की बातें भी करते हैं?”

“यह एक गंभीर सवाल है कि हम अपने बच्चों को किस दिशा में ले जा रहे हैं। क्या हम उन्हें एक ऐसे भविष्य की ओर ले जा रहे हैं जहाँ विज्ञान का कोई स्थान नहीं होगा? क्या हम अपने बच्चों को गुमराह कर रहे हैं? यह हमारे देश के भविष्य के साथ खिलवाड़ है।”

मोहम्मद शाहिद की कलम से

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