
ठछी पीढ़ी के लोग झलकारी बाई की यादों को आज भी समेटे हुए हैं, राजनेताओं तथा अफसरशाही से मदद की उम्मीद
खूब लड़ी मर्दानी,वो तो झांसी वाली रानी थी। ये तो हम जब अपने गांव की प्राथमिक पाठशाला में पढ़ते थे, तब गुरुजनों द्वारा हमें पढ़ाया जाता था। क्लास के लगभग सभी बच्चों को यह कविता की तरह कंठस्थ रहता था। लेकिन झांसी की रानी लक्ष्मीबाई को युद्ध के मैदान से कालपी के लिये निकालने वाली उनकी हमशकल झलकारी बाई को लोगों ने समय के साथ भुला सा दिया है। हालांकि वे इतिहास में आज भी दर्ज हैं और आगे भी रहेंगी । भुला सा इसलिये दिला दिया गया कि झलकारी बाई की छठी पीढ़ी के लोग आज दो जून की रोटी बमुश्किल जुटा पा रहे हैं। इनके वंशजों में कोई प्राइवेट स्कूल में पढ़ाकर अपना पेट पालन कर रहा है तो कोई खेल विभाग में संविदा कोच के रूप में नौकरी कर अपने परिवार का भरण पोषण कर रहा है। वहीं इनमें से कुछ लोग मजदूरी कर अपना जीवन यापन कर रहे हैं। इनका कहना है कि हमारी जगह कुछ फर्जी लोग झलकारी बाई के वंशज बनकर सरकार से सम्मान तक पा गये हैं। इनका दावा है कि हम असली वंशज होते हुए भी हमारी कोई सुनवाई नहीं हो रही है। इसके लिये वे सरकार के नुमाइंदों से भी फरियाद कर चुके हैं। इनकी छठी पीढ़ी के वंशज योगेश कुमार वर्मा का कहना है कि वे आगरा में संविदा फुटबाल प्रशिक्षक के रूप में छोटा सा मानदेय पाकर अपना और परिवार का जीवन यापन कर रहे हैं।उनके भाई भी इसी तरह अपने परिवार को भरण पोषण कर रहे हैं।
ये बताते हैं कि श्रीमती झलकारी बाई रानी लक्ष्मीबाई की हम शक्ल थीं। इनमें अंतर केवल इतना था कि श्रीमती झलकारी बाई के बांई ओर चेहरे पर एक काला तिल था। जो दूर से दिखता भी नहीं था। बात 1857 की है। इस दिन वे अंग्रेजों से लोहो ले रही थीं। इसी बीच रानी लक्ष्मीबाई को कालपी की तरफ निकाल दिया।अंग्रेज इस धोखे में आ गये कि रानी अभी लड़ रही है। लेकिन तत्कालीन जनरल ह्यूरोस ने नजदीक से देखा तो वे समझ गये कि ये तो झलकारी बाई है। रानी तो बहुत दूर निकल गयी। इसके पश्चात जनरल ने झलकारी बाई को तोप से उड़वा दिया। जिससे वे वीरगति को प्राप्त हो गयीं। इनकी वंशावली उनके छठी पीढ़ी के वंशज योगेश वर्मा द्वारा कुछ इस तरह बतायी गयी है।
पूरनलाल तथा झलकारीबाई के वरिष्ठ वंशजों का विवरण :-
श्री मनसुखदास का प्रतिवेदन, नगर निगम आयुक्त झाँसी, सन् 1995 के अनुसार :-
श्री मनसुखदास जी जतारिया अपने पैतृक मकान, नयापुरा अन्दर उन्नाव गेट म.नं. 86, जिसका नया म.नं. 157 है, उसमें रहते हैं तथा उन्हीं के द्वारा यह जानकारी प्राप्त हुई।
1-पूरनलाल कोरी के पिता का नाम मूलचंद तथा माता का नाम मायादेवी था तथा इनका गोत्र जतारिया है। पूर्व में अपने पैतृक मकान भाण्डेरी गेट के बाहर लोंगर बाबा के पास रहते थे। इनका स्वयं का अखाड़ा (व्यायामशाला) था। जिसमें श्री मूलचन्द जी, युवकों को लकड़ी, तलवार, बल्लम-भाले चलाना तथा कुश्ती व मलखंब आदि सिखाते थे। मूलचन्द उस समय अखाड़े के उस्ताद थे। साथ ही अपने जीवन यापन के लिए, घर पर कपड़े बुनने का काम करते थे। जिसमें पूरा परिवार व्यस्त रहता था।

पूरनलाल कुश्ती में तथा मलखंब में बहुत ही माहिर थे। आस-पास के क्षेत्र में इनका नाम था। कद-काठी बहुत अच्छी थी, तथा पिता के कारण भी समाज के लोगों में धाक जमी हुई थी।
(अ) सदोबा ने एक बार पूरनलाल की कुश्ती देखी, तो वे बहुत प्रसन्न हुए। यह जानकर कि पूरनलाल, कोरी समाज के ही हैं, तो इनकी छाती गर्व से और अधिक फूल गई। उन्होंने अपनी पुत्री गंगादेवी उर्फ झलकारीबाई की शादी, सामाजिक परम्परा अनुसार पूरनलाल से कर दी। उस समय सदोबा भोजला ग्राम में रहते थे।
(ब) पूरनलाल की कुश्ती की चर्चा राजमहल में भी पहुँच चुकी थी। अतः राजा गंगाधरराव ने इनसे प्रसन्न होकर इन्हें (पूरनलाल को) सेना में भी भर्ती कर लिया था।
(स) हल्की कुंकुं उत्सव पर गंगादेवी (झलकारीबाई) की मुलाकात, रानी लक्ष्मीबाई से हुई, तथा झलकारीबाई की सहमति से लक्ष्मीबाई ने उसे दुर्गासेना में भर्ती कर लिया। बाद में वह अपने कौशल और वीरता के कारण दुर्गासेना की नायिका बन कर, रानी लक्ष्मीबाई की अंगरक्षिका का कार्य भी करने लगी थी।

(द) एक बार दुर्गा दल की महिला सेना, राजा गंगाधरराव के दर्शनार्थ, बारी-बारी से उनके सामने से, अभिवादन करते हुए गुजरी। तो रानी लक्ष्मीबाई ने गंगादेवी की तारीफ कर दी। उन्होंने पूरनलाल तोपची की पत्नी होने की बात, राजा के कान में, धीमे स्वर में कही। जब सभी महिला सैनिक निकल गई, तो रानी लक्ष्मीबाई ने गंगाधर राव से पूछा कि आपने गंगादेवी को देखा था ? तो गंगाधरराव ने जवाब दिया ‘एक झलक’ देखा था। तबसे रानी लक्ष्मीबाई एक झलक शब्द के कारण, गंगादेवी को, झलकारीबाई के नाम से पुकारने लगी और गंगादेवी का नाम झलकारीबाई राजमहल में पड़ गया।
(क) पूरनलाल तथा झलकारीबाई दोनों राजमहल में सैनिक के रूप में कार्य करते थे, किन्तु ये दोनों हमेशा नौकरी पर देर से पहुँचते थे। एक दिन, राजा गंगाधरराव ने देर से आने का कारण इनसे पूछा, तो पूरनलाल ने बताया कि “भाण्डेरी फाटक” देर से खुलता है। हम लोग भाण्डेरी फाटक के बाहर, लोंगर बाबा के पास रहते हैं। अतः फाटक के देरी से खुलने के कारण, हमें देर हो जाती है। एक दिन राजा साहब ने हाथी पर बैठ कर पूरनलाल के साथ भाण्डेरी गेट का मुआयना किया। आस- पास के लोगों से पूछताछ की, तो पाया कि कुछ राजकीय कारणों से भाण्डेरी गेट देर से खुलता है। अतः पूरनलाल और झलकारीबाई को, भाण्डेरी गेट के पास, अंदर बगीचे में मकान बना कर रहने के लिए, जगह दे दी। तब से ये लोग वहीं पर रहते चले आ रहे हैं। पूरनलाल झाँसी के युद्ध में, 5 अप्रैल 1858 को वीरगति को प्राप्त हुए, किन्तु झलकारीबाई बहुत ही लम्बी उम्र के बाद मरी।
3. पूरनलाल तथा झलकारीबाई के चार पुत्र हुए जिनका नाम क्रमशः (1) मऊँ (2) भवानीदास (3) सिरी (4) कथूले। मऊँ तथा भवानीदास का परिवार अभी भी है। किन्तु सिर्री की पागल हो जाने के कारण, शादी नहीं हुई, और कथूले की असमय मृत्यु हो जाने के कारण संतानहीन ही मर गया।
(अ) मऊँ की शादी भोगाबाई से हुई, जिसे भुगिया भी कहते थे। वह भाण्डेर की रहने वाली थी। भोगाबाई की मृत्य लंबी उम्र के बाद सन् 1945 में हुई।
(ब) मऊँ को भी राजमहल में राजगिरी (मकान बनाने का कार्य) का काम मिल गया था और वे किले की मरम्मत का कार्य करते थे। इसके बावजूद पैतृक धन्धा कपड़े बुनने का कार्य भी करते थे। इनकी मृत्यु 1914 में हुई।
4. मऊँ जतारया के चार पुत्र तथा एक पुत्री हुए। क्रमशः (1) खूबे (2) लूले (3) रम्मे (4) गुण्ठे तथा एक पुत्री जानकीबाई, जिसे जुगतीबाई भी कहते थे। खूबे तथा लूले व गुण्ठे निःसंतान मर गए।
(अ) रम्मे की शादी ललिताबाई से हुई, जो लक्ष्मी दरवाजे, झाँसी की रहने वाली थी। ललिताबाई की मृत्यु अगस्त 1976 में हुई। रम्मे अपने पैतृक मकान नयापुरा म.नं. 86 में ही रहते थे। ये भी राजगिरी का पैतृक काम करते थे। बाद में मकान बनाने का ठेका लेने लगे। जिससे इन्हें ठेकेदार भी कहा जाता था। 80 वर्ष की आयु में मार्च 1963 में इनकी मृत्यु हो गई।
(स) रम्मे की दो संताने हुई मनसुखदास व एक पुत्री जिसका नाम जियाबाई है।
5. श्री मनसुखदास जी की शादी चिरोंजीबाई से हुई, जो खुशीपुरा झाँसी की रहने वाली थीं। चिरोंजीबाई की 80 वर्ष की उम्र में 9 दिसम्बर 2003 को मृत्यु हो गई है।
(अ) श्री मनसुखदास जतारया अपने पूर्वजों के मकान उन्नाव गेट अन्दर म.नं. 86 में रहते थे। उनका परिवार बढ़ जाने के कारण आज इन्होंने लगभग 30 X 50 भूमि पर नया दो मंजिला मकान बना लिया था।
(ब) श्री मनसुखदास जी जतारया कक्षा दो तक पढ़े-लिखे थे। वे केवल लिख-पढ़ लेते थे। शिक्षित न होने के कारण पूर्व में किसी टेलर की दुकान पर सिलाई का कार्य सीखा, तथा बाद में घर पर ही सिलाई का कार्य करके, अपना जीवन यापन करते थे।
श्री मनसुखदासजी सीधे-सादे सरल स्वभाव के थे। दुबला-पतला शरीर होने के कारण 75 वर्ष की उम्र होने के बावजूद सन् 2000 में भी स्वस्थ व निरोगी होकर घूमते-फिरते थे। आपकी दाहिनी आँख में चेचक के कारण फुली पड़ गई, जिसके कारण थोड़ा कम भी दिखता था। आपने उस समय दाढ़ी व बाल बढ़ा रखे थे, जो चाँदी के समान हमेशा चमकते रहते थे।
(द) 22 नवम्बर 1997 को लक्ष्मीबाई व्यायामशाला इन्टर कॉलेज झाँसी में, वीरांगना झलकारीबाई जयंती समारोह में, श्री मनसुखदास जतारया को “झलकारीबाई वंशज” होने के नाते, कश्मीरी शॉल व श्रीफल देकर सम्मानित किया गया था।
(क) 22 नवम्बर 1998 को झलकारीबाई जंयती के शुभ अवसर पर कोरी समाज के विशाल समारोह में, कोरी समाज झाँसी की ओर से, मुख्य अतिथि सेवा योजना राज्यमंत्री (स्वतंत्र प्रभार) उ.प्र., श्री राधेश्याम कोरी के द्वारा, झलकारीबाई की पीतल की प्रतिमा, शॉल श्रीफल से श्री मनसुखदास जी जतारया को भेंट कर, सम्मानित किया गया था।
(ख) उपरोक्त आयोजन में श्री मनसुखदास जतारया ने “झलकारीबाई की एक पुस्तैनी तलवार”, श्री राधेश्याम कोरी, सेवा योजना राज्यमंत्री (उ.प्र.) सरकार को भेंट की। जो राष्ट्रीय संग्रहालय झाँसी के अभिलेख क्र. 98/83 पर अंकित कर, जनता के दर्शनार्थ रखी हुई है। श्री मनसुखदासजी, झलकारीबाई की तलवार, मंत्री जी को भेंट करते हुए। उनके पीछे, हार लिये, मनसुखदास के सुपुत्र श्री घनश्यामदास जतारया ।
(ग) 27, 28 अक्टूबर 2002 को, अखिल भारतीय कोली समाज (रजि.), नई दिल्ली का, 8वाँ राष्ट्रीय सम्मेलन, रवीन्द्र नाट्य गृह इन्दौर (म.प्र.) में हुआ था। जिसमें झलकारीबाई के वरिष्ठ वंशज होने के नाते विशाल समारोह में, श्री मनसुखदास जी जतारया को, स्मृति चिह्न के साथ शॉल-श्रीफल देकर, कार्यक्रम के मुख्य अतिथि, दिग्विजयसिंह , मुख्यमंत्री मध्य प्रदेश शासन ने सम्मानित किया था। समारोह में विभिन्न प्रदेशों से आये हुए, “कोरी समाज” के प्रतिनिधियों ने, श्री मनसुखदास जी को फूल मालाएं पहना कर, करतल ध्वनि से स्वागत किया, तथा ‘वीरांगना झलकारीबाई अमर रहे’ के नारे लगाए।
जतारिया (घ) श्री मनसुखदास जी जतारया कॉंग्रेस के कार्यकर्ता रहे । सन् 1942 में झाँसी के मालनों का चौराहा, बड़े बाजार में एक सार्वजनिक प्याऊ को बनाने के लिए कांग्रेस ने आन्दोलन किया था। जिसमें श्री मनसुखदास जतारया ने भाग लिया। उसमें इन्हें पकड़ कर, एक दिन की सजा सुनाकर, जेल भेज दिया गया था। किन्तु दूसरे ही दिन छोड़ दिया गया था।
श्री मनसुखदास जतारया ने सन् 1945-46 में धुलेकर के निर्देशन में “भारत छोड़ो आन्दोलन” में भाग लिया। पकड़े जाने पर इन्हें 6 दिन की सजा सुनाई गई। सातवें दिन इन्हें जेल से छोड़ दिया गया। अतः “वे स्वतंत्रता संग्राम सेनानी भी थे।”
भोगाबाई जो झलकारीबाई के पुत्र मऊँ की पत्नी थी, उसकी मृत्यु 1945 में हुई। उस समय मनसुखदास की उम्र 21 वर्ष की थी। भोगाबाई, झलकारीबाई के साथ बहुत दिनों तक साथ में रहीं और उन्हें झलकारीबाई ने अपने बहुत से साहसी कारनामों की कहानी सुनाई थी। बाद में वे ही कहानियाँ भोगाबाई ने मनसुखदास जी को सुनाई, जो वे दूसरों को बताते थे। श्री मनसुखदासजी जतारया की मृत्यु 17 अगस्त 2007 को हो गई है।
6. श्री मनसुखदास जतारया के 5 पुत्र तथा 4 पुत्रियों हैं:- (1) घनश्यामदास (2) कैलाश नारायण (3) रामस्वरूप (4) बृजकिशोर (5) जयराज तथा पुत्री (1) अनुसुईया (2) गीता (3) कान्ती (4) कुसुम।
सबसे बड़ी संतान श्री घनश्यामदास जतारया हैं। जिनकी शादी द्रोपदी देवी से हुई। ये सागर गेट, झाँसी की रहने वाली है। श्री घनश्यामदास जतारया जी की उम्र इस समय 67 वर्ष की है तथा द्रोपदी देवी की उम्र 62 वर्ष है।
गतारिया श्री घनश्यामदास जतारया जतीरया भी सीधे-सादे सरल स्वभाव के हैं, तथा रेल्वे के वर्कशॉप झाँसी में ग्रेड-1, फिटर के पद पर से रिटायर हुए। आप मजदूर संघ रेल्वे एम्पलाईज युनियन के प्रतिनिधि भी रहे । जिसके माध्यम से रेल्वे कर्मचारियों की सेवा करते रहते थे। आपकी शिक्षा इंटर तक है। रेल्वे कर्मचारी संघ वर्क शॉप झाँसी में, सह-सचिव के पद पर सेवाएं भी दी हैं।
श्री घनश्यामदास की चार संतानें हैं:- (1) प्रीति (2) हदेश
(3) धीरेन्द्र (4) योगेश।
7. घनश्यामदास के सबसे बड़े पुत्र का नाम हृदेश कुमार है। आप विद्यार्थी परिषद् झाँसी के संगठन मंत्री होने के नाते, 13 से 16 फरवरी 2000 को भाग लेने हेतु लखीमपुर गये थे।
श्री हृदेश कुमार वर्मा (जतारया)
नोट 1 श्री मनसुखदास जतारया जो कि झलकारीबाई तथा पूरनलाल जतारया के वंशज हैं, की साक्षी उनके मोहल्ले वालों तथा बुजुर्गों ने एक हलफनामा के ऊपर हस्ताक्षर करके, नगर नियम आयुक्त झाँसी को, वर्ष 1995 को दी थी, जिसकी फोटोकॉपी लेखक के पास है। उसमें लगभग 30 व्यक्तियों के हस्ताक्षर हैं, जिनमें तत्कालीन पार्षद, सामाजिक संगठन के पदाधिकारी एवं मोहल्ले के नामी गिरामी लोगों के हस्ताक्षर हैं। उसमें उपरोक्त कुछ विवरण छपा है।
उपरोक्त परिवार की, मृत्यु दिनाँकों की जानकारी, तथा कैमरा फोटो झलकारीबाई के वंशज श्री योगेश कुमार वर्मा ने,30 नवंबर 2024 को लिखित में लेखक लाखन सिंह बघेल को दी हैं, जो लेखक के पास है।