ब्रह्माकुमारीज विश्वभर में लोगों को शुद्ध, सात्विक भोजन और सात्विकता अपनाने की शिक्षा दे रही: डॉ. रामविलास दास वेदांती

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आबू रोड/राजस्थान (निप्र)। ब्रह्माकुमारीज संस्थान के शांतिवन परिसर में चल रहे अखिल भारतीय भगवतगीता महासम्मेलन में वक्तागण रोज नए-नए रहस्यों से रहस्योद्घाटन कर रहे हैं। तृतीय सत्र गीता में मनोविकारों पर विजय हेतु अहिंसक युद्ध का वर्णन है, विषय पर आयोजित किया गया।अयोध्या से आए राम मंदिर आंदोलन से जुड़े व रामजन्मभूमि मंदिर ट्रस्ट के सदस्य डॉ. रामविलास दास वेदांती ने कहा कि ब्रह्माकुमारीज ने शुद्ध सात्विक भोजन बनाने का कार्य न केवल भारत में बल्कि पूरे विश्व में किया है। यहां से लोगों को शुद्ध सात्विक भोजन ग्रहण करने और जीवन में सात्विकता अपनाने की शिक्षा दी जा रही है। इस संस्था में पूरे विश्व में जो कार्य किया है, वह किसी और ने नहीं किया है। सन 2007 में एक सम्मेलन में नेपाल गया था, तो वहां कहीं सात्विक भोजन नहीं मिला तो ब्रह्माकुमारीज में गया, वहां मुझे सात्विक भोजन मिला। मैं 15 दिन आसाम में घूमा और वहां के सेवाकेंद्र पर जाकर भोजन किया। एक बार मैं पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी के साथ अमेरिका गया था, वहां मुझे जब सात्विक भोजन नहीं मिला तो मैंने वहां के ब्रह्माकुमारीज सेवाकेंद्र पर भोजन किया।पहले खुद जीवन में धारण करें ज्ञान- अध्यक्षता कर रहे वरिष्ठ राजयोगी बीके राजू भाई ने कहा कि यह कर्मक्षेत्र है, यहां कोई कर्म संन्यासी नहीं बन सकता है। परमात्मा कहते हैं कि तुम मुझे याद करो तो मैं तुम्हें पापों से मुक्त कर दूंगा। इस ईश्वरीय विश्व विद्यालय की मान्यता है कि जो ज्ञान हम दूसरों को सुनाते हैं वह पहले हमारे भी जीवन में हो। यदि यहां पांच विकारों को छोडऩे की बात कही जाती है तो वह बातें पहले खुद भी धारण करते हैं। परमात्मा अवतरित होकर मनुष्यात्माओं को मुख्य चार सब्जेक्ट बताते हैं- ज्ञान, योग, धारणा और सेवा। वह गीता का सत्य ज्ञान देकर, गति-सतगति, कर्म, अकर्म, विकर्म और सुकर्म, सृष्टि चक्र और चारों युगों का ज्ञान देते हैं। राजयोग के माध्यम से हमारे पापों को नष्ट करने की विधि सिखलाते हैं। जीवन में दिव्य गुणों की धारणा कराकर कमलफूल समान बनाते हैं। जब जीवन में तीन चीजों हो जाती हैं तो आपका जीवन ही सेवामय बन जाता है।गीता ज्ञान सुना लेकिन परिवर्तन क्यों नहीं हुआ- कर्नाटक से आईं गीता विदुषी राजयोगिनी बीके वीणा बहन ने कहा कि आज सबसे बड़ा सवाल यह है कि हम सदियों से गीता ज्ञान सुनते आ रहे हैं लेकिन हमारे जीवन में परिवर्तन क्यों नहीं आया है? गीता में ज्ञानी की परिभाषा दी गई है कि गीता अर्थात् हर बात को जानकर, समझकर उसे जीवन में धारण कर चलने वाले। ज्ञानी पुरुष वही है जिसके जीवन में भी ज्ञान हो। किसी महापुरुष ने कहा कि सौ जन्म लेकर भी ज्ञान नहीं मिला तो मुक्ति नहीं मिलेगी। गीता में वर्णित युद्ध हिंसक हो या अहिंसक हो। लेकिन युद्ध सबसे पहले हमारे मन में शुरू होता है। इसके बाद ही वह कर्म में आता है। दुनिया के पतन का कारण मनोविकार ही हैं। धार्मिक प्रभाग की उपाध्यक्षा बीके गोदावरी ने कहा कि भगवान ने सिखाया है मजबूत बनो, मजबूर नहीं। मजबूर, अधीनता वाले को सपने में भी सुख नहीं मिल सकता है।

श्रीराम के जैसा बनने का पुरुषार्थ भी करें-
वरिष्ठ राजयोग शिक्षिका बीके गीता दीदी ने कहा कि हम मां दुर्गा, मां लक्ष्मी, मां सरस्वती की उपासना-आराधना तो करते हैं लेकिन जब हमारे घर में बेटी उस रास्ते पर चलने का संकल्प करती है। उनके जैसा बालब्रह्मचारी, पवित्र बनने के लिए कहती है तो हम ही उसका साथ नहीं देते हैं। हम सभी श्रीहनुमान जी की महिमा गाते हैं लेकिन जब कोई बालक उनकी तरह जीवन में पवित्रता का व्रत लेने का संकल्प लेता है तो उसे ही रोकते हैं। हमें यह समझना होगा कि आखिर समाज में यह दोहरी मानसिकता क्यों है? श्रीरामजी की महिमा गाते हैं, उनकी शक्तियों, गुणों को याद करते हैं उन्हें पूजते हैं क्योंकि उनके जीवन में पवित्रता थी, लेकिन उनके समान बनने का पुरुषार्थ नहीं करते हैं। परमात्मा सृष्टि पर दो कार्य करते हैं अधर्म का विनाश और सतधर्म की स्थापना। परमात्मा कहते हैं- पवित्र बनो-योगी बनो।

राजयोग कराता है परमात्मा से मिलन-
मुंबई की वरिष्ठ राजयोग शिक्षिका बीके कुंती ने राजयोग का गहन अभ्यास कराया कि मैं एक परमपवित्र आत्मा हूं। मैं आत्मा अजर-अमर-अविनाशी हूं। मैं आत्मा प्रेम स्वरूप, शांत स्वरूप, पवित्र स्वरूप हूं। राजयोग सर्वश्रेष्ठ योग और सब योगों का राजा है जो परमात्मा से मिलन कराता है। संचालन करते हुए दिल्ली की बीके सपना ने कहा कि गीता में लिखा है कि निश्चय बुद्धि विजयंति, संशय बुद्धि विनश्यंति। गायक बीके युगरतन ने गीत प्रस्तुत किया।

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