पाकिस्तान के प्रधानमंत्री शहबाज शरीफ ने दूसरी बार सत्ता संभालने के तुरंत बाद ही संसद के अंदर दिए अपने भाषण में जम्मू- कश्मीर की रट लगाना शुरू कर दिया। शहबाज ने पहले पाकिस्तान की कंगाली का मुद्दा उठाया और अचानक से कश्मीर पर पहुंच गए। शहबाज शरीफ के इस रुख पर अब अमेरिका में पाकिस्तान के पूर्व राजदूत हुसैन हक्कानी ने कड़ी फटकार लगाई है।
हक्कानी ने कहा कि साल 1948 से प्रत्येक पाकिस्तानी नेता ने कश्मीर का मुद्दा उठाया है। उन्हें बार-बार कश्मीर का राग अलापने की बजाय पाकिस्तान और पाकिस्तानी जनता के बारे में बात करनी चाहिए। हक्कानी ने शहबाज को चीन के पूर्व राष्ट्रपति जियांग जेमिन से सीख लेने की नसीहत दे डाली।
हक्कानी ने एक्स पर लिखा कि पाकिस्तानी प्रधानमंत्रियों को बार-बार कश्मीर का मुद्दा उठाने की बजाय उन्हें पूर्व चीनी राष्ट्रपति जियांग जेमिन की सलाह पर विचार करना चाहिए। जियांग जेमिन ने साल 1996 में कहा था, ‘अगर कुछ मुद्दों का कुछ समय के लिए समाधान नहीं हो सकता है तो उन्हें अल्पकालिक समय के लिए छोड़ देना चाहिए और सामान्य रिश्ते बनाने चाहिए।’
इससे पहले पाकिस्तान के नवनिर्वाचित प्रधानमंत्री शहबाज शरीफ ने रविवार को संसद में अपना पहला भाषण दिया। यह 8 फरवरी को हुए आम चुनावों के बाद एक महीने तक चले राजनीतिक गतिरोध के बाद आया है, जिसमें वोट में धांधली के आरोप लगे थे।
अपने संबोधन में शहबाज शरीफ ने कश्मीर और गाजा पट्टी के बीच समानता बताई। उन्होंने ‘दोनों क्षेत्रों को मुक्त करने’ के लिए एक प्रस्ताव का आह्वान किया और नेशनल असेंबली से कश्मीरियों और फिलिस्तीनियों की स्वतंत्रता का समर्थन करने का आग्रह किया। पड़ोसी देशों के साथ संबंधों को बेहतर बनाने की इच्छा व्यक्त करते हुए शहबाज शरीफ ने किसी भी खास देश का उल्लेख करने से परहेज किया।
उन्होंने समान संबंध बनाए रखने के महत्व पर जोर दिया। संसदीय मतदान में शहबाज शरीफ ने 201 वोट हासिल किए और पूर्व प्रधानमंत्री इमरान खान के समर्थकों द्वारा समर्थित उम्मीदवार उमर अयूब खान को हराया। पाकिस्तान के पहले सैन्य तानाशाह के पोते अयूब को 92 वोट मिले।
पीएम मोदी ने शहबाज को दिया सख्त संदेश
शहबाज ने जहां कश्मीर को लेकर भारत के खिलाफ जहर उगला, वहीं भारत के प्रधानमंत्री ने शहबाज शरीफ को एक लाइन का बधाई संदेश देकर उन्हें कड़ा संदेश दे दिया। भारत ने साफ कर दिया कि वह पाकिस्तान की खोखली अकड़ के आगे झुकने वाला नहीं है। यही नहीं, पाकिस्तान अब भारतीय विदेश नीति के लिए बहुत खास देश नहीं रह गया है। पाकिस्तान इस समय आर्थिक कंगाली से जूझ रहा है और सरकार को फिर से कर्ज के लिए गुहार लगानी पड़ रही है।
-एजेंसी