यूपी में गंगा किनारे हाईकोर्ट की रोक के बावजूद कैसे हो रहे हैं अवैध निर्माण? NGT ने सरकार से छह हफ्ते में मांगा जवाब

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नई दिल्ली। नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल ने गंगा के किनारे हो रहे अवैध निर्माणों को लेकर नाराजगी जाहिर की है। साथ ही सरकार से छह हफ्ते में हलफनामा दाखिल कर यह बताने को कहा है कि उत्तर प्रदेश में गंगा के किनारे हाईकोर्ट की रोक के बावजूद अवैध निर्माण कैसे हो रहे हैं?

यह आदेश इलाहाबाद हाईकोर्ट की ओर से एनजीटी को स्थानांतरित गंगा प्रदूषण से जुड़ीं 18 जनहित याचिकाओं पर सुनवाई कर रही नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल के चेयरमैन श्रीप्रकाश श्रीवास्तव न्यायिक सदस्य न्यायमूर्ति सुधीर अग्रवाल व दो अन्य विशेषज्ञ सदस्यों की पीठ ने दिया है।

याची अधिवक्ता विजय चंद्र श्रीवास्तव और सुनीता शर्मा का कहना है कि प्रयागराज में हर साल बाढ़ का पानी घरों में घुसने और प्रदूषण की सबसे बड़ी वजह अवैध निर्माण है। हालांकि, नदियों के किनारे हो रहे अवैध निर्माण पर हाईकोर्ट ने रोक लगा रखी है। फिर भी सरकार उच्चतम बाढ़ बिंदु से पांच सौ मीटर तक दूर तक निर्माण नहीं रोक पा रही है। बिजनौर से बलिया तक हर साल पैदा होने वाली इस समस्या की रोकथाम और निगरानी का काम सेंट्रल वाटर कमीशन से कराया जाना चाहिए।

अवैध निर्माण रोकने के लिए बनाया जा रहा फ्लड जोन

सरकार की ओर से एनजीटी (NGT) को बताया गया कि गंगा में प्रदूषण को खत्म करने, नदी के किनारे हो रहे अवैध निर्माण को रोकने के लिए फ्लड प्लेन जोन बनाए गए हैं। ये काम प्रदेश के दो हिस्सों में किए जा रहे हैं। पहला बिजनौर से उन्नाव तक तो दूसरा उन्नाव से बलिया जिले तक। पहले हिस्से में निगरानी, रोकथाम का काम सेंट्रल वॉटर कमिशन को सौंपा गया है, जबकि दूसरे का काम नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ हाइड्रोलॉजी ( NIH ) रुड़की को दिया गया है। कोर्ट ने गंगा प्रदूषण की रोकथाम के लिए सरकार की ओर से उठाए गए कदमों की जानकारी हलफनामे के जरिए देने का आदेश दिया है। मामले की अगली सुनवाई 27 मई को होगी।

-एजेंसी

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