हिमालय के रहस्यमयी खोजी की 200वीं पुण्यतिथि: विलियम मूरक्रॉफ्ट की अनसुलझी धरोहर पर महत्वपूर्ण संगोष्ठी

अन्तर्द्वन्द

हिमालय की गहराइयों और इतिहास के रहस्यों से जुड़े ब्रिटिश खोजी विलियम मूरक्रॉफ्ट की 200वीं पुण्यतिथि पर पहाड़ संस्था ने एक विशेष ऑनलाइन संगोष्ठी आयोजित की। कार्यक्रम में इतिहास, संस्कृति और दस्तावेजों से जुड़े अनुत्तरित प्रश्नों पर विद्वानों ने गहन विमर्श किया।

पहाड़ संस्था का ऑनलाइन आयोजन

नैनीताल स्थित पहाड़ संस्था (People’s Association for Himalayan Area Research) ने बीते माह की 27 तारीख को विलियम मूरक्रॉफ्ट की 200वीं पुण्यतिथि पर ‘जूम’ एप में “Bicentenary Reflections on William Moorcroft and His Chronicler” विषयक संगोष्ठी का आयोजन किया। भारत सहित विदेशों से 70–80 प्रतिभागियों की सहभागिता रही। कार्यक्रम का संचालन प्रो. गिरिजा पांडे ने किया और इसमें हाल ही में दिवंगत मूरक्रॉफ्ट के जीवनीकार प्रो. गैरी एल्डर को भी श्रद्धांजलि दी गई।

पहाड़ है शोध और संस्कृति की धरोहर

सन 1983 में डॉ. शेखर पाठक द्वारा स्थापित पहाड़ संस्था हिमालयी समाज, संस्कृति, इतिहास और पर्यावरण पर निरंतर शोध व प्रकाशन कर रही है। इसकी पत्रिका ‘पहाड़’ पिछले चार दशकों में हिमालयी अध्ययन की सबसे विश्वसनीय धरोहर मानी जाती है। संस्था ने पर्वतीय जीवन, लोक साहित्य, यात्राओं और पर्यावरणीय संकटों को दस्तावेजी रूप में सुरक्षित कर नई पीढ़ियों तक पहुंचाया और उनके लिए संरक्षित किया है।

डैन जैन्त्जन की रोचक प्रस्तुति

संगोष्ठी का मुख्य आकर्षण अमेरिका से जुड़े शोधकर्ता डैन जैन्त्जन की प्रस्तुति रही। उन्होंने ‘The Search for Moorcroft’s Tibetan Records’ शीर्षक से स्लाइड शो प्रस्तुत किया। जैन्त्जन ने मूरक्रॉफ्ट की रहस्यमयी यात्राओं, उनकी मृत्यु की परिस्थितियों और उनसे जुड़ी अनसुलझी पहेलियों पर विस्तार से चर्चा की। उन्होंने बताया कि कुछ इतिहासकार मानते हैं कि मूरक्रॉफ्ट की मृत्यु 1825 में अफगानिस्तान के आन्दखोई में हुई, जबकि अन्य का मानना है कि वे पश्चिमी तिब्बत में डकैतों द्वारा मारे गए।

तिब्बती दस्तावेज और चीनी नियंत्रण

जैन्त्जन ने बताया कि मूरक्रॉफ्ट की डायरियां और नक्शे अब तक नहीं मिल पाए हैं। 2007 और 2009 में ल्हासा, बीजिंग और ताइपेई के अभिलेखागारों में उनकी टीम द्वारा इनकी खोज की गई, लेकिन उन्हें सफलता नहीं मिली। उनका कहना था कि तिब्बत से जुड़े कई संवेदनशील दस्तावेज चीन ने ल्हासा के Dang An Gu अभिलेखागार में बंद कर रखे हैं, जिन तक पहुंच लगभग असंभव है। उन्होंने सवाल उठाया कि मूरक्रॉफ्ट की अमूल्य पांडुलिपियां ल्हासा, बीजिंग, ताइपेई या किसी और अभिलेखागार में हैं तो कहां हैं!

रहस्य अब भी बरकरार

प्रस्तुति के अंत में डैन जैन्त्जन ने कहा कि मूरक्रॉफ्ट की मृत्यु और उनकी पांडुलिपियों से जुड़ा रहस्य आज भी जस का तस बना हुआ है। इतिहास का यह अनुत्तरित प्रश्न शोधकर्ताओं को लगातार चुनौती देता है। उन्होंने इस दिशा में चीनी भाषा और अभिलेखागार तक विशेष पहुंच रखने वाले शोधकर्ताओं से गंभीर प्रयास करने की अपील की।

शेखर पाठक की स्लाइड्स: जीवन और यात्राओं का दस्तावेज

सत्र में डॉ. शेखर पाठक ने भी अपनी स्लाइड्स प्रस्तुत की, जिनमें मूरक्रॉफ्ट के जीवन और यात्राओं का विस्तृत ब्यौरा था। मूरक्रॉफ्ट का जन्म 25 मई 1767 को लंकाशायर (यूके) में हुआ। उन्होंने लंदन और पेरिस में पशु चिकित्सा की पढ़ाई की और घोड़ों पर विशेष अनुसंधान किया। 1808 में भारत आए और 1811-12 में तिब्बत की असफल यात्रा की। उनकी 1813-19 की बड़ी यात्रा में दिल्ली, आगरा, लखनऊ समेत कई स्थान शामिल थे। 1819-25 के दौरान उन्होंने गोरखा से अफगानिस्तान तक की कठिन यात्रा की, जहां 1825 में उनकी मृत्यु हुई।

उनकी पांडुलिपियां एच एच विल्सन द्वारा 1837 में ‘Travels in the Himalayan Provinces of Hindustan and the Punjab’ शीर्षक से प्रकाशित की गईं। बाद में गैरी एल्डर ने 1985 में उनकी जीवनी ‘Beyond Bokhara’ लिखी।

संवाद और संभावनाएं

प्रतिभागियों ने माना कि इस तरह की संगोष्ठियां इतिहास के अनसुलझे रहस्यों पर रोशनी डालने के साथ ही अतीत और वर्तमान के बीच संवाद की नई संभावनाएं खोलती हैं। पहाड़ संस्था के प्रयास हिमालयी समाज और संस्कृति की समझ को गहराई देते हुए ज्ञान की नई राहें खोलते हैं।

हिमांशु जोशी

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