फार्म फाइनेंस और वर्किंग कैपिटल में पाँच बड़ी प्रगतियाँ, किसानों की बदली आर्थिक तस्वीर

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किसानों के लिए समय पर मिलने वाला पैसा उतना ही महत्वपूर्ण है जितनी समय पर बरसात। इसी के सहारे वे बीज, खाद, मजदूरी और पशुपालन जैसे जरूरी काम पूरे कर पाते हैं। पहले किसानों को वर्किंग कैपिटल जुटाने में बड़ी चुनौतियाँ थीं और वे साहूकारों पर निर्भर रहते थे। लेकिन बैंकिंग सेक्टर में आए नए बदलावों ने फार्म फाइनेंस को गांवों तक आसान बना दिया है। पेश हैं इस क्षेत्र से जुड़ी पाँच प्रमुख प्रगतियाँ—

1. फसल चक्र के अनुसार लोन चुकाने की सुविधा

अब कृषि लोन में फिक्स मासिक किस्त भरने की बाध्यता नहीं है। किसान अपनी फसल की कटाई और आमदनी के अनुसार लोन चुका सकते हैं। इस मॉडल से किसानों पर संकट के महीनों में आर्थिक दबाव नहीं पड़ता, तनाव कम होता है और कर्ज न चुका पाने के मामले भी घटते हैं। खेती के लिए बढ़ती लोन मांग बताती है कि किसानों के लिए समय पर मिलने वाली वित्तीय सहायता कितनी अहम है।

2. ज़रूरत के हिसाब से स्मार्ट लोन मॉडल

सैटेलाइट इमेज, मौसम के आंकड़े और पिछले रिकॉर्ड के आधार पर अब बैंक हर किसान और फसल के अनुसार लोन का आकलन कर रहे हैं। वित्त मंत्रालय के अनुसार, किसान क्रेडिट कार्ड (KCC) इस प्रणाली की रीढ़ है। 31 दिसंबर 2024 तक 7.72 करोड़ सक्रिय खातों के माध्यम से ₹10.05 लाख करोड़ का ऋण वितरित किया जा चुका है। इससे किसानों को उनकी असली जरूरतों के अनुसार समय पर वित्तीय मदद मिल पा रही है।

3. पूरी तरह डिजिटल लोन प्रक्रिया

अब किसानों को लोन लेने के लिए लंबी कागजी प्रक्रियाओं या चक्कर लगाने की जरूरत नहीं है। ई-केवाईसी और डिजिटल प्लेटफॉर्म के जरिए किसान मोबाइल से ही आवेदन, मंजूरी और भुगतान कर सकते हैं। इससे फसल किसानों को समय पर बीज-खाद तथा डेयरी किसानों को चारा जैसे आवश्यक खर्च पूरा करने में मदद मिली है। डिजिटल प्रक्रिया ने ग्रामीण फाइनेंसिंग को सरल और तेज बनाया है।

4. बीमा से नुकसान की भरपाई

कृषि में सूखा, बाढ़ और कीटों जैसे जोखिम हमेशा बने रहते हैं। प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना (PMFBY) किसानों की इन्हीं चुनौतियों को कम करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रही है। 2016 से लागू इस योजना के तहत अब तक 78 करोड़ आवेदनों के आधार पर ₹1.8 लाख करोड़ से अधिक दावे निपटाए जा चुके हैं। बीमा से किसानों को मुश्किल समय में सहारा मिलता है और वे भरोसे के साथ फिर से लोन ले पाते हैं।

5. खेती से जुड़े खर्च और सुविधाओं का इंफ्रास्ट्रक्चर

बैंक और वित्तीय संस्थान अब किसानों के उत्पाद—जैसे दूध या फसल—की सीधी बिक्री से लोन की रिकवरी कर रहे हैं। इससे किसानों पर अतिरिक्त दबाव नहीं रहता।

एग्रीकल्चर इंफ्रास्ट्रक्चर फंड ने गोदाम, कोल्ड स्टोरेज और प्रोसेसिंग यूनिट में निवेश को बढ़ावा दिया है, जिससे किसान अपनी उपज सुरक्षित रख सकें और बेहतर दाम पा सकें। डेयरी सेक्टर में स्थिर खरीदारी किसानों की आय को स्थिर रखती है और समय पर भुगतान संभव हो पाता है।

कुल मिलाकर, वैल्यू चेन फाइनेंस और इंफ्रास्ट्रक्चर सपोर्ट मिलकर किसानों के लिए स्थायी और मजबूत कैश फ्लो बना रहे हैं।

आगे की दिशा

ये प्रगतियाँ सिर्फ लोन की सुविधा बढ़ाने भर नहीं हैं, बल्कि किसानों में स्थिरता, आत्मनिर्भरता और सहनशीलता बढ़ाने का संकेत देती हैं। नाबार्ड के चेयरमैन शाजी के. वी. (TOI, 15 जुलाई 2025) के अनुसार, वित्त वर्ष 2026 तक कृषि क्रेडिट की मांग ₹32 लाख करोड़ को पार कर जाएगी। ऐसे में बैंक और वित्तीय संस्थानों के लिए ग्रामीण क्षेत्र में अपनी भूमिका और मजबूत करने का बड़ा अवसर है। सरकारी समर्थन और नवीन वित्तीय समाधानों के साथ वे ग्रामीण समृद्धि के महत्वपूर्ण भागीदार बन सकते हैं।

लेखक: उमेश अरोड़ा, हेड – इमर्जिंग बिज़नेस, उज्जीवन स्मॉल फाइनेंस बैंक

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