आगरा। जिस चंबल नदी की अथाह जलराशि कभी उसकी शान हुआ करती थी, आज वहीं नदी दम तोड़ती नज़र आ रही है। जलराशि के हालात इतने भयावह हो चुके हैं कि नदी के बीचों-बीच लकड़ी, तूरी और बालू से लदी ट्रैक्टर-ट्रॉलियाँ फर्राटा भरते हुए एक राज्य की सीमा से दूसरी ओर निकल रही हैं, मानो चंबल अब कोई सड़क हो। ऐसा करके चंबल के इस एरिया में जलीय जीवों को भी खतरे में डाला जा रहा है।
पिनाहट थाना क्षेत्र के अंतर्गत क्यौरी घाट का एक वीडियो वायरल हो रहा है। यह दृश्य न केवल प्रशासन की आंखें खोलने वाला है, बल्कि यह बताता है कि कानून और संरक्षण व्यवस्था को ट्रैक्टर के टायरों तले कुचला जा रहा है। वायरल में वीडियो में दो ट्रैक्टर और एक बाइक चंबल की धारा को चीरते साफ़ नजर आ रहे हैं। एक ट्रैक्टर में लकड़ी लदी हुई है, जो इस एरिया में पेड़ों के कटान का भी सबूत दे रहा है।
यह दोहरी त्रासदी है। पहली, चंबल में पानी की कमी जो कभी नहीं सोची गई थी और दूसरी, इस बचे-खुचे जल में जीवित रह रहे संरक्षित घड़ियाल, मगरमच्छ व अन्य जलीय जीवों के अस्तित्व पर मंडराता खतरा। ट्रैक्टरों का नदी की जलधारा को चीरना न केवल अवैध है, बल्कि यह भारत की सबसे संवेदनशील नदी पारिस्थितिकी तंत्र को रौंदने जैसा है।
यह इलाका राष्ट्रीय चंबल घड़ियाल अभयारण्य के अंतर्गत आता है, जो देशभर में घड़ियाल, मगरमच्छ, कछुए और अन्य दुर्लभ जलीय जीवों के संरक्षण के लिए संरक्षित क्षेत्र घोषित है। मगर हालात अब इतने बदतर हो गए हैं कि नदी के बीचोंबीच से लकड़ी, तूरी, बालू और अन्य माल से लदे ट्रैक्टर-ट्रॉलियां बेहिचक गुजर रही हैं।
गंभीर चिंता का विषय यह है कि यह अवैध गतिविधि तब हो रही है, जब चंबल नदी में जल स्तर बेहद नीचे चला गया है। इससे न केवल नदी की पारिस्थितिकी को नुकसान हो रहा है, बल्कि उसमें रहने वाले संरक्षित घड़ियाल, मगरमच्छ, कछुए, दुर्लभ मछलियां और पक्षियों की प्रजातियों का जीवन संकट में पड़ गया है।
स्थानीय ग्रामीणों का कहना है कि यह कोई एक दिन की बात नहीं है। मध्य प्रदेश सीमा से उत्तर प्रदेश सीमा तक चंबल में पानी कम होते ही अवैध रूप से ट्रैक्टरों का आवागमन तेज हो जाता है। अनुमान है कि इन ट्रैक्टरों से लकड़ी और रेत की तस्करी भी हो रही है, जो पर्यावरणीय कानूनों का सीधा उल्लंघन है।
इतने बड़े और खुले इलाके में ट्रैक्टर-ट्रॉली जैसी भारी मशीनें चलें और पुलिस, वन विभाग व राजस्व अधिकारी अनजान बने रहें, यह सवालों के घेरे में है। या तो यह पूरी व्यवस्था आंखें मूंदे बैठी है, या फिर इसमें किसी प्रकार की शह प्राप्त है। चंबल घड़ियाल अभयारण्य के अंतर्गत किसी भी प्रकार की यांत्रिक गतिविधि, अवैध उत्खनन, वाहन आवागमन या निर्माण सामग्री का परिवहन पूरी तरह निषिद्ध है।
ट्रैक्टरों के पहिए जब नदी की तलहटी को रौंदते हैं, तो वहां बने प्राकृतिक अंडे देने वाले स्थान, घड़ियालों के घोंसले और मछलियों के प्रजनन क्षेत्र नष्ट हो जाते हैं। इससे प्राकृतिक जैव श्रृंखला पर गंभीर असर पड़ता है।