नई दिल्ली। इस साल के अंत तक बिहार में विधानसभा चुनाव होने है, लेकिन इसकी चर्चा पूरे देश भर में हो रही है। एसआईआर को लेकर विपक्षी पार्टीयां लगातार सरकार और चुनाव आयोग पर सवाल खड़ा कर रहे है। इस बीच सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को बिहार में एसआईआर से जुड़े एक मामले की सुनवाई की।
सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि बिहार में चुनाव आयोग और राजनीतिक दलों के बीच विश्वास की कमी दुर्भाग्यपूर्ण है। सुप्रीम कोर्ट ने चुनावी राज्य में विशेष गहन पुनरीक्षण के बाद तैयार मतदाता सूची के मसौदे पर आपत्तियां दर्ज कराने की समय 15 सितंबर तक के लिए बढ़ा दी है।
दाखिल याचिक पर सुनवाई पर सुप्रिम कोर्ट ने टिप्पणी करते हुए कहा कि बिहार में चुनाव आयोग और राजनीतिक दलों के बीच विश्वास की काफी कमी देखने को मिल रही है। सुप्रीम कोर्ट ने विश्वास की इस कमी को दुर्भाग्यपूर्ण करार दिया है। सुप्रीम कोर्ट में न्यायमूर्ति सूर्यकांत और न्यायमूर्ति जॉयमाल्या बागची की पीठ मसौदा सूची पर आपत्तियां दर्ज कराने की एक सितंबर की समय सीमा बढ़ाने की मांग वाली याचिकाओं पर सुनवाई कर रही थी। चुनाव आयोग की ओर से पेश वरिष्ठ वकील राकेश द्विवेदी ने कहा कि बिहार के लोगों को विशेष गहन पुनरीक्षण से कोई समस्या नहीं है। केवल याचिकाकर्ता ही इसमें नाराज हैं।
चुनाव आयोग ने पीठ को सूचित करते हुए कहा कि उसे प्राप्त अधिकांश आवेदन मतदाता सूची से नाम हटाने की मांग करते हैं, और नाम शामिल करने के अनुरोधों की संख्या बहुत कम है। याचिकाकर्ताओं की ओर से कहा कि चुनाव आयोग की इस प्रक्रिया में पारदर्शिता का बेहद अभाव है।
वहीं, इस पर चुनाव आयोग पीठ को बताया कि बाधा डालने की मानसिकता इसके लिए ज़िम्मेदार है। चुनाव आयोग की ओर से कहा गया कि समय सीमा बढ़ाने से चुनाव से पहले मतदाता सूची को अंतिम रूप देने का पूरा कार्यक्रम बाधित होगा। आयोग ने कहा कि समय सीमा को आगे बढ़ाने से समीक्षा एक अनंत प्रक्रिया बन जाएगी। हालांकि, सुप्रीम कोर्ट ने अंत में समय सीमा 15 सितंबर तक बढ़ा दी है।
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