आगरा, आजकल देश में आस्था की एक नई परिभाषा गढ़ी जा रही है, जहाँ एक बाबा पर्ची पर लिखकर सबका भविष्य बताते हैं। कोई उनसे शादी की बात पूछता है, कोई नौकरी की, तो कोई मन में छिपे सबसे गहरे राज़। और यह सब कुछ एक ऐसे मंच से होता है, जहाँ बाबा अपनी मर्जी से किसी को भी बुलाते हैं, किसी को भी भगा देते हैं। लेकिन, जब यही बाबा आगरा आए, तो शायद उनकी ‘पर्ची’ थोड़ी गलत निकल गई।
शहर में आए तो थे कथा करने, लेकिन जाने से पहले कह गए कि आगरा में ‘पागलख़ाना’ है। अब यह बात शायद उनकी कथा सुनने आए लोगों को पसंद नहीं आई। अरे बाबा, आप तो दिल की बात जान लेते हैं, क्या आपको पता नहीं कि यह बात सुनकर लोगों के दिल कितने दुखे हैं? क्या आपको नहीं पता कि आपका यह बयान एक ऐसे शहर के लोगों के लिए अपमानजनक है, जो अपने मेहमानों का तहे दिल से स्वागत करते हैं?
इसी बात पर आगरा की एक बेटी, शबाना खंडेलवाल ने बाबा को एक करारा जवाब दिया है। उन्होंने बाबा से पूछा, “जब हमारा पूरा शहर ही पागल है, तो फिर आप यहाँ क्यों आए? क्या आपको लगा कि आगरा केवल पागलख़ाना ही है?” उन्होंने यह भी याद दिलाया कि यह शहर सिर्फ़ एक ऐतिहासिक इमारत या एक पागलख़ाने के लिए नहीं जाना जाता। यह ब्रज की धरती है, जहाँ श्रीकृष्ण की लीलाओं की गूँज आज भी सुनाई देती है। यह नज़ीर अकबराबादी की नगरी है, जिसने अपनी शायरी से इस शहर को एक नई पहचान दी। यह महादेव का आशीर्वाद पाने वाला शहर है, जहाँ हर कोने में भक्ति की गूँज है। और सबसे बढ़कर, यह मोहब्बत की धरती है, जहाँ इतिहास ने प्रेम की सबसे ख़ूबसूरत कहानी लिखी है।
शबाना खंडेलवाल ने बाबा को एक और बात याद दिलाई। उन्होंने कहा कि “इच्छाएँ सोच-समझकर माँगनी चाहिए। आसाराम बापू ने भी तिहाड़ जेल जाने की इच्छा जताई थी और भगवान ने ‘तथास्तु’ कह दिया।” बाबा तो सीधे हनुमान जी से संपर्क में रहते हैं, उनके पास तो ‘सीधी लाइन’ है, तो क्या इस बार हनुमान जी ने ही उनकी इच्छा पूरी होने से रोक दिया? क्या आगरा की ज़मीन ही नहीं चाहती कि यहाँ कोई ऐसा व्यक्ति आए, जो इसके लोगों का अपमान करे?
याद रहे, यही बाबा वही हैं, जिन्होंने प्रयागराज में 300 लोगों की मौत पर दुख व्यक्त करने के बजाय कहा था कि उनकी ‘मुक्ति’ हो गई। यह कैसी संवेदनशीलता है? क्या किसी की दुखद मृत्यु पर भी यही कहा जाता है? शबाना खंडेलवाल ने आख़िर में राधे-राधे कहकर अपनी बात ख़त्म की, जो शायद यह बताने के लिए काफ़ी है कि यह शहर भक्ति और प्रेम का है, न कि किसी के अहंकार का।
तो क्या अब बाबा पर्ची पर लिखकर यह बताएँगे कि उनका यह बयान ग़लत था? क्या वे आगरा के लोगों से माफ़ी माँगेंगे? या फिर वे अपने ही अहंकार की नई पर्ची लिखेंगे? यह तो समय बताएगा।