भारतीय राजनीति में कुछ अपवादों को छोड़ दें तो अक्सर मंत्रियों को उनके मंत्रालय तक ही सीमित देखा जाता है। लेकिन केंद्रीय राज्य मंत्री और अपना दल (एस) की राष्ट्रीय अध्यक्ष अनुप्रिया पटेल को उन अपवादों में ही शामिल किया जा सकता है, जो मंत्रालय की जिम्मेदारियों के साथ-साथ सामाजिक कर्तव्यों के निर्वहन में भी पहली सफ़ में खड़ी नजर आती हैं।
मोदी सरकार के तीनों कार्यकाल में मंत्री पद पर बनी रहीं अनुप्रिया पटेल, न केवल मंत्रालय के फैसलों का असर सीधे जनता तक पहुँचाने में सफल रही हैं, बल्कि सामाजिक न्याय के मुद्दे पर भी बेबाकी से बोलती दिखी हैं। स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय और रसायन एवं उर्वरक मंत्रालय से लेकर पिछड़ा, दलित, आदिवासी वर्ग की आवाज बनने तक, उनके कदमों ने खूब चर्चा बटोरी है।
भारत में महंगी दवाइयां लम्बे समय गरीब व माध्यम वर्गीय परिवारों के लिए समस्या का सबब बनी हुई हैं। इसे ध्यान में रखते हुए सरकार ने भारतीय जन औषधि परियोजना का विस्तार किया, जिसके तहत जुलाई 2025 तक पूरे देश में 16,912 जन औषधि केंद्र खोले जा चुके हैं। जहाँ मरीजों को सस्ती दरों पर गुणवत्तापूर्ण दवाइयाँ मिलती हैं।
खुद अनुप्रिया पटेल ने राज्यसभा में एक जानकारी देते हुए बताया कि इन केंद्रों से जनता को पिछले 11 वर्षों में करीब 38,000 करोड़ रुपये की बचत हुई है। इसी क्रम में, राष्ट्रीय औषधि मूल्य निर्धारण प्राधिकरण ने अगस्त 2025 में 35 से अधिक आवश्यक दवाओं की कीमत घटा दी है। जिससे हृदय रोग, मधुमेह या मानसिक रोगों जैसी पुरानी बीमारियों से जूझ रहे मरीजों को सबसे अधिक लाभ मिला है।
दूसरी तरफ किसानों के लिए उर्वरक की उपलब्धता भी हर साल सवालों के घेरे में खड़ी रहती है, लेकिन इस साल की बात करें तो स्थिति पिछले साल की तुलना में काफी अच्छी नजर आई। संसद में स्वयं अनुप्रिया पटेल ने यह स्पष्ट किया कि यूरिया, डीएपी और अन्य उर्वरक पर्याप्त मात्रा में उपलब्ध हैं और किसी तरह की कमी नहीं होगी। नतीजतन खरीफ 2025 में कुल बुवाई क्षेत्र में 26.93 लाख हेक्टेयर की वृद्धि हुई है, जो पिछले वर्ष की तुलना में एक महत्वपूर्ण उछाल दिखाती है।
उन्होंने संसद में यह भी बताया कि अंतरराष्ट्रीय बाज़ार में दाम बढ़ने के बावजूद डीएपी पर सरकार ने विशेष आर्थिक सहायता पैकेज दिया। जाहिर है इस कदम ने किसानों पर अतिरिक्त बोझ नहीं पड़ने दिया। इसके अलावा 2023-24 में फॉस्फेटिक और पोटाशिक उर्वरकों पर 65,000 करोड़ रुपये से अधिक की सब्सिडी दी गई, जिसका उल्लेख भी सरकारी दस्तावेजों में देखने को मिलता है।
हालाँकि यह वे सरकारी फैसले थे जिनका जनता को लाभ पहुँचाने में अनुप्रिया पटेल का परोक्ष रूप से हाथ रहा लेकिन मिर्जापुर से सांसद रहते हुए वह अपने संसदीय क्षेत्र के लिए जो विकासकार्य कर रही हैं, वह उनके स्पष्ट विकासोन्मुख दृष्टिकोण को दर्शाता है। फिर बात 100% वैक्सीनेशन को बढ़ावा देते हुए पुरस्कृत योजना की हो, स्थानीय कालीन और हस्तशिल्प उद्योगों को बेहतर सुविधाएँ व रोजगार देने की मनसा से चुनार लॉजिस्टिक्स पार्क की हो, राजगढ़ ब्लॉक के धनसिरिया गाँव को गोद लेकर वहाँ के प्राथमिक विद्यालय को मॉडल विद्यालय बनाने की पहल करने की या कृषि को देश का सबसे महत्वपूर्ण विकास इंजन मानते हुए कृषि संकल्प अभियान के शुरुआत की। अनुप्रिया के इन पहलों का ही नतीजा है कि वह ऐतिहासिक रूप से लगातार तीसरी बार सांसद चुनी गईं।
वहीं सामाजिक न्याय के सवालों पर भी अनुप्रिया पटेल लगातार मुखर रही हैं। सरकार में रहते हुए उन्होंने जाति-आधारित जनगणना का खुला समर्थन किया। इसके अलावा एनडीए सरकार के कार्यकाल में राष्ट्रीय पिछड़ा वर्ग आयोग को संवैधानिक दर्जा, केंद्रीय शिक्षण संस्थानों में ओबीसी आरक्षण और 13-पॉइंट रोस्टर विवाद का समाधान जैसे कदम भी उठाए गए। यह सभी पहलें पिछड़े समुदायों की भागीदारी और प्रतिनिधित्व को मज़बूती देने के साथ-साथ अनुप्रिया पटेल की सामुदायिक प्रतिबद्धता को भी दर्शाती है।
कुल मिलाकर देखें तो अनुप्रिया पटेल का कार्यकाल केवल एक मंत्री के रूप में नहीं बल्कि जनता की ज़रूरतों और सामाजिक संतुलन की आवाज़ के रूप में आँका जा सकता है। सस्ती दवाओं और स्वास्थ्य सेवाओं से लेकर किसानों को राहत और पिछड़े वर्गों के मुद्दों को बेबाकी से उठाने तक, उनके कदम नीतिगत स्तर पर असर डालते नजर आते हैं।
-डॉ अतुल मलिकराम (राजनीतिक रणनीतिकार)