कुष्ठ रोगी खोज अभियान 21 से, घर-घर दस्तक देंगी टीम

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पल्स पोलियो की तर्ज पर चलेगा अभियान, तलाश किए जाएंगे कुष्ठ के नए रोगी, जनपद में चार जनवरी तक चलेगा अभियान
आगरा, 16 दिसंबर। राष्ट्रीय कुष्ठ उन्मूलन कार्यक्रम के अंतर्गत वर्ष 2030 तक जनपद को कुष्ठ से मुक्त करने के लिए स्वास्थ्य विभाग लगातार प्रयासरत है। इसी क्रम में 21 दिसंबर से चार जनवरी तक कुष्ठ रोगी खोज अभियान चलाया जाएगा। पल्स पोलियो अभियान की तर्ज पर स्वास्थ्य विभाग की टीम घर-घर जाकर नए कुष्ठ रोगियों को खोजेंगी।मुख्य चिकित्सा अधिकारी डॉ. अरुण श्रीवास्तव ने बताया कि जनपद में 21 दिसंबर से चार जनवरी तक कुष्ठ रोगी खोज अभियान चलाया जाएगा। इससे पहले वर्ष 2019 में कुष्ठ रोगी खोज अभियान में चलाया गया था, जिसमें 28 व्यक्ति कुष्ठ रोग से पीड़ित पाए गए थे। सभी को पंजीकृत कर मल्टी ड्रग थेरेपी (एमडीटी) से उपचार दिया गया। उपचार के पश्चात सभी मरीज पूरी तरह रोग मुक्त हो गये। उन्होंने बताया कि कुष्ठ रोग न तो आनुवंशिक है और न ही यह पूर्व जन्म के कर्म का फल। यह एक बीमारी है, जो बैक्टीरिया से होती है। अगर कुष्ठ की समय से पहचान हो जाए तो यह छह माह से एक वर्ष के भीतर इलाज से ठीक हो जाता है।

जिला कुष्ठ रोग अधिकारी डॉ. सीएल यादव ने कहा कि अभियान को सफल बनाने के लिए सभी लोगों की भागीदारी बहुत जरूरी है। कुष्ठ रोग से संबंधित जानकारी प्राप्त करने के लिए स्वास्थ्य विभाग की टीम घर आएंगी। उन्होंने लोगों से अपील की है कि विभाग की टीम जब घर आए तो कुष्ठ रोग के लक्षण वाले व्यक्तियों की सही जानकारी उपलब्ध कराकर सहयोग प्रदान करें, जिससे कुष्ठ रोगी का उपचार तुरंत शुरू किया जा सके और वह पूरी तरह स्वस्थ हो जाए। उन्होंने बताया कि शरीर का कोई भी दाग धब्बा जिस पर सुन्नपन हो, उसमें खुजली न हो, उसमें पसीना न आता हो कुष्ठ रोग हो सकता है। शरीर की संवेदना वाली नसों में मोटापन व दर्दीलापन कुष्ठ रोग का लक्षण हो सकता है, जांच व इलाज न कराने पर दिव्यांगता आ सकती है, कान की पाली का मोटा होना व कान पर गांठें होना, नसों में झनझनाहट और ठंडा गरम का एहसास न होना भी कुष्ठ रोग के लक्षण हैं। इस तरह का कोई भी लक्षण अगर नजर आता है तो अपने क्षेत्र की आशा कार्यकर्ता और नजदीकी स्वास्थ्य केंद्र पर संपर्क करके अपनी जांच अवश्य कराएं।डिप्टी डीएलओ डॉ. ध्रुव गोपाल ने कहा कि कुष्ठ रोगियों से भेदभाव नहीं किया जाना चाहिये। कुष्ठ रोगी को छूने और हाथ मिलाने से इस रोग का प्रसार नहीं होता। रोगी से अधिक समय तक अति निकट संपर्क में रहने पर उसके ड्रॉपलेट्स के जरिये ही बीमारी का संक्रमण हो सकता है। कुष्ठ रोग दो तरह का होता है-

पॉसिबैसिलरी कुष्ठ रोग (पीबी)-
जब किसी व्यक्ति की त्वचा पर लगभग एक से पांच सुन्न चकत्ते होते हैं और त्वचा के नमूनों में कोई बैक्टीरिया मिलने की संभावना कम हो जाती है। यह सबसे कम संक्रामक रूप है और इसे आगे ट्यूबरकुलॉइड (टीटी) और बॉर्डरलाइन ट्यूबरकुलॉइड (बीटी) में वर्गीकृत किया जा सकता है। यह छह से नौ माह के उपचार से ठीक हो जाता है।
मल्टीबैसिलरी कुष्ठ रोग (एमबी)
जब किसी व्यक्ति की त्वचा पर पांच से अधिक घाव होते हैं और त्वचा के धब्बों या दोनों में बैक्टीरिया पाए जाते हैं। यह सबसे संक्रामक रूप है और इसे बॉर्डरलाइन (बीबी), बॉर्डरलाइन लेप्रोमेटस (बीएल) और लेप्रोमेटस (एलएल) में वर्गीकृत किया जा सकता है। इसमें नसें भी प्रभावित हो जाती हैं। इसका उपचार एक से डेढ़ साल चलता है।
कुष्ठ रोग के लक्षण

त्वचा के रंग मे कोई भी परिवर्तन (त्वचा पर लाल रंग या फीके रंग का धब्बा) साथ ही उसमें पूर्ण रूप से सुन्नपन अथवा सुन्नपन का अहसास होना।
चमकीली व तैलीय त्वचा होना।
कर्ण पल्लव का मोटा होना, कर्ण पल्लव पर गांठ/त्वचा पर गांठ होना।
नेत्रों को बंद करने में दिक्कत या उससे पानी आना।
भौहों के बालों का झड़ना या खत्म होना।
हाथों में दर्द रहित घाव अथवा हथेली पर छाले होना।
कमीज या जैकेट के बटन बन्द करने में असमर्थ होना।
हाथ या पैर की उंगलियाँ मुड़ना
फूट ड्रॉप अथवा चलते समय पर पैरों का घिसटना ।
क्या कहते हैं मरीज-

बिचपुरी ब्लॉक के ग्राम माघतेइ के निवासी 55 वर्षीय राजकुमार (बदला हुआ नाम) बताते हैं- “मेरे हाथ, पीठ, पेट और पैर के कुछ हिस्सों पर वर्ष 2017 से लाल चकत्ते, धब्बे पड़ना शुरू हुए, लेकिन मैं अपने गृह जनपद के बाहर काम कर रहा था इसलिए मैंने इन दाग धब्बों पर ध्यान नहीं दिया, देखते ही देखते यह पूरे शरीर पर फैलने लगे। मेरे हाथ पैर सुन पड़ गए थे फिर मैंने परामर्श और उपचार के लिए वर्ष 2018 के अंत में बिचपुरी स्वास्थ्य केंद्र पर संपर्क किया। जांच के उपरांत पता चला कि मुझे कुष्ठ (मल्टी बेसिलाई संक्रमण) हो गया है। एक वर्ष तक नियमित दवा का सेवन किया। स्वास्थ्य केंद्र के चिकित्सक ने परिवार के सदस्यों को कुष्ठ रोग से बचाव की जानकारी दी। उनकी सलाह को ध्यान में रखते हुए इस बात का भी खास ख्याल रखा कि यह बीमारी मेरे घर के या मेरे आस-पास के किसी व्यक्ति को न हो। मैं अपने सारे काम खुद करने का प्रयास करता था, जिससे मेरे परिवार के सद्स्यों की ज्यादा निकटता मेरे साथ न हो । उन्होंने बताया कि एक वर्ष के उपचार के बाद मैं पूरी तरह रोग मुक्त हो गया , लेकिन मेरे हाथ की दो उंगलियां टेढ़ी हो गई थीं। स्वास्थ्य विभाग के सहयोग से जालमा इंस्टीट्यूट फॉर लेप्रोसी एंड अदर माइक्रोबैक्टीरियल डिजीज में मेरी दोनों उंगलियों का ऑपरेशन हुआ, ऑपरेशन के बाद उंगलियां पूरी तरह से ठीक है, वर्तमान में मुझे कुष्ठ अवस्था के अंतर्गत विकलांग कल्याण विभाग द्वारा 3000 रुपए प्रति माह की पेंशन भी मिल रही है। ठीक होने के बाद मैं बिचपुरी में अपनी दुकान पर घड़ी रिपेयरिंग का काम करता हूं और लोगों को कुष्ठ रोग के बारे में जागरूक भी कर रहा हूँ ।”

प्रत्येक टीम में दो सदस्य होंगे

नॉन मेडिकल असिस्टेंट राकेश बाबू ने बताया कि अभियान के लिए जिले में 3647 टीम बनाई जाएंगी। प्रत्येक टीम में एक पुरूष और एक आशा कार्यकर्ता होगी। एक टीम एक दिन में 30 से 35 घरों में जाकर स्क्रीनिंग करेगी। जिले की 54.49 लाख आबादी के बीच नए कुष्ठ रोगी खोजे जाएंगे। जिले में नवंबर माह तक सक्रिय कुष्ठ रोगियों की संख्या 106 है और व्यापकता दर 0.18 है।

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