रील युग मे संस्कृति का सन्देश: वायरल गर्ल्स – अश्लीलता पर भारी “मोनालिसा” की सादगी

Cover Story

बृजेश सिंह तोमर
(वरिष्ठ पत्रकार एवं आध्यात्मिक चिंतक)

रील युग में लाइक्स, फॉलोअर्स और व्यूज के लिए किसी भी हद तक जाने की होड़ मची हुई है!अश्लीलता, दिखावे और ऊटपटांग कंटेंट के जरिए सेलिब्रिटी बनने का सिलसिला मानो आज की डिजिटल संस्कृति का अभिन्न हिस्सा बन गया है। लेकिन इसी संस्कृति के बीच जब कोई सादगी के दम पर देश भर में वायरल हो जाए, तो यह न केवल एक नई दिशा का संकेत देता है, बल्कि समाज के लिए यह महत्वपूर्ण संदेश भी छोड़ता कि प्रसिद्धि पाने के लिये सिर्फ नग्नता,फूहड़ता ही जरूरी नही बल्कि सादगी,भोलापन भी वायरल हो सकता है।

प्रयागराज के कुंभ मेले की पावन धरती पर माला और रुद्राक्ष बेचने वाली इंदौर के महेश्वर क्षेत्र की एक साधारण परिवार की नवयुवती “मोनालिसा” इन दिनों सोशल मीडिया की सुर्खियों में है। कमजोर आर्थिक पृष्ठभूमि से ताल्लुक रखने वाली मोनालिसा ने अपनी सादगी और भोलेपन से करोड़ों लोगों को अपना प्रशंशक बना लिया है। मोनालिसा का  वायरल होना यह साबित करता है कि सादगी और शालीनता भी डिजिटल युग में अपनी जगह बना सकती है।
कुंभ का मेला केवल आध्यात्मिकता और धर्म का केंद्र नहीं है; यह भारतीय संस्कृति, परंपरा और जीवनशैली का प्रतीक भी है। मोनालिसा का वायरल होना इस बात को प्रमाणित करता है कि हमारी संस्कृति में सादगी को हमेशा से सराहा गया है। जब नग्नता और फुहड़ता के बीच कोई अपनी शालीनता के साथ उभरता है, तो यह न केवल उस व्यक्ति के लिए सम्मानजनक है, बल्कि समाज को एक नया दृष्टिकोण देता है।

सोशल मीडिया पर लाखों लोग उनकी तस्वीरों और वीडियो को देखकर उनके भोलेपन और सादगी की तारीफ कर रहे हैं।कोई उसकी नीली हिरनी जैसी आंखों का प्रशंशक है तो कोई उसकी बातचीत के लहजे का।कोई उसकी तुलना वॉलीवुड की हिरोइन से कर रहा है तो कोई उसे दुनिया की सबसे खूबसूरत युवती  मान रहा है।इन सबके बीच कुछ लोग इसे ट्रोल भी कर रहे हैं कि कुंभ जैसे धार्मिक स्थल पर ऐसी चीजें क्यों वायरल हो रही हैं। उनका मानना है कि कुंभ में केवल आध्यात्म और धर्म पर चर्चा होनी चाहिए। यह सोच हमारी आधुनिकता और परंपरा के बीच एक अंतर्निहित द्वंद्व को उजागर करती है।

आलोचकों का तर्क है कि कुंभ जैसी पवित्र जगह पर वायरल होने वाली चीजें केवल धर्म और अध्यात्म से संबंधित होनी चाहिए। अचरज होता है कुंठित मानसिकता के उन बुद्धजीवियों  पर जो हर चीज को नकारात्मकता के पैमाने से देखते हुए गिलास को आधा खाली ही देखते है। समझ नही आता कि सनातन की सतरंगी संस्कति की झलक दिखाने बाले कुम्भ में सादगी पर चर्चा क्यो नही हो सकती।सवाल यह है कि क्या सादगी और भोलापन किसी भी धार्मिक या सांस्कृतिक मूल्यों के खिलाफ है? क्या यह हमारी संस्कृति का हिस्सा नहीं है? क्या प्रयागराज की पुण्य धरा पर माँ गंगा के तट पर साधारण परिवार की माला ,रुद्राक्ष बेचने बाली सादगी से लबरेज युवती का सेलिब्रिटी बनना सनातनी संस्कृति का सुखद पहलू नही है,वह भी तब जब सोशल प्लेटफार्म पर अश्लीलता चरम पर हो…?क्या बदन की नुमाइश करने बाली प्रतिस्पर्धा में सर से पांव तक साधारण कपड़ो में लिपटी यह भोली से युवती नारी सम्मान का भाव नही रखती..?

जब एक नवयुवती अपनी सादगी से लाखों दिलों को छू सकती है, तो यह इस बात का प्रतीक है कि हमारी संस्कृति में अब भी सरलता और शालीनता की गहरी जड़ें हैं।

मोनालिसा का सेलिब्रिटी बनना न केवल उनकी व्यक्तिगत पहचान का प्रमाण है, बल्कि यह हमारी संस्कृति की उस सच्चाई को भी उजागर करता है कि खूबसूरती केवल बाहरी आकर्षण में नहीं, बल्कि सनातनी संस्कृति में होती है।

आज के युग में जहां अश्लीलता और फुहड़ता ने सोशल मीडिया को अपने चंगुल में ले रखा है, ऐसे में “मोनालिसा” जैसी साधारण युवती का वायरल होना उम्मीद की किरण नजर आता है।

मोनालिसा की कहानी हमें यह भी सिखाती है कि सामाजिक मीडिया पर हर चीज को आलोचना के तराजू पर तौलने की आवश्यकता नहीं है। कुंभ जैसे मेले में जहां आध्यात्म, धर्म और सनातन की चर्चा होती है, वहां यदि सादगी और शालीनता का कोई उदाहरण सामने आता है, तो वह भी हमारी संस्कृति और परंपरा का सम्मान है।

हालांकि, इस अप्रत्याशित प्रसिद्धि ने अब मोनालिसा के लिए मुश्किलें खड़ी कर दी हैं। जिस भोलेपन और सरलता ने उसे पहचान दिलाई, वही अब उसके लिए बोझ बन गई है। प्रयागराज के कुंभ मेले में, जहां वह माला और रुद्राक्ष बेचकर अपनी आजीविका चलाने आई थी, वहां अब यूट्यूबर्स, कैमरे और उत्साही भीड़ ने उसकी शांति छीन ली है। लोग उसके साथ फोटो खिंचाने और वीडियो बनाने के लिए पागल हो रहे हैं। इस भगदड़ और होड़ ने न केवल उसके कामकाज को बाधित किया है, बल्कि उसे मानसिक रूप से परेशान भी कर दिया है। वह चाहती है कि यह सब समाप्त हो, ताकि वह फिर से अपनी सामान्य जिंदगी में लौट सके।

यह घटना समाज के दो पहलुओं को उजागर करती है। एक ओर, यह दिखाती है कि सादगी और भोलापन आज भी अपनी जगह बना सकते हैं, वह भी तब, जब अश्लीलता और फुहड़ता हर जगह हावी है। दूसरी ओर, यह सवाल उठाती है कि क्या इस तरह की प्रसिद्धि किसी के लिए वास्तव में सुखद होती है या यह केवल मानसिक और भावनात्मक बोझ बनकर रह जाती है। मोनालिसा के मामले में, यह प्रसिद्धि अब उसके लिए अभिशाप बनती जा रही है।
कुंभ की इस पवित्र धरती पर मोनालिसा नाम की एक स्त्री का वायरल होना यह बताता है कि  आकर्षण का केंद्र विंदु सादगी और भोलापन भी है। यह घटना एक नई शुरुआत की ओर इशारा करती है—एक ऐसी शुरुआत जहां सादगी, शालीनता और शुद्धता को सम्मान मिलता है।किसी ने ठीक ही कहा है-

“अच्छी सूरत को संवरने  की क्या जरूरत है..
सादगी में कयामत की अदा होती है…!!

-up18News

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *