आगरा: श्री श्वेताम्बर स्थानकवासी जैन ट्रस्ट, आगरा के तत्वावधान में चातुर्मास कल्प आराधना के अंतर्गत जैन स्थानक महावीर भवन में प्रवचनों की ज्ञान-गंगा पूरे श्रद्धा और समर्पण के साथ प्रवाहित हो रही है। आगम रत्नाकर, बहुश्रुत पूज्य श्री जय मुनि जी महाराज के हृदयस्पर्शी उद्बोधनों ने श्रद्धालुजनों को भगवान महावीर की करुणा यात्रा से जोड़ते हुए उनके हृदय में सहृदयता और समता की भावना जाग्रत की।
करुणा की एक मिसाल: भगवान और गोशालक की कथा:
जय मुनि जी ने शास्त्रों में वर्णित प्रसंग के माध्यम से भगवान महावीर की विश्वव्यापी करूणा को सरलता से समझाया। गोशालक द्वारा द्वेष भाव से तेजोलेश्या का प्रयोग करने पर भी भगवान ने शीतल लेश्या द्वारा साता पहुँचाई और वाणी से उसके अज्ञान का अंत किया—जिससे यह स्पष्ट हुआ कि समकित धारी से लेकर विरोधी बुद्धिवालों तक सभी उनकी करुणा के पात्र हैं।
गुरुचरणों में जीवन की चमक:
हृदय सम्राट पूज्य श्री आदीश मुनि ने उपासना और ज्ञान स्नान के महत्व पर प्रकाश डालते हुए जीवन को दीपक की तरह चमकाने का संदेश दिया। “सुख पाने के सूत्र” विषयांतर्गत उन्होंने गुप्त दान को निष्काम कर्म बताते हुए इसके लाभ में असीम आनंद व समत्व भाव की उत्पत्ति को रेखांकित किया।
मोक्ष के चार मार्ग और आत्म कल्याण:
पूज्य श्री विजय मुनि ने मोक्ष के चार स्तंभ—दान, शील, तप, भावना पर जोर देते हुए कहा कि आत्मा किले के समान है, जहाँ कर्मरूपी शत्रुओं से युद्ध करते हुए आत्मचिंतन आवश्यक है।
धार्मिक अनुशासन और तपस्या की साधना:
धर्मसभा के अंत में श्रावकों को “श्री अजितनाथाय नमः” मंत्र जाप व अरबी, अचार, अनार का त्याग करने की शपथ दिलाई गई। तप के मार्ग पर बाल किशन जी का 24वाँ आयंबिल, श्रीमती दिव्या का 11वाँ और श्रीमती उमारानी का 8वाँ उपवास श्रद्धा का प्रतीक बना।
शहरों की आस्था से सजी धर्मसभा:
धर्मसभा में सूरत, रुद्रपुर, बम्बई, दिल्ली, हाथरस और फरीदाबाद से आए धर्मप्रेमियों की उपस्थिति ने आयोजन को राष्ट्रीय स्वरूप प्रदान किया।
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