जैन श्वेताम्बर पर्युषण महापर्व का शुभारंभ: जैन स्थानक महावीर भवन में बह रही है धर्म, तप और ज्ञान की त्रिवेणी

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आगरा । श्री श्वेताम्बर स्थानकवासी जैन ट्रस्ट, आगरा के तत्वावधान में जैन स्थानक महावीर भवन में आयोजित चातुर्मासिक कल्प आराधना के अंतर्गत आज पर्युषण महापर्व का शुभारंभ अत्यंत श्रद्धा और उल्लास के साथ हुआ। इस पावन अवसर पर आगरा के स्थानीय श्रद्धालुओं के साथ दिल्ली और मुज़फ्फरनगर से पधारे धर्मप्रेमियों ने धर्मगंगा में डुबकी लगाकर आत्मशुद्धि की ओर कदम बढ़ाया।

श्रुतज्ञान की आराधना और आगम वाचन:

आगम ज्ञान रत्नाकर बहुश्रुत पूज्य श्री जय मुनि जी ने पर्युषण पर्व की महत्ता पर प्रकाश डालते हुए बताया कि यह पर्व जैन धर्म का अनूठा आध्यात्मिक उत्सव है, जिसमें आगम श्रवण, नवकार महामंत्र का जाप, त्याग-तपस्या और पौषध जैसे व्रतों का विशेष महत्व है। उन्होंने बताया कि चातुर्मास के पचासवें दिन संवत्सरी पर्व मनाया जाता है, जो क्षमा और आत्मशुद्धि का पर्व है।

इस अवसर पर श्री अन्तकृतदशांग सूत्र का वाचन आरंभ हुआ, जिसमें आठ अध्यायों के माध्यम से कर्म बंधन से मुक्ति प्राप्त करने वाले सिद्ध आत्माओं का वर्णन है। पूज्य श्री ने भगवान अरिष्टनेमि और भगवान महावीर के शासनकाल की दस मुक्त आत्माओं की कथा सुनाई, जिनमें गौतम कुमार की कथा विशेष रूप से भावविभोर कर गई। उन्होंने प्राकृत भाषा के अध्ययन और आगम प्रतिलेखन की प्रेरणा देते हुए श्रुतज्ञान की आराधना को जीवन का अंग बनाने का संदेश दिया।

गुरुवर आदीश मुनिजी का प्रेरक संदेश:

गुरु हनुमंत हृदय सम्राट पूज्य श्री आदीश मुनिजी ने पर्युषण पर्व को कल्पवृक्ष की संज्ञा देते हुए कहा कि यह पर्व आत्मा को भवरोग से मुक्त करने वाला है। उन्होंने वीतराग प्रभु महावीर के पावन शासन की महिमा का वर्णन करते हुए श्रद्धालुओं को ज्ञान, दर्शन, चारित्र और तप की वृद्धि की शुभकामनाएं दीं। गुरुवर ने अन्तकृतदशांग सूत्र की मूल वाचना प्रस्तुत की, जिसका भावार्थ पूज्य जय मुनि जी ने सरल भाषा में समझाया।

पूज्य श्री आदित्य मुनि जी का मार्गदर्शन:

पूज्य श्री आदित्य मुनि जी ने जिनवाणी श्रवण को आत्मज्ञान का स्रोत बताते हुए कहा कि शिष्य को गुरु के समक्ष तर्क-वितर्क नहीं करना चाहिए। सम्यक ज्ञान, दर्शन और चारित्र की प्राप्ति के बाद जीवन में किसी अन्य साधन की आवश्यकता नहीं रहती। धर्मसभा के अंत में जयमुनि जी ने “श्री मुनि सुव्रतनाथाय नमः” की माला का जाप का व्रत और श्रद्धालुओं को कच्ची हरी का त्याग, चौविहार, तिविहार, शील व्रत पालन, क्रोध त्याग और बुराई से दूर रहने की शपथ दिलाई।

तपस्वियों की तप आराधना:

पर्युषण पर्व के प्रथम दिन तप की आराधना में निम्न तपस्वियों की तपशक्ति विशेष रूप से उल्लेखनीय रही:

श्रीमती सुनीता जी दुग्गड़ 24 उपवास ,
श्रीमती नीतू जी मनानी 11 उपवास,
श्री मनोज जी जैन 10 उपवास,
श्री पीयूष जी लोहड़े 6 उपवास ,

इसके अतिरिक्त अनेक श्रावक-श्राविकाएं निरंतर एकासना, आयम्बिल और अन्य तपों में संलग्न हैं, जो आत्मा की शुद्धि और मोक्षमार्ग की ओर अग्रसर हैं।

समापन भाव:

पर्युषण महापर्व का यह शुभारंभ न केवल धार्मिक उल्लास का प्रतीक है, बल्कि आत्मा की गहराइयों में उतरने का अवसर भी है। यह पर्व हमें आत्मनिरीक्षण, क्षमा, संयम और ज्ञान की ओर प्रेरित करता है। श्री श्वेताम्बर स्थानकवासी जैन ट्रस्ट द्वारा आयोजित यह आयोजन जैन समाज के लिए एक आध्यात्मिक संजीवनी बनकर उभरा है।

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