
आगरा। दिनांक 3 दिसम्बर 1971 को आगरा में सिविल डिफेंस के तत्वावधान में ब्लैक आउट की माक ड्रिल प्रस्तावित थी। मैं सिविल डिफेंस के लोहामंडी प्रभाग में सेक्टर वार्डन के रूप में पदस्थ था। मेरे साथ अन्य वार्डन सर्वश्री सतीश चड्डा, लक्ष्मण मीरचंदानी, नारायण दास लालवानी (अब दिवंगत) भी सांयकाल 6 बजे आलमगंज में एकत्रित हुए थे। आपसी सामंजस्य से क्षेत्र में सायरन बजने पर कंप्लीट ब्लैक आउट कराने के लिए अपने अन्य साथियों के साथ भ्रमण करना था। सर्दियों में उस समय पर लगभग अंधेरा होने जा रहा था। दिनभर क्षेत्र में भ्रमण कर हम लोग कंप्लीट ब्लैक आउट का संदेश दे चुके थे। अचानक सांयकाल 7 बजे सायरन बजा। हम सचेत होकर ब्लैक आउट के कार्य में लग गए। हमने कुछ देर बाद आसमान में बम विस्फोट की रोशनी व भयंकर आवाजें सुनी। हमने समझा कि यह भी रिहर्सल का एक हिस्सा होगा लेकिन थोड़ी देर बाद हमें रेडियो प्रसारण द्वारा पता चला कि पाकिस्तान नें आगरा, जोधपुर व अन्य कई स्थानों पर हवाई हमले द्वारा बम विस्फोट किए गए हैं। हम पूरी रात क्षेत्र में भ्रमण करके ब्लैक आउट कराकर लोगों को सचेत करते रहे तथा उन्हें बताया कि खतरे का सायरन बजते ही हमें घरों के बाहर बनाए गए बंकरों में शरण लेनी होगी।
बाजारें भी सांयकाल अंधेरा होने से पहले बंद हो जाती थी। सभी घरों में रात्रि भोजन सांयकाल को ही तैयार कर लिया जाता था। घरों की खिड़कियां काले रंग से पोत दी गई थीं। जिन घरों के दरवाजों में दरारें थी उनपर भी काले कागज या रंग का प्रयोग इस प्रकार किया गया था जिससे जरा सी भी रोशनी बाहर न दिखाई दे।
दूसरे दिन अर्थात 4 दिसम्बर 1971 को भारतीय वायुसेना के साथ साथ थल सेना द्वारा भी पाकिस्तानी आक्रमण का मुंहतोड जवाब देकर दुश्मन की सेनाओं के छकके छुड़ा दिए। पाकिस्तान द्वारा किए जाने वाले समुद्री आक्रमण को भी हमारी नौसेना ने नेस्तनाबूद कर दिया।
इस प्रकार दिनांक 16 दिसम्बर 1971 तक युद्ध चला व पाकिस्तानी सेना ने आत्म समर्पण कर दिया।हम लोग दिनांक 17 दिसम्बर 1971 तक रात दिन एक करके अपने क्षेत्र की सुरक्षा करते रहे।निष्ठा पूर्वक सराहनीय कार्य करने पर हमें उत्तर प्रदेश शासन के नागरिक सुरक्षा विभाग द्वारा सम्मान पत्र व मैडल प्रदान किया गया जो आज भी मेरे पास सुरक्षित है।
मेरे निष्ठापूर्वक कार्य करने पर नागरिक सुरक्षा विभाग ने मुझे पोस्ट वार्डन के पद पर पदस्थ किया। जय हिंद।