आगरा: आगम ज्ञान रत्नाकर, बहुश्रुत परम पूज्य श्री जयमुनि जी महाराज ने आज आगरा में जैन श्वेताम्बर स्थानकवासी जैन ट्रस्ट के तत्वावधान में महावीर भवन जैन स्थानक में चातुर्मास प्रवचनों के दौरान दामाद के प्रति सम्मान और करुणा के महत्व पर विशेष जोर दिया। उन्होंने कहा कि दामाद का सम्मान बेटी के सुख से सीधा जुड़ा है और जिसकी बेटी सुखी होती है, उसके माता-पिता का यह लोक सुखी रहता है।
महाराज श्री ने पारिवारिक संबंधों में महावीर के करुणा भाव पर प्रकाश डालते हुए भगवान महावीर और उनके दामाद जामाली के संबंध का उदाहरण दिया। उन्होंने बताया कि जामाली, भगवान महावीर के निकट संबंधी के बेटे थे और उनके प्रवचन सुनकर भोग-विलासिता त्यागकर वैराग्य धारण किया। बाद में, गुरु-शिष्य के संबंध में कुछ मतभेद होने पर भी भगवान महावीर ने करुणा का भाव बनाए रखा।
कर्म और कर्मफल की विविध विचारधाराएं:
पूज्य श्री ने कर्म और कर्मफल के संबंध में विभिन्न विचारधाराओं पर चर्चा की। उन्होंने उन लोगों का उल्लेख किया जो बिना कर्म किए फल की इच्छा रखते हैं, और उन लोगों की भी बात की जो मानते हैं कि जैसा कर्म करोगे, वैसा ही फल भोगोगे। इसके अतिरिक्त, उन्होंने भगवद् गीता के ‘कर्म करो, फल की इच्छा न करो’ के सिद्धांत और भगवती सूत्र के ‘कर्म व कर्मफल एक ही है’ के सिद्धांत की तुलना की।
गुरु चरणों में आकर जीवन में नयापन लाने का संदेश:
गुरु हनुमंत हृदय सम्राट पूज्य श्री आदीश मुनि जी ने अपने उद्बोधन में श्रावकों को गुरु चरणों में आकर जीवन में सकारात्मक बदलाव लाने का आह्वान किया। उन्होंने कहा कि जिस प्रकार हम घर से पुराना सामान निकालते हैं, उसी प्रकार हमें अपनी जिंदगी से कड़वे प्रसंग और गंदी आदतें निकालकर जीवन को बदलना चाहिए। उन्होंने अंतर्मन की ज्योति जलाने और सद्गुणों को बढ़ाने पर भी जोर दिया।
सुख पाने के सूत्र: गरीब और गरीबी का साक्षात्कार
‘सुख पाने के सूत्र’ विषय पर उद्बोधन देते हुए महाराज श्री जयमुनि जी ने सुख प्राप्त करने के लिए गरीब और गरीबी का साक्षात्कार करने की सीख दी। उन्होंने कहा कि धनी होना भाग्य पर निर्भर करता है और यह सुख का सही मापदंड नहीं है। सुख चाहने के लिए संसार
में अपने से नीचे वाले को देखने और धर्म क्षेत्र में ऊँचे वाले को देखने का सूत्र बताया।
नीचे वालों को देखने से आधी से ज्यादा जनता के अभावग्रस्त होने का बोध होगा, जिससे मन में करुणा जागृत होगी। उन्होंने अपनी क्षमतानुसार दान करने और फिजूलखर्ची से बचने की प्रेरणा दी, ताकि जीवन सार्थक हो सके और धन का अहंकार भी परेशान न करे। करुणा भावना से चिंतन करने से आत्मीय सुख की प्राप्ति होगी।
साधुओं के पांच महाव्रत और गृहस्थ के बारह व्रत:
श्री विजय मुनिजी ने साधुओं के पांच महाव्रत और गृहस्थ के बारह व्रतों पर विस्तार से चर्चा की। उन्होंने गृहस्थों से अपनी क्षमता के अनुसार इन व्रतों का पालन करने का नियम बनाने को कहा। क्रोध, मान, माया और लोभ का त्याग करने तथा मन एवं वचन से नियम पालन में सहृदयता अपनाने से इसी लोक में स्वर्ग सुख की प्राप्ति हो सकती है।
धर्म सभा के अंत में, पूज्य गुरुदेव ने उपस्थित श्रावकों को आज की माला के क्रम “अभ्यंकरे वीर अनन्त चख्खु” मंत्र का जाप बताया और आज के त्याग के रूप में पिज्जा, पास्ता, पेस्ट्री और खाने में जूठन न छोड़ने की शपथ दिलाई। चातुर्मास में श्रावक बढ़-चढ़कर तपस्या में भाग ले रहे हैं, जिसमें बालकिशन जी का इक्कीसवाँ आयम्बिल, दिव्या जैन का आठ और उमारानी का पांच उपवास तप जारी है। बुधवार की धर्म सभा में बड़ौत, गौहाना, नरेला, लुधियाना और दिल्ली से भी धर्म प्रेमी उपस्थित थे।
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