पूर्वांचल की राजनीति में बड़ा संकेत, पंकज चौधरी की प्रदेश भाजपा अध्यक्षता से ओबीसी समीकरण और योगी–संगठन संतुलन की परीक्षा

Politics

लखनऊ। उत्तर प्रदेश भारतीय जनता पार्टी में संगठनात्मक बदलाव की तैयारी के बीच पूर्वांचल की राजनीति में बड़े संकेत मिलने लगे हैं। केंद्रीय वित्त राज्य मंत्री और महराजगंज से सात बार के सांसद पंकज चौधरी को प्रदेश भाजपा अध्यक्ष बनाए जाने की प्रक्रिया अंतिम चरण में है। शनिवार को केंद्रीय मंत्रियों पीयूष गोयल और विनोद तावड़े की मौजूदगी में संगठनात्मक औपचारिकताएं पूरी की जा रही हैं, जबकि रविवार 14 दिसंबर को उनके नाम की औपचारिक घोषणा होने की संभावना है। यह फैसला न सिर्फ 2027 के विधानसभा चुनावों की दृष्टि से अहम माना जा रहा है, बल्कि मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ और संगठन के बीच संतुलन के सवाल को भी केंद्र में ला रहा है।

पूर्वांचल को साधने की रणनीति

पंकज चौधरी की ताजपोशी को पूर्वांचल में संगठन को मजबूत करने के संकेत के रूप में देखा जा रहा है। महराजगंज जिला गोरखपुर से सटा हुआ है, जिसे मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ का राजनीतिक गढ़ माना जाता है। ऐसे में इसी क्षेत्र से आने वाले एक वरिष्ठ नेता को संगठन की कमान सौंपना भाजपा की क्षेत्रीय संतुलन नीति का हिस्सा माना जा रहा है। वर्तमान प्रदेश अध्यक्ष भूपेंद्र सिंह चौधरी का कार्यकाल जनवरी 2025 में समाप्त होना था, लेकिन खरमास से पहले ही नेतृत्व परिवर्तन का फैसला लिया गया।

कुर्मी कार्ड और ओबीसी समीकरण

पंकज चौधरी कुर्मी समुदाय से आते हैं, जो पूर्वांचल में किसानों और व्यापारियों का मजबूत आधार रखने वाला ओबीसी वर्ग है। 2024 के लोकसभा चुनावों में भाजपा को ओबीसी वोटों में अपेक्षित समर्थन नहीं मिल सका, जबकि सपा–कांग्रेस गठबंधन के पीडीए (पिछड़ा–दलित–अल्पसंख्यक) फॉर्मूले को बढ़त मिली। कुर्मी समुदाय का एक हिस्सा समाजवादी पार्टी की ओर झुका, जिससे भाजपा को नुकसान हुआ। ऐसे में चौधरी की नियुक्ति को ‘नॉन-यादव ओबीसी’ को फिर से एकजुट करने की रणनीति के रूप में देखा जा रहा है।

साधारण परिवार से शीर्ष राजनीति तक का सफर

1964 में जन्मे पंकज चौधरी गोरखपुर क्षेत्र के एक सामान्य कुर्मी परिवार से आते हैं। गोरखपुर विश्वविद्यालय से स्नातक चौधरी ने 1989 में स्वतंत्र उम्मीदवार के रूप में नगर निगम चुनाव जीतकर राजनीति में प्रवेश किया और डिप्टी मेयर बने। 1990 में भाजपा की प्रदेश कार्यकारिणी में शामिल होने के बाद 1991 में महराजगंज लोकसभा सीट से पहली बार सांसद बने। इसके बाद 1996, 1998, 2004, 2014, 2019 और 2024 में जीत दर्ज की। केवल 2009 में उन्हें हार का सामना करना पड़ा। 2021 से वे केंद्र सरकार में वित्त राज्य मंत्री हैं और 2024 में भी यह जिम्मेदारी उन्हें मिली। उनकी छवि एक शांत, संतुलित और विवादों से दूर रहने वाले नेता की रही है।

योगी के साथ रिश्तों पर सियासी चर्चा

पंकज चौधरी और मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ, दोनों पूर्वांचल के प्रभावशाली नेता हैं, लेकिन उनके संबंधों को लेकर समय-समय पर अटकलें लगती रही हैं। कुछ मौकों पर दोनों के बीच राजनीतिक मतभेदों की चर्चा हुई, हालांकि चौधरी ने हमेशा सार्वजनिक रूप से योगी के नेतृत्व को स्वीकार किया है। राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि यह संबंध व्यक्तिगत से अधिक व्यावसायिक और संगठनात्मक है, जिसमें सहयोग तो है, लेकिन अत्यधिक नजदीकी नहीं।

सूत्रों के अनुसार, संगठन में उनकी नियुक्ति से पहले मुख्यमंत्री स्तर पर सहमति बनाई गई है। भाजपा नेतृत्व का मानना है कि 2027 के चुनाव से पहले सरकार और संगठन के बीच बेहतर तालमेल जरूरी है और यह फैसला उसी दिशा में उठाया गया कदम है।

2027 की तैयारी और संगठनात्मक संदेश

भाजपा हमेशा सार्वजनिक रूप से जातिवादी राजनीति से इनकार करती रही है, लेकिन उत्तर प्रदेश जैसे राज्यों में सामाजिक संतुलन उसकी रणनीति का अहम हिस्सा रहा है। पंकज चौधरी की संभावित ताजपोशी से पार्टी ने साफ संकेत दिया है कि वह ओबीसी वोट बैंक को लेकर गंभीर है। साथ ही यह कदम सहयोगी दलों, विशेषकर कुर्मी वोटों पर प्रभाव रखने वाली अपना दल (एस), को भी राजनीतिक संदेश देने वाला माना जा रहा है।

कुल मिलाकर, पंकज चौधरी का प्रदेश भाजपा अध्यक्ष बनना केवल संगठनात्मक बदलाव नहीं, बल्कि 2027 के चुनावों से पहले सामाजिक समीकरण, क्षेत्रीय संतुलन और सरकार–संगठन के तालमेल को साधने की बड़ी रणनीति के रूप में देखा जा रहा है।

साभार – सोशल मीडिया

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *