आगरा: जैन स्थानक महावीर भवन में श्री श्वेताम्बर स्थानकवासी जैन ट्रस्ट, आगरा के तत्वावधान में आयोजित चातुर्मास कल्प आराधना की ज्ञानगंगा में देशभर के श्रद्धालु—हरियाणा, पंजाब, दिल्ली, जम्मू सहित विभिन्न क्षेत्रों से आस्था की डुबकी लगा रहे हैं। यह आध्यात्मिक आयोजन न केवल आगम ज्ञान का विस्तार कर रहा है, बल्कि आत्मचिंतन और जीवन की दिशा को भी गहराई प्रदान कर रहा है।
करुणा के झरने से आत्मा की तृप्ति:
आगम ज्ञान रत्नाकर बहुश्रुत श्री जय मुनि महाराज ने प्रवचन में कहा, “हर तीर्थंकर करुणा का निरंतर बहता झरना हैं। भाग्यशाली साधक उस झरने से अपनी आत्मिक प्यास बुझाकर तिर जाते हैं, जबकि ध्यानविहीन व्यक्ति भयभीत होकर भटकता रहता है।” उन्होंने ध्यान की चार अवस्थाओं—पिंडस्थ, पदस्थ, रूपस्थ और रूपातीत ध्यान—का विस्तार से वर्णन करते हुए बताया कि शुक्ल ध्यान ही मोक्ष की ओर ले जाने वाला मार्ग है।
ध्यान की शक्ति और आत्मविजय का संदेश:
गुरु हनुमंत, हृदय सम्राट श्री आदीश मुनि ने ‘सुख पाने के सूत्र’ श्रृंखला में प्रेरित किया कि “अपने से लड़ना सीखें।” उन्होंने प्रसन्नचन्द्र राजर्षि की कथा सुनाकर बताया कि कैसे ध्यान में विचलन उन्हें युद्धभूमि तक ले गया, पर आत्मबोध ने उन्हें प्रायश्चित की ओर मोड़ा और अंततः केवलज्ञान की प्राप्ति हुई। यह कथा आत्मविजय और ध्यान की शुद्धता का गहन संदेश देती है।
संतों की वाणी और जनजागरण का आह्वान:
आदित्य मुनि ने अपने प्रवचन में कहा, “संत समाज को जगाने आते हैं, पर जागना श्रावकों पर निर्भर करता है।” उन्होंने पक्षी की उड़ान का उदाहरण देकर समझाया कि डर को पार कर ही आत्मा ऊँचाई तक पहुँच सकती है। यह संदेश आत्मबल और साहस की प्रेरणा देता है।
धर्मसभा का समापन: जाप और त्याग की प्रेरणा:
धर्मसभा के अंत में गुरुदेव जय मुनि जी ने आज का जाप “श्री श्रेयांसनाथाय नमः” कराया और श्रद्धालुओं को आज का त्याग—घिया, घेवर, ऊपर से घी का त्याग तथा खाने में झूठा न छोड़ने की शपथ दिलाई। यह त्याग आत्मसंयम और साधना की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है।