मुंबई (अनिल बेदाग)। राजा ऋषभदेव के जीवन, दर्शन और सभ्यतागत योगदान को समर्पित तीन दिवसीय अंतरराष्ट्रीय सम्मेलन ‘ऋषभायन 02’ का सफल समापन कोरा केंद्र में हुआ। लब्धि विक्रम जनसेवा ट्रस्ट द्वारा आयोजित इस ऐतिहासिक आयोजन में विद्वानों, संतों, नीति-निर्माताओं, उद्योगपतियों और एक लाख से अधिक नागरिकों की सहभागिता रही, जिसने भारत की प्राचीन ज्ञान परंपरा को सशक्त मंच प्रदान किया।
सम्मेलन में प्रस्तुत ऐतिहासिक व पुरातात्विक साक्ष्यों के आधार पर वक्ताओं ने यह प्रतिपादित किया कि राजा ऋषभदेव भारतीय सभ्यता के मूल प्रवर्तक थे। उद्यमिता, सतत विकास, व्यावसायिक प्रशिक्षण और कौशल-आधारित शिक्षा जैसी अवधारणाओं की जड़ें भारत की अपनी परंपरा में निहित बताई गईं। साथ ही यह भी रेखांकित किया गया कि ‘भारत’ नामकरण का संदर्भ राजा ऋषभदेव के पुत्र चक्रवर्ती सम्राट भरत से जुड़ा है, जिसका उल्लेख श्रीमद्भागवत पुराण में मिलता है।
कार्यक्रम का शुभारंभ भव्य शोभायात्रा से हुआ, जिसके पश्चात जैन गच्छाधिपति यशोवर्मसूरीजी महाराज ने आशीर्वचन एवं आध्यात्मिक प्रवचन दिया। महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस ने धर्म परिषद का उद्घाटन किया और ‘ऋषभायन’ ग्रंथ का लोकार्पण किया। इस अवसर पर 1008 महामंडलेश्वर स्वामी राजेंद्र आनंदगिरि जी, प. पू. कोठारी श्री धर्मानंद स्वामी महाराज, डंडी स्वामी जितेंद्र सरस्वती महाराज, प. पू. महंत दयालपुरी महाराज, शांतिगिरि महाराज और गुरु मौली डिंडोरी सहित अनेक संतों ने राजा ऋषभदेव के जीवन-दर्शन पर अपने विचार साझा किए।
दूसरे दिन शैक्षणिक संस्थानों के साथ समझौता ज्ञापन संपन्न हुए। भारत और विदेशों के 150 से अधिक संस्थानों के विद्वानों ने असि, मसी, कसी, व्यापार-वाणिज्य, ब्राह्मी लिपि, गणित, 72 कौशल और 64 कलाओं जैसे विषयों पर शोध पत्र प्रस्तुत किए। इस दिन केंद्रीय वाणिज्य मंत्री पीयूष गोयल की उपस्थिति भी उल्लेखनीय रही।
कार्यक्रम का प्रमुख आकर्षण 200 से 500 वर्ष पुराने हस्तलिखित ग्रंथों सहित कुल 1,111 ग्रंथों का ऐतिहासिक लोकार्पण रहा, जो मुंबई जैन संघ संगठन के तत्वावधान में संपन्न हुआ। भारतीय कला से प्रेरित भव्य मंच, प्रदर्शनी स्टॉल्स और इंटरएक्टिव प्रस्तुतियों में प्राचीन शिल्प, पारंपरिक व्यवसायिक प्रणालियाँ और ज्ञान-आधारित नवाचार प्रदर्शित किए गए।
समापन दिवस पर महाराष्ट्र के सांस्कृतिक एवं आईटी मंत्री आशीष शेलार उपस्थित रहे। उन्होंने कहा कि ‘ऋषभायन 02’ केवल एक सम्मेलन नहीं, बल्कि एक वैचारिक आंदोलन है, जो आने वाली पीढ़ियों को भारतीय संस्कृति की जड़ों से जोड़ने का कार्य करेगा। सांस्कृतिक प्रस्तुतियों और स्वदेशी कौशल पर संवाद के साथ इस ऐतिहासिक आयोजन का औपचारिक समापन हुआ।
