CJI चंद्रचूड़ ने कहा, जज न तो प्रिंस हैं और न ही सम्राट, ऐसे फैसले न लिखें जिन्हें कोई नहीं समझ सकता

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देश के प्रधान न्यायाधीश डी. वाई. चंद्रचूड़ ने कहा कि भारतीय अदालतों की पुनर्कल्पना थोपे गये ‘साम्राज्य’ के बजाय विमर्श की लोकतांत्रिक व्यवस्था के रूप में की गई हैं। उन्होंने कहा कि जज न तो राजकुमार हैं और न ही सम्राट, जो यह बहाना बना सकें कि वो ऐसे फैसले लिखेंगे जिन्हें कोई नहीं समझ सकता।

जस्टिस चंद्रचूड़ ने कहा कि न्यायाधीशों के रूप में हम न तो राजकुमार हैं और न ही सम्राट, जो खुद को यह समझाने की आवश्यकता से ऊपर समझते हैं कि फैसला क्या है। प्रधान न्यायाधीश ‘डिजिटल परिवर्तन और न्यायिक दक्षता बढ़ाने के लिए प्रौद्योगिकी के इस्तेमाल’ विषय पर ब्राजील के रियो डी जनेरियो में J-20 शिखर सम्मेलन को संबोधित कर रहे थे। J-20 उच्चतम न्यायालयों और संवैधानिक अदालतों के मुख्य न्यायाधीशों का एक समूह है, जिसके सदस्य G-20 देश हैं। इस साल J-20 सम्मेलन का आयोजन ब्राजीलियन फेडरल सुप्रीम कोर्ट की ओर से किया गया है।

इस बात की संभावना है कि उनका बयान सुप्रीम कोर्ट और हाई कोर्ट के पिछले फैसलों को पढ़ने के अनुभव की उपज है। आपको बता दें कि अदालतों के फैसले भले ही स्पष्ट रूप से लिखे गए हों, लेकिन भारत के औसतन शिक्षित लोगों के लिए वो किसी अनजानी भाषा (ग्रीक या लैटिन) जैसे लगते होंगे। खासकर, महत्वपूर्ण मुद्दों पर सैकड़ों पन्नों में फैले फैसलों को समझ पाना उनके लिए और भी मुश्किल हो जाता है। इसका प्रमुख उदाहरण 1973 का ऐतिहासिक केशवानंद भारती का फैसला है।

जस्टिस चंद्रचूड़ ने कहा कि कोविड-19 महामारी के कारण अदालतों की व्यवस्थाओं को रातों-रात बदलना पड़ा। उन्होंने मुकदमे से जुड़ें पक्षों और कम कनेक्टिविटी वाले स्थानों के बीच डिजिटल विभाजन और प्रतिनिधित्व संबंधी विषमता पर भी बात की। इन विषमताओं को अड़चनें बताते हुए प्रधान न्यायाधीश ने कहा, हमें इनसे निपटना होगा। जब हम न्यायिक दक्षता की बात करते हैं, तो हमें न्यायाधीश की दक्षता से परे हटकर देखना चाहिए और समग्र न्यायिक प्रक्रिया के बारे में सोचना चाहिए। दक्षता न केवल नतीजों में निहित है बल्कि उन प्रक्रियाओं में भी है जिन्हें स्वतंत्र और निष्पक्ष सुनवाई सुनिश्चित करनी चाहिए।

चीफ जस्टिस ने कहा कि प्रौद्योगिकी की क्षमता इस बात में निहित है कि हम इसे पहले से मौजूद असमानताओं को कम करने के लिए कैसे परिवर्तित करते हैं। प्रौद्योगिकी सभी सामाजिक असमानताओं के लिए एक रामबाण इलाज नहीं है। उन्होंने कहा कि एआई-प्रोफाइलिंग, एल्गोरिथम पूर्वाग्रह, गलत सूचना, संवेदनशील जानकारी का प्रदर्शन और एआई में ब्लैक बॉक्स मॉडल की अस्पष्टता जैसे जटिल मुद्दों से खतरों के बारे में निरंतर विचार-विमर्श प्रयासों और प्रतिबद्धता से निपटा जाना चाहिए।

-एजेंसी

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