एल.एस. बघेल, आगरा। राजस्थान की सीमा से केवल आठ किलोमीटर की दूरी पर बसे खेरागढ़ तहसील के गांव चीत से निकले डा. वीडी अग्रवाल आज ताजनगरी ही नहीं आसपास के शहरों के कालोनाइजर्स में सिरमौर हैं। उन्होंने कक्षा एक से लेकर बारहवीं तक की पढ़ाई गांव में ही रहकर पूरी की थी। प्राथमिक पाठशाला चीत में उन्होंने अपनी प्रारंभिक शिक्षा प्राप्त की। यहां से 1962 में पांचवीं कक्षा पास की। इसके आगे की पढ़ाई के लिए गांव में स्कूल नहीं था। इसलिए लगभग दो किलोमीटर दूर भिलावली गांव में कक्षा 6 से लेकर 8 तक की पढ़ाई की। जहां वे गांव के बच्चों के साथ पैदल ही स्कूल जाते थे। उन्हें अच्छी तरह याद है कि भिलावली में एक मौलवी साहब अध्यापक थे। वे खूब मेहनत से बच्चों को पढ़ाते थे। 1965 में उन्होंने कक्षा आठ पास की थी। इस गांव में केवल आठवीं तक का ही स्कूल था। इसलिए दसवीं से बारहवीं तक की पढ़ाई के लिए उन्हें श्री महात्मा दूधाधारी इंटर कालेज नगला विष्णु जाना पड़ा। जो कि गांव से लगभग छह किलोमीटर की दूरी पर था। इस विद्यालय में पढ़ने के लिए वे कभी साइकिल से तो कभी पैदल ही आते- जाते थे। ज्ञातव्य है कि उस जमाने में साइकिल भी बहुत कम छात्रों के पास होती थी। ज्यादातर पैदल ही जाते थे। श्री अग्रवाल के पिताजी बौहरे कुंजीलाल उस जमाने में बूरे का व्यवसाय करते थे। क्षेत्र में सभी लोग उन्हें बौहरेजी कहकर पुकारते थे। 1967 में श्री अग्रवाल ने एसएमडीडी इंटर कालेज दूधाधारी से दसवीं की बोर्ड परीक्षा पास की। वे विज्ञानवर्ग के छात्र थे। इसी विद्यालय से 1969 में उन्होंने बारहवीं की परीक्षा उत्तीर्ण की। इसके आगे की पढ़ाई के लिए गांव के आसपास कालेज नहीं था। इसलिए वे आगरा आ गए। यहां सेंटजोंस कालेज से 1971 में बीएससी पास की।वे बताते हैं कि उस जमाने में सेंटजोंस कालेज का बड़ा नाम था। उनके पिताजी गांव में रहते थे। श्री अग्रवाल ने अपने दम पर सेंटजोंस कालेज में बीएससी में दाखिला लिया था। इसके पश्चात 1972 एमएससी प्रथम वर्ष गणित की परीक्षा आगरा कालेज से और एमएससी फाइनल मैथमैटिक्स आरबीएस कालेज से 1973 में उत्तीर्ण की। बाद में उन्होंने शोध की उपाधि भी ली।
नौकर बनना नहीं था पसंद
डा. वीडी अग्रवाल को नौकर बनना शुरू से ही पसंद नहीं था। पोस्टग्रेजुएट होनो के पश्चात वे 1974 में स्टेट बैंक आफ इंडिया में प्रोवेशनरी आफीसर (पीओ) के पद पर फीरोजाबाद में नियुक्त भी हो गए। लेकिन उन्होंने नौकरी ज्वाइन नहीं की। इसी वर्ष अपने भाईसाहब मुरारीलाल अग्रवाल के साथ मिलकर कचहरी घाट पर मोबिलआयल का कारोबार शुरू कर दिया। 1974 से लेकर 1985 तक यह कारोबार खूब फलाफूला। इसी दौरान पथौली पर एक पेट्रोलपंप भी हमने ले लिया था। मोबिलआयल का कारोबार ताजनगरी से सौ-सौ किलोमीटर से भी ज्यादा की दूरी पर स्थित शहरों जैसे उरई, ग्वालियर, कोसी, मथुरा, मैनपुरी आदि शहरों के थोक व्यापारी उनके यहां से मोबिलआयल लेकर जाते थे।
हिस्से में केवल एक पेट्रोलपंप आया था
श्री अग्रवाल बताते हैं कि 1985 में जब हम दोनों भाई सहमति से अलग हुए तो मेरे हिस्से में केवल एक पेट्रोलपंप जोकि फतेहपुरसीकरी रोड पर पथौली के निकट स्थापित था। यह पंप हमने 7 मई 1980 को सरदार गुरवचन सिंह से खरीदा था। जोकि अब इस दुनियां में नहीं हैं। बड़े भाई मुरारीलाल अग्रवाल को कचहरी घाट का मोबिलआयल का पूरा कारोबार दे दिया था। साथ ही वहां का घर भी उन्हीं को दे दिया था।1985 में ही हम जयपुरहाउस स्थित कोठी नंबर 327 जिसका नंबर भी अग्रवाल को आज भी याद है, उसमें रहने लगे। उस जमाने में वे ठाकुर अनिरुद्ध सिंह को एक हजार रुपये प्रति माह किराया देते थे। कुछ दिन बाद ही जयपुर हाउस में ही प्रभुनगर में 50 हजार रुपये में श्री अग्रवाल ने 235 गज का प्लाट खरीदा। इसे बनवाया और 1986 में ही अपने प्रभुनगर स्थित निवास में रहने लगे। हालांकि अब तो वहां उन्होंने कई मकान खरीद लिए हैं।
खुद की नई फिएट पर कार चलाना सीखा
1985 में उन्होंने पीले रंग की नई फिएट कार खरीदी थी। उसी पर कार ड्राइविंग सीखी। श्री अग्रवाल गर्व से कहते हैं आज तो उनके पास कई कार लग्जरी कार हैं। उन्होंने बताया कि उनके बड़े बेटे पुनीत को महंगी कार खरीदने का बहुत शौक है। जिसे पूरा करने के लिए नई-नई कार खरीदता रहता है।
शुरू में पढ़ाई में नहीं थी रुचि
डा. वीडी अग्रवाल बताते हैं कि बचपन में पढ़ाई से वे दूर भागते थे। उन्हें याद है कि जब वे लगभग साढ़े पांच साल के थे तो उनकी बहन गांव के स्कूल में ही पढ़ने के लिए छोड़ने गयी। वे बहन से हाथ छुड़ाकर काफी दूर तक भाग गए थे। कुछ देर बाद फिर वे स्कूल में आ गए। बाद में तो उन्होंने कक्षा पांच और कक्षा आठ की बोर्ड परीक्षा टाप की थी।