नमस्कार! मैं मोहम्मद शाहिद, और आज हम उस थाली की बात करेंगे, जिससे करोड़ों लोगों की भूख मिटती है, या मिटने का दावा किया जाता है। केंद्र सरकार ने 22 जुलाई को एक नया फरमान जारी किया है – लक्षित सार्वजनिक वितरण प्रणाली (नियंत्रण) संशोधन आदेश, 2025. ये शब्द सुनकर भले ही आपके कान खड़े न हों, लेकिन इसका सीधा असर आपकी रसोई पर पड़ सकता है.
6 महीने की चुप्पी, 3 महीने की जांच: क्या है सरकार का नया ‘टेस्ट’?
दरअसल, सरकार ने तय किया है कि अगर आपने 6 महीने से राशन नहीं लिया है, तो आपका कार्ड निष्क्रिय मान लिया जाएगा. जी हां, आपने ठीक सुना, निष्क्रिय! अब आप पूछेंगे कि ऐसा क्यों? जवाब बड़ा सीधा है, और उतना ही पेचीदा भी. सरकार का कहना है कि यह अपात्र लोगों को बाहर करने की कवायद है.
निष्क्रिय होने के बाद क्या होगा? 3 महीने के भीतर आपके घर पर जांच होगी, ई-केवाईसी (e-KYC) होगी, और फिर तय होगा कि आप पात्र हैं या नहीं. प्रधानमंत्री गरीब कल्याण अन्न योजना के तहत मुफ्त राशन लेने वाले भी इसी दायरे में आएंगे. देश में 23 करोड़ सक्रिय राशन कार्ड हैं. अब सवाल यह है कि इस कवायद में कितने कार्ड रद्द होंगे? सूत्रों की मानें तो राज्यों में 7% से 18% तक कार्ड रद्द हो सकते हैं. यानी, लाखों-करोड़ों लोग इस दायरे में आ सकते हैं. और क्या आपको पता है, 25 लाख से ज़्यादा कार्ड डुप्लीकेट होने का अंदाज़ा है! सरकार ने राज्यों को आदेश सख्ती से लागू करने को कहा है. एक अधिकारी ने कहा, “इस कवायद का मकसद अपात्रों को बाहर करना है.” लेकिन क्या यह इतना सीधा है?
हर 5 साल में ‘परीक्षा’, बच्चों का आधार और ‘पहले आओ, पहले पाओ’ का खेल
उपभोक्ता तथा खाद्य एवं सार्वजनिक वितरण मंत्रालय के अधिकारियों की मानें तो अब राशन कार्ड की पात्रता सूची की हर 5 साल में जांच होगी. और तो और, कार्ड में दर्ज 5 साल से छोटे बच्चों का आधार नंबर लगेगा. 5 साल पूरे होने पर उनका केवाईसी अनिवार्य होगा. ये सब क्यों? पारदर्शिता के नाम पर.
लेकिन खेल यहीं खत्म नहीं होता. दोहरी एंट्री वालों के कार्ड 3 माह के लिए निलंबित कर केवाईसी की जाएगी. और नया राशन कार्ड कैसे मिलेगा? ‘पहले आओ, पहले पाओ’ के आधार पर. राज्य पोर्टल पर प्रतीक्षा सूची जारी करेंगे. यानी, एक तरफ सरकार सख्ती कर रही है, तो दूसरी तरफ ‘लाइन’ लगाने को कह रही है.
बिहार में फिर सियासी ‘भूचाल’ की आशंका
अब बात बिहार की, जहां सियासत का तापमान अक्सर हाई रहता है. मतदाता सूची विशेष पुनर्निरीक्षण अभियान पर पहले ही सियासी भूचाल आ चुका है, और अब राशन कार्ड से जुड़ा यह आदेश नया विवाद छेड़ सकता है. बिहार में 8.71 करोड़ राशन कार्ड हैं. बिहार के कई सांसदों ने इस फैसले की ‘टाइमिंग’ पर सवाल उठाया है. उनका मत है कि विपक्ष मतदाता सूची की तरह इस फैसले को भी लोगों के राशन कार्ड रद्द करने के तौर पर प्रचारित कर सकता है. क्या सरकार इस सियासी बारूद से खेलने को तैयार है?
पारदर्शिता का ढोल या गरीब की थाली पर वार?
सरकार का कहना है कि गड़बड़ियों को रोकने के लिए ई-केवाईसी प्रक्रिया शुरू की गई है. उनका मकसद राशन वितरण प्रक्रिया को पारदर्शी और भ्रष्टाचार मुक्त बनाना है. ये तो सुनने में बहुत अच्छा लगता है. लेकिन क्या वाकई में ऐसा है?
कई बार देखा गया है कि कुछ लोग फर्जी राशन कार्ड से या पात्र न होने के बावजूद मुफ्त राशन का लाभ लेते हैं. कुछ मामलों में यह भी देखा गया है कि किसी व्यक्ति की मृत्यु के बाद भी उसके नाम पर राशन लिया जाता है. ऐसी ही गड़बड़ियों को रोकने के लिए सरकार ने ई-केवाईसी प्रक्रिया शुरू की है. इस प्रक्रिया के तहत राशन कार्ड धारक और उनके परिवार के सदस्यों की पहचान आधार कार्ड से लिंक की जाती है, ताकि यह सुनिश्चित हो सके कि केवल वास्तविक और जरूरतमंद लोगों को ही मुफ्त राशन का लाभ मिले.
लेकिन सवाल यह है कि इस प्रक्रिया में उन लोगों का क्या होगा, जो वाकई गरीब हैं, लेकिन किसी कारणवश 6 महीने से राशन नहीं ले पाए? या जिनके पास आधार नहीं है, या उसमें कोई दिक्कत है? क्या सरकार ने उन करोड़ों लोगों के बारे में सोचा है, जो हाशिये पर हैं, और जिनके लिए एक वक्त की रोटी भी संघर्ष है?
यह सिर्फ आंकड़ों का खेल नहीं है, यह करोड़ों लोगों के पेट का सवाल है. सरकार को पारदर्शिता चाहिए, भ्रष्टाचार रोकना है, ये सब सही है. लेकिन क्या इस चक्कर में उन लोगों की थाली से निवाला छिन जाएगा, जो वाकई इसके हकदार हैं? यह वह सवाल है, जिस पर सरकार को जवाब देना होगा, और जनता को चौकन्ना रहना होगा.
कहीं ऐसा न हो कि आंकड़ों के फेर में कोई भूखा ही रह जाए.
-मोहम्मद शाहिद की कलम से