गणतंत्र के जुलूस की व्यवस्थाएं न करने पर डीएम, नगरायुक्त और मेयर को नोटिस

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गणतंत्र के जुलूस की व्यवस्थाएं न करने पर डीएम, नगरायुक्त और मेयर को नोटिस

-24 घंटे में माफी न मांगने पर कानूनी कार्रवाई की चेतावनी दी राजीव गांधी बार एसोसिएशन के अध्यक्ष ने

आगरा, 28 जनवरी। पुरानी चुंगी, मोतीगंज के मैदान में स्वाधीनता दिवस , अब गणतंत्र दिवस पर भी परम्परागत जुलूस के लिए प्रशासन और नगर निगम द्वारा कोई व्यवस्था न किए जाने पर राजीव गांधी बार एसोसिएशन के अध्यक्ष रमाशंकर शर्मा एडवोकेट ने आगरा के जिलाधिकारी, नगर आयुक्त और महापौर हेमलता दिवाकर को एक नोटिस भेजकर 24 घंटे के अंदर माफी मांगने को कहा है। ऐसा न होने पर कानूनी कार्रवाई की बात नोटिस में कही गई है। प्रशासन और नगर निगम द्वारा कोई व्यवस्था न किए जाने के बावजूद कांग्रेसजनों ने गणतंत्र दिवस पर परंपरागत जुलूस निकाला और मोतीगंज स्थित पुरानी चुंगी के मैदान में जमीन और सीढ़ियों पर बैठकर गणतंत्र दिवस समारोह मनाया।

श्री शर्मा ने नोटिस में कहा है कि 1947 में देश के आजाद होने क बाद से ही स्वतंत्रता दिवस और गणतंत्र दिवस पर फुलट्टी चौराहे से जुलूस निकाले जाते रहे हैं। ये जुलूस पुरानी चुंगी, मोतीगंज पर पहुंचते थे और यहां सभा कर स्वाधीनता के नायकों को याद करने के साथ ही गणतंत्र दिवस के महत्व का बखान किया जाता था।

दोनों राष्ट्रीय पर्वों पर निकलने वाले परम्परागत जुलूसों की सारी व्यवस्थाएं नगर निगम एवं आगरा प्रशासन करता रहा है। भारत माता की एक झांकी, बैंड तथा पुरानी चुंगी के मैदान में मंच, माइक, कुर्सियां, फर्श और पानी की व्यवस्था की जाती थी। पिछले कुछ वर्षों से प्रशासन ने ये व्यवस्थाएं करनी बंद कर दी हैं।ंमअधिवक्ता रमा शंकर शर्मा ने कहा है कि विगत करीब 35 वर्षों से वह स्वयं भी अपने साथियों के साथ इस परंपरागत जुलूस में भाग लेकर पुरानी चुंगी के मैदान में जाकर गणतंत्र दिवस एवं स्वतंत्रता  मनाते आ रहे हैं। ऐसा लगता है कि आगरा के प्रशासन तथा महापौर को स्वतंत्रता आंदोलन के शहीदों एवं गणतंत्र दिवस से कोई सरोकार नहीं है।

नेताजी सुभाष चंद बोस आए थे इसी मैदान पर

सन 1940 में आगरा के क्रांतिकारियों ने नेताजी सुभाष चंद्र बोस को खून से पत्र लिखकर इसी मैदान में बुलाया था। नेताजी ने इसी मैदान में सभा कर तुम मुझे खून दो मैं तुम्हें आजादी दूंगा का नारा देकर सशस्त्र क्रांति का बिगुल फूंका था। इसके बाद 10 अगस्त 1942 को इसी मैदान में महात्मा गांधी के करो या मरो  नारे की शपथ ली गई थी। इसी मैदान में हुई एक सभा में अंग्रेजों ने क्रांतिकारियों पर गोलियां गोली चलवाई थीं, जिसमें 17 वर्ष के क्रांतिकारी परशुराम शहीद हुए थे।

 

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