इंदिरा गांधी — यह सिर्फ एक नाम नहीं, बल्कि ऐसा विराट व्यक्तित्व था जिसकी तुलना विश्व के किसी भी नेता से करना कठिन है। 19 नवंबर 1917 को इलाहाबाद के आनंद भवन में पंडित जवाहरलाल नेहरू और श्रीमती कमला नेहरू के यहां जन्मी इंदिरा बचपन से ही असाधारण दृढ़ता, साहस और राष्ट्रभक्ति की प्रतीक थीं। कश्मीरी ब्राह्मण परिवार में जन्मी यह बालिका आगे चलकर न केवल भारत, बल्कि विश्व राजनीति की धुरी बनी।
बचपन से ही निर्भीकता और देशभक्ति
इंदिरा जी का बचपन संघर्षों से भरा था। कम उम्र में ही उनकी माता कमला नेहरू का देहांत हो गया। पिता पंडित नेहरू अक्सर जेल में रहते थे। ऐसे कठिन समय में भी इंदिरा बालिका ने अद्भुत साहस का परिचय दिया।
एक घटना तो इतिहास में अमर है—सात वर्ष की उम्र में जब अंग्रेज पुलिस आनंद भवन में कुर्की करने आई, तब अकेली इंदिरा ने पुलिस से घर का सामान बचाने के लिए डटकर मुकाबला किया। छोटी-छोटी मुट्ठियों से पुलिस वालों पर प्रहार करती यह बालिका अंग्रेजों के सामने झुकने वाली न थी।
यही नहीं, स्कूल में पढ़ते हुए उन्होंने “वानर सेना’’ बनाकर स्वतंत्रता संग्राम में सक्रिय सहयोग किया। तिरंगा फहराने के लिए उन्होंने बच्चों का समूह बनाया, अंग्रेजी पुलिस ने रोकने की कोशिश की लेकिन लाठी खाने के बावजूद इंदिरा ने झंडा झुकने नहीं दिया। यह बाल साहस बाद में उनके व्यक्तित्व की पहचान बना।
राजनीति की धारा में प्रवेश
इंदिरा जी ने फिरोज गांधी से विवाह किया और दो पुत्र—राजीव गांधी और संजय गांधी—की माता बनीं। इस दौरान पिता पंडित नेहरू का निधन हुआ। लाल बहादुर शास्त्री ने उनकी राजनीतिक प्रतिभा को पहचानते हुए उन्हें सूचना एवं प्रसारण मंत्री बनाया।
शास्त्री जी के ताशकंद में निधन के बाद देश को ऐसे नेतृत्व की आवश्यकता थी जो भारत को कठिन अंतरराष्ट्रीय परिस्थितियों से पार करा सके—और यह दायित्व इंदिरा जी को मिला। इसके बाद प्रियदर्शिनी इंदिरा गांधी भारत की प्रथम महिला प्रधानमंत्री बनीं और इतिहास का नया अध्याय लिखा।
एक सशक्त नेता—जो राष्ट्रहित में निर्णय लेने से नहीं डरती थीं
इंदिरा जी की नेतृत्व क्षमता अद्वितीय थी। उनके शासनकाल में अनेक महत्वपूर्ण निर्णय हुए—
● हरित क्रांति की शुरुआत
जिसने भारत को खाद्यान्न आत्मनिर्भरता प्रदान की।
● गरीबी हटाओ का नारा
गरीबों के सशक्तिकरण को नई दिशा मिली।
● राजा–महाराजाओं के प्रिवी पर्स समाप्त
समानता पर आधारित शासन की मजबूती।
● बैंकों का राष्ट्रीयकरण
देश के आर्थिक ढांचे को स्थिरता और जनता को बैंकिंग सुविधा।
● जमींदारी उन्मूलन
सामाजिक न्याय की दिशा में बड़ा कदम।
● 1971 का भारत–पाक युद्ध : निर्णायक विजय
इंदिरा जी ने पाकिस्तान के दो टुकड़े कर दुनिया को भारत की ताकत का एहसास कराया। जनरल नियाज़ी सहित 93,000 पाक सैनिकों ने भारतीय सेना के सामने आत्मसमर्पण किया—दुनिया के इतिहास में सबसे बड़ा सैन्य सरेंडर।
इसी युद्ध के बाद 1971 में उन्हें भारत रत्न और 1972 में अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया।
इंदिरा जी : धर्मनिरपेक्षता की सच्ची प्रतिमूर्ति
प्रधानमंत्री होते हुए भी इंदिरा गांधी हर धर्म का सम्मान करती थीं। जहां जातीं—मंदिर, मस्जिद, गुरुद्वारा और गिरजाघर—सभी में अवश्य जाती थीं। देश के हर वर्ग और संप्रदाय से संवाद बनाए रखना उनके व्यक्तित्व की विशेषता थी।
व्यक्तिगत संस्मरण—जब इंदिरा जी आगरा आईं
2 अक्टूबर 1978 को जब यमुना में बाढ़ आई, तब इंदिरा जी आगरा पहुंचीं। मुझे उन्हें पास से देखने, चरण स्पर्श करने और उनके दृढ़ व्यक्तित्व को महसूस करने का सौभाग्य मिला। उनकी उपस्थिति ही जन–जन में ऊर्जा भर देती थी।
उसके बाद जनता पार्टी सरकार ने उन्हें दिल्ली में गिरफ्तार कर लिया। किंतु उनकी लोकप्रियता इतनी विशाल थी कि पूरे देश में विरोध की लहर दौड़ गई। जेलें भर गईं। मैंने भी तत्कालीन जिला कांग्रेस अध्यक्ष पंडित मदनलाल शर्मा के नेतृत्व में गिरफ्तारी दी थी। सरकार को कुछ ही घंटों में उन्हें रिहा करना पड़ा।
विश्व–राजनीति की सशक्त आवाज
इंदिरा गांधी की लोकप्रियता केवल भारत तक सीमित नहीं थी। वे निर्गुट आंदोलन की 145 देशों की नेतृत्वकारी आवाज थीं। अमेरिका जैसे शक्तिशाली राष्ट्र भी उनकी दृढ़ता और राजनीतिक समझ का सम्मान करते थे।
वे कहावत की प्रतिमूर्ति थीं— “धरा पर रहकर भी आसमान को छू लेने वाली नारी।”
राष्ट्र के लिए जन्मीं और राष्ट्र पर बलिदान हो गईं
31 अक्टूबर 1984 को इंदिरा गांधी ने देश के लिए अपना सर्वस्व न्योछावर कर दिया। उनका जीवन विविधताओं, संघर्षों और राष्ट्रभक्ति का अद्वितीय संगम था। राष्ट्र की सेवा में उनका हर क्षण समर्पित रहा।
मेरी दृष्टि में—
यह हिंदुस्तान था—और उसकी जान थीं इंदिरा।
वह एक नारी नहीं—पूरा जहान थीं इंदिरा।
अपने प्यारे वतन पर हर पल कुर्बान थीं इंदिरा।
आज उनकी जयंती पर संकल्प
इंदिरा गांधी का जन्मदिन राष्ट्र सुरक्षा, एकता और समानता का संकल्प लेने का दिन है। आइए, उनके आदर्शों को अपनाकर सांप्रदायिक और जातीय ताकतों को कमजोर करें और एक मजबूत भारत का निर्माण करें।
जय भारत। जय हिंद। जय इंदिरा।
लेखक : रमाशंकर शर्मा ‘एडवोकेट’, अध्यक्ष—राजीव गांधी बार एसोसिएशन, आगरा
