ओलंपियन अशोक कुमार ध्यानचंद के जन्म दिन 1 जून पर विशेष आलेख _एक कैंसर पीड़ित की कलम से

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व्यक्ति को शाल ओढ़ाकर सम्मानित जब किया जाए जब वह संकट मे दुःख के महा सागर मे उसके जीवन की नाव गोता लगा रही हो _उसी संकट के दौर में 11.11.2011 को  बबलू दुबे को शाल ओढ़ाकर सम्मानित करते हुए मानवता इंसानियत की प्रतिमूर्ति ओलंपियन अशोक कुमार ध्यानचंद

 1 जून को अर्जुन अवार्ड से सम्मानित ओलंपियन विश्व कप विजेता अशोक कुमार का जन्म दिन है । वे न केवल एक खिलाड़ी के रूप मे अपने जमाने के सबसे लोकप्रिय महशूर खिलाड़ी रहे बल्कि एक नेक दिल इंसान जो केवल और केवल इन्सानियत से प्यार करता है और बस अपने वतन को आसमान की ऊंचाइयों पर हर क्षेत्र मे प्रतिस्थापित होते देखना चाहता है ,उसके लिए ही वह हर पल जीता हैं ,सोचता है, दौड़ता हैं।
जब कभी मै अपने बचपन के स्वय एक साधारण बाल हाकी खिलाड़ी की यादों को ताज़ा करता हूं तो वह दृश्य मेरी आंखों के सामने तैर जाता है जब मेरे पिता जी और माता जी हम भाईयो के साथ आस पड़ोस के परिचितो के साथ अशोक कुमार के मैचों की कमेंट्री सुनने के लिए घंटो पहले अपने रेडियो सेट् को ट्यून कर मैच प्रारंभ होने की प्रतीक्षा मे बैठ जाते थे। विश्लेषण शुरु हो जाता था कि यदि अशोक कुमार आज अपनी पूरी लय मे रहे तो भारत यह मैच जीतकर ही रहेगा। कोई ताकत नहीं जो भारत को पराजित कर सके। तरह_तरह की खूबियां गिनाई जाती थी। स्पोर्ट्स स्टार, धर्मयुग जैसी ख्याति लब्ध पत्र पत्रिकाओं मे खेलते हुए अशोक कुमार के चित्रों को अपने एलबम मे काट काट कर मां के द्वारा घर में आटे से बनी हुई लेई से उसे चिपकाता था और वह फोटो देख खुशी से झूम उठता था। तब उस समय मेरा बाल मन कभी सोचा करता था ,एक सपना देखा करता था कि क्या कभी जीवन मे अशोक कुमार से मेरी मुलाकात हो पायेगी ? और फिर मेरे जीवन मे अशोक कुमार से मेरी मुलाकात हुई वह भी जब मैं अपने जीवन के सबसे बुरे दौर से गुजरते कैंसर की जंग लड़ रहा था । तभी कंधे पर स्नेह का एक हाथ आकर थपी देता हैं। हाथ मे हाथ पकड़कर साथ चलना शुरु करता है, मैं घूम कर देखता हूं तो वह हाथ और कोई का नही बल्कि अशोक कुमार का था । जिन हाथो की कलाइयों के जादू ने 1975 विश्व कप मे पाकिस्तान के खिलाफ विजयी गोल निकला था जिसकी बदौलत हम विश्व विजेता बनने के हकदार बने ।  फिर मेरे जीवन का वह सपना पूरा हुआ कि क्या कभी मेरी मुलाकात अशोक कुमार से हो पायेगी या नहीं।अशोक कुमार का मेरे जीवन के इस कठिन दौर का यह संस्मरण जिसने दुनिया को एक बात अवश्य बतला दी की जब भी आप किसी को दिल से चाहेंगे तो वह व्यक्ति आपकी जिन्दगी मे मुसीबत के समय आपके लिए मसीहा बनकर आपके आंसू पोछने हर दम आपके साथ खड़ा मिलेगा, आपकी पीठ पर उसका हाथ होगा और यही कुछ अनुभूति अशोक कुमार भाई साहब ने मेरे जीवन मे दी जिसकी बदौलत मैं आज कैंसर को हराकर स्वस्थ और प्रसन्न हूं।
आज मैं सभी कैंसर पीड़ित परिवारों की ओर से उनको जन्म दिन की बहुत बहुत शुभ कामनाएं प्रेषित करता हूं की आप मानवता इंसानियत देश के लिए सालो साल अपना ऐसा ही प्यार और स्नेह बिखेरते रहे। जो भी मिला प्यार से , हम उसके हो लिए।
आपका
बबलू दुबे बैतूल से

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