आगरा नगर निगम की ‘बहादुरी’ और जनता का ‘विरोध प्रदर्शन’, रसूखदारों के आगे एक जनरेटर नही हटा पाया प्रशासन

स्थानीय समाचार

आगरा: खबर है कि आगरा नगर निगम की टीम शनिवार को एक बड़े ‘ऑपरेशन’ पर निकली थी. ‘ऑपरेशन’ क्या था? एक IGRS पोर्टल पर शिकायत आई थी कि ट्रांसयमुना कॉलोनी में सड़क पर जनरेटर रखा है. शिकायत किसकी थी? पता नहीं. राहगीरों को परेशानी हो रही थी, ऐसा दावा है. अब नगर निगम की टीम पहुंची. पूरे लाव-लश्कर के साथ. जनरेटर हटाने की ‘हिम्मत’ की ही थी कि जयदीप अस्पताल प्रबंधन के लोग बाहर आ गए. फिर क्या हुआ? वही जो अक्सर होता है. बहस हुई. आस-पास के लोग भी इकट्ठा हो गए. और नगर निगम की ‘वीर’ टीम को उलटे पांव लौटना पड़ा. वाह रे वाह!

IGRS पोर्टल की ‘शक्ति’ और नगर निगम की ‘कमजोरी’

तो क्या अब IGRS पोर्टल पर शिकायत करने का भी कोई फायदा नहीं है? एक नागरिक ने शिकायत की. शिकायत जायज थी, यह जोनल अधिकारी अवधेश कुमार खुद मान रहे हैं. उनका कहना है कि जनरेटर सड़क किनारे अवैध रूप से रखा था, जिससे आवाज और धुएं से परेशानी होती होगी. तो अगर शिकायत जायज थी, तो कार्रवाई क्यों नहीं हुई? क्या नगर निगम की टीम इतनी कमजोर है कि कुछ लोगों के विरोध के आगे उसके सारे नियम-कानून धरे के धरे रह जाते हैं?

सवाल यह है कि क्या हमारा प्रशासन सिर्फ ‘शक्ति प्रदर्शन’ के लिए होता है, या फिर नियमों को लागू करने के लिए भी? क्या यह वही नगर निगम है, जो पिछले दिनों खेरिया मोड़ पर विधायक के चाचा से हुए विवाद के बाद ‘ज्यादा रिस्क’ नहीं ले रहा? तो क्या अब विधायक के चाचा से विवाद के डर से जनता की शिकायतों का निस्तारण नहीं होगा? क्या अब ‘रिस्क’ न लेने के बहाने अवैध कब्जेदारों को खुली छूट मिल जाएगी?

‘ठेल-धकेल’ हटाना आसान, ‘जनरेटर’ हटाना मुश्किल!

दिलचस्प बात यह है कि इसी दिन नगर निगम की टीम ने शहर के अन्य क्षेत्रों में ‘अतिक्रमण’ के खिलाफ अभियान चलाया. पालीवाल पार्क और रामबाग चौराहा क्षेत्र में सड़कों और फुटपाथों पर खड़े ठेल-धकेल और अन्य अवैध अतिक्रमण को हटाया गया. और वहां ‘सफलता’ भी मिली. तो क्या नगर निगम की ‘हिम्मत’ सिर्फ ठेल-धकेल वालों पर ही चलती है? क्या ‘बड़े लोगों’ के सामने नगर निगम के अधिकारी दुम दबाकर भाग खड़े होते हैं?

यह वही भारत है, जहां हर छोटे-मोटे वेंडर को हटाने के लिए पूरा अमला निकल पड़ता है, लेकिन जब कोई अस्पताल या कोई ‘प्रभावशाली’ व्यक्ति सड़क पर कब्जा कर ले, तो नगर निगम के हाथ-पांव फूल जाते हैं. क्या यह ‘दोहरी नीति’ नहीं है? क्या यह न्याय है?

जनता का विरोध या नगर निगम की ‘मिलीभगत’?

विरोध हुआ, यह तर्क दिया गया. लेकिन क्या किसी अवैध कब्जे को हटाने में अगर विरोध हो, तो प्रशासन को पीछे हट जाना चाहिए? अगर ऐसा है, तो फिर नियम-कानून किसलिए बनाए गए हैं? क्या यह ‘विरोध’ महज एक बहाना था, या फिर कुछ और ही खिचड़ी पक रही थी? क्या यह नगर निगम की ‘मिलीभगत’ का नतीजा था कि टीम को बिना कार्रवाई के ही लौटना पड़ा?

जनरेटर से होने वाली आवाज और धुएं से लोगों को परेशानी होती है, यह भी जोनल अधिकारी जानते हैं. फिर भी कार्रवाई नहीं हुई. तो क्या अब जनता को खुद ही सड़क पर उतरकर अपने लिए न्याय मांगना पड़ेगा? या फिर नगर निगम सिर्फ उन्हीं शिकायतों पर कार्रवाई करेगा, जहां उसे किसी ‘विरोध’ का सामना नहीं करना पड़ेगा? क्या यह नगर निगम ‘जोखिम प्रबंधन’ का नया मॉडल है, जहां जनता की परेशानी गौण है और अधिकारियों की ‘सुरक्षा’ सर्वोपरि?

सवाल यह है कि IGRS पोर्टल पर शिकायत करने का फायदा क्या, अगर नगर निगम की टीम ‘विरोध’ के नाम पर बिना कार्रवाई के ही लौट जाए? और कब तक हम इस ‘दोहरे मापदंड’ वाली प्रशासनिक व्यवस्था को झेलते रहेंगे, जहां ‘बड़े’ के लिए नियम अलग और ‘छोटे’ के लिए अलग? शायद जवाब के लिए हमें किसी और पोर्टल पर शिकायत करनी होगी, क्योंकि यहां तो जनरेटर भी ‘अतिक्रमण’ नहीं है, जब तक कि वह किसी ‘खास’ का न हो!

-मोहम्मद शाहिद की कलम से

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