“जाति-जाति में जाति है, जो केतन के पात, रैदास मनुष ना जुड़ सके, जब तक जाति न जात”

Religion/ Spirituality/ Culture उत्तर प्रदेश दिल्ली/ NCR स्थानीय समाचार

 

27 Jan, 2019

मेरे प्यारे देशवासियों,भारत संतों की भूमि है। हमारे संतों ने अपने विचारों और कार्यों के माध्यम से सद्भाव, समानता और सामाजिक सशक्तिकरण का सन्देश दिया है।ऐसे ही एक संत थे – संत रविदास। 19 फरवरी को रविदास जयंती है।संत रविदास जी के दोहे बहुत प्रसिद्ध हैं।संत रविदास जी कुछ ही पंक्तियों के माध्यम से बड़ा से बड़ा सन्देश देते थे।उन्होंने कहा था – कि जिस प्रकार केले के तने को छीला जाए तो पत्ते के नीचे पत्ता फिर पत्ते के नीचे पत्ता और अंत में कुछ नही निकलता है।  पूरा पेड़ खत्म हो जाता है। ठीक उसी प्रकार इंसान को भी जातियों में बाँट दिया गया है और इंसान रहा ही नहीं है। वे कहा करते थे कि अगर वास्तव में भगवान हर इंसान में होते हैं, तो उन्हें जाति, पंथ और अन्य सामाजिक आधारों पर बांटना उचित नहीं है। गुरु रविदास जी का जन्म वाराणसी की पवित्र भूमि पर हुआ था।संत रविदास जी ने अपने संदेशों के माध्यम से अपने पूरे जीवनकाल में श्रम और श्रमिक की अहमियत को समझाने का प्रयास किया। ये कहा जाए तो गलत नहीं होगा कि उन्होंने दुनिया को श्रम की प्रतिष्ठा का वास्तविक अर्थ समझाया है। वो कहते थे –

“मन चंगा तो कठौती में गंगा”

अर्थात यदि आपका मन और ह्रदय पवित्र है तो साक्षात् ईश्वर आपके ह्रदय में निवास करते हैं।संत रविदास जी के संदेशों ने हर तबके, हर वर्ग के लोगों को प्रभावित किया है। चाहे चित्तौड़ के महाराजा और रानी हों या फिर मीराबाई हों, सभी उनके अनुयायी थे।

मैं एक बार फिर संत रविदास जी को नमन करता हूँ।

प्रधानमंत्री ने कहा कि इस महीने की 21 तारीख को देश को एक गहरे शोक का समाचार मिला। कर्नाटक में टुमकुर जिले के श्री सिद्धगंगा मठ के डॉक्टर श्री श्री श्री शिवकुमार स्वामी जी हमारे बीच नहीं रहे।शिवकुमार स्वामी जी ने अपना सम्पूर्ण जीवन समाज-सेवा में समर्पित कर दिया।भगवान बसवेश्वर ने हमें सिखाया है – ‘कायकवे कैलास’ – अर्थात् कठिन परिश्रम करते हुए अपना दायित्व निभाते जाना, भगवान शिव के निवास-स्थान, कैलाश धाम में होने के समान है। शिवकुमार स्वामी जी इसी दर्शन के अनुयायी थे और उन्होंने अपने 111 वर्षों के जीवन काल में हज़ारों लोगों के सामाजिक, शैक्षिक और आर्थिक उत्थान के लिए कार्य किया।मुझे कई बार परम पूज्य स्वामी जी का आशीर्वाद प्राप्त करने का सौभाग्य मिला है।वर्ष 2007 में, श्री श्री श्री शिवकुमार स्वामी जी के शताब्दी वर्ष उत्सव समारोह के अवसर पर हमारे पूर्व राष्ट्रपति डॉ० ए.पी.जे. अब्दुल कलाम टुमकुर गए थे। कलाम साहब ने इस मौके पर पूज्य स्वामी जी के लिए एक कविता सुनाई थी।डॉक्टर कलाम साहब की यह कविता श्री श्री श्री शिवकुमार स्वामी जी के जीवन और सिद्धगंगा मठ के mission को सुन्दर ढंग से प्रस्तुत करती है।एक बार फिर, मैं ऐसे महापुरुष को अपने श्रद्धा-सुमन अर्पित करता हूँ।

मेरे प्यारे देशवासियो, 26 जनवरी 1950 को हमारे देश में संविधान लागू हुआ और उस दिन हमारा देश गणतंत्र बना और कल ही हमने आन-बान-शान के साथ गणतंत्र दिवस भी मनाया लेकिन मैं, आज कुछ और बात करना चाहता हूँ। हमारे देश में एक बहुत ही महत्वपूर्ण संस्था है, जो हमारे लोकतंत्र का तो अभिन्न अंग है ही और हमारे गणतंत्र से भी पुरानी है – मैं भारत के चुनाव आयोग के बारे में बात कर रहा हूँ। 25 जनवरी को चुनाव आयोग का स्थापना दिवस था, जिसे ‘राष्ट्रीय मतदाता दिवस’,  के रूप में मनाया जाता है।जब हम सुनते हैं कि हिमाचल प्रदेश में समुद्र तल से 15,000 फीट की ऊँचाई वाले क्षेत्र में भी मतदान केंद्र स्थापित किया जाता है, तो अंडमान और निकोबार के द्वीप समूह में दूर-दराज के द्वीपों में भी वोटिंग की व्यवस्था की जाती है। और आपने गुजरात के विषय में तो जरुर सुना होगा कि गिर के जंगल में, एक सुदूर क्षेत्र में, एक पोलिंग बूथ, जो सिर्फ केवल 1 मतदाता के लिए है। कल्पना कीजिए… केवल एक मतदाता के लिए।जब इन बातों को सुनते हैं तो चुनाव आयोग पर गर्व होनाबहुत स्वाभाविक है।

इस साल हमारे देश में लोकसभा के चुनाव होंगे, यह पहला अवसर होगा जहाँ 21वीं सदी में जन्मे युवा लोकसभा चुनावों में अपने मत का उपयोग करेंगे। उनके लिए देश की ज़िम्मेदारी अपने कन्धों पर लेने का अवसर आ गया है। मैं युवा-पीढ़ी से आग्रह करता हूँ कि अगर वे मतदान करने के लिए पात्र हैं तो ख़ुद को ज़रूर मतदाता के रूप में register करवाएँ। मैं देश की जानी-मानी हस्तियों से आग्रह करता हूँ कि हम सब मिलकर voter registration हो, या फिर मतदान के दिन वोट देना हो, इस बारे में अभियान चलाकरके लोगों को जागरूक करें। मुझे उम्मीद है कि भारी संख्या में युवा मतदाता के रूप में पंजीकृत होंगे और अपनी भागीदारी से हमारे लोकतंत्र को और मजबूती प्रदान करेंगे।

मेरे प्यारे देशवासियो, भारत की इस महान धरती ने कई सारे महापुरुषों को जन्म दिया है और उन महापुरुषों ने मानवता के लिए कुछ अद्भुत, अविस्मरणीय कार्य किये हैं। हमारा देश बहुरत्ना-वसुंधरा है।ऐसे महापुरुषों में से एक थे – नेताजी सुभाष चन्द्र बोस। 23 जनवरी को पूरे देश ने एक अलग अंदाज में उनकी जन्म जयन्ती मनाई। नेताजी की जन्म जयन्ती पर मुझे भारत की आजादी के संघर्ष में अपना योगदान देने वाले वीरों को समर्पित एक संग्रहालय का उद्घाटन करने का सौभाग्य प्राप्त हुआ। आप जानते हैं कि लाल किले के भीतर आज़ादी से अब तक कई ऐसे कमरे, इमारतें बंद पड़ी थी। उन बंद पड़े लाल किले के कमरों को बहुत सुन्दर संग्रहालयों में बदला गया है, नेताजी सुभाष चन्द्र बोस और Indian National Army को समर्पित संग्रहालय; ‘याद-ए-जलियां’; और 1857 –Eighteen Fifty Seven, India’s First War of Independence को समर्पित संग्राहलय और इस पूरे परिसर को ‘क्रान्ति मन्दिर’ के रूप में देश को समर्पित किया गया है।इसी स्थान पर, भारत माँ के वीर बेटों – कर्नल प्रेम सहगल, कर्नल गुरबख्श सिंह ढिल्लो और मेजर जनरल शाहनवाज़ खां पर अंग्रेज हुकूमत ने मुकदमा चलाया था।

जब मैं लाल किले में, क्रान्ति मंदिर में, वहाँ नेताजी से जुड़ी यादों के दर्शन कर रहा था तब मुझे नेताजी के परिवार के सदस्यों ने एक बहुत ही ख़ास कैप, टोपी भेंट की। कभी नेताजी उसी टोपी को पहना करते थे।मैंने संग्रहालय में ही उस टोपी को रखवा दिया, जिससे वहाँ आने वाले लोग भी उस टोपी को देखें और उससे देशभक्ति की प्रेरणा लें।अभी महीने भर पहले ही 30 दिसंबर को मैं अंडमान और निकोबार द्वीप गया था। एक कार्यक्रम में ठीक उसी स्थान पर तिरंगा फहराया गया, जहां नेताजी सुभाष चंद्र बोस ने 75 साल पहले तिरंगा फहराया था।इसी तरह से अक्टूबर 2018 में लाल किले पर जब तिरंगा फहराया गया तो सबको आश्चर्य हुआ, क्योंकि वहाँ तो 15 अगस्त को ही यह परम्परा है। यह अवसर था आजाद हिन्द सरकार के गठन के 75 वर्ष पूरे होने का।

सुभाष बाबू ने आज़ादी की लड़ाई में अहम भूमिका निभाई।“ दिल्ली चलो’,‘तुम मुझे खून दो, मैं तुम्हे आज़ादी दूंगा”, जैसे ओजस्वी नारों से नेताजी ने हर भारतीय के दिल में जगह बनाई।कई वर्षों तक यह मांग रही कि नेता जी से जुड़ी फाइलों को सार्वजनिक किया जाए और मुझे इस बात की खुशी है, यह काम हम लोग कर पाए।मुझे वो दिन याद है, जब नेताजी का सारा परिवार प्रधानमंत्री निवास आया था। मुझे ख़ुशी है कि भारत के महान नायकों से जुड़े कई स्थानों को दिल्ली में विकसित करने का प्रयास हुआ है। चाहे वो बाबा साहेब आंबेडकर से जुड़ा 26, अलीपुर रोड हो या फिर सरदार पटेल संग्रहालय हो या वो क्रांति मंदिर हो।अगर आप दिल्ली आएँ तो इन स्थानों को ज़रूर देखने जाएं।

1942 में सुभाष बाबू ने आजाद हिन्द रेडियो की शुरुआत की थी और रेडियो के माध्यम से वो ‘आजाद हिन्द फौज’ के सैनिकों से और देश के लोगों से सवांद किया करते थे। सुभाषबाबू का रेडियो पर बातचीत शुरू करने का एक अलग ही अंदाज़ था। वो बातचीत शुरू करते हुए सबसे पहले कहतेथे – This is Subhash Chandra Bose speaking to you over the Azad Hind Radio और इतना सुनते ही श्रोताओं में मानो एक नए जोश, एक नई ऊर्जा का संचार हो उठता।मुझे बताया गया कि ये रेडियो स्टेशन, साप्ताहिक समाचार बुलेटिन भी प्रसारित करता था, जो अंग्रेज़ी, हिंदी, तमिल, बांग्ला, मराठी, पंजाबी, पश्तो और उर्दू आदि भाषाओं में होते थे।इस रेडियो स्टेशन के संचालन में गुजरात के रहने वाले एम.आर. व्यास जी ने बहुत ही अहम भूमिका निभाई।आजाद हिन्द रेडियो पर प्रसारित होने वाले कार्यक्रम सामान्य जन के बीच काफी लोकप्रिय थे और उनके कार्यक्रमों से हमारे स्वाधीनता संग्राम के योद्धाओं को भी बहुत ताकत मिली।

इसी क्रांति मंदिर में एक दृश्यकला संग्रहालय भी बनाया गया है। भारतीय कला और संस्कृति बहुत ही आकर्षक तरीक़े से बताने का प्रयास यह हुआ है।संग्रहालय में 4 ऐतिहासिक exhibitions हैं और वहाँ तीन सदियों पुरानी 450 से अधिक पेंटिंग्स और art works मौजूद हैं।संग्रहालय में अमृता शेरगिल, राजा रवि वर्मा, अवनींद्र नाथ टैगोर, गगनेंद्र नाथ टैगोर, नंदलाल बोस, जामिनी राय, सैलोज़ मुखर्जी जैसे महान कलाकारों के उत्कृष्ट कार्यों का बखूबी प्रदर्शन किया गया है।और मैं आप सबसे विशेष रूप से आग्रह करूँगा कि आप वहां जाएँ और गुरुदेव रबीन्द्रनाथ टैगोर जी के कार्यों को अवश्य देखें।

अब आप सोच रहे होंगे कि यहाँ बात कला की हो रही है और मैं आपसे गुरुदेव टैगोर के उत्कृष्ट कार्यों को देखने की बात कर रहा हूँ। आपने अभी तक गुरुदेव रबीन्द्रनाथ टैगोर को एक लेखक और एक संगीतकार के रूप में जाना होगा। लेकिन मैं बताना चाहूँगा कि गुरुदेव एक चित्रकार भी थे।उन्होंने कई विषयों पर पेंटिंग्स बनाई हैं। उन्होंने पशु पक्षियों के भी चित्र बनाए हैं, उन्होंने कई सारे सुंदर परिदृश्यों के भी चित्र बनाए हैं और इतना ही नहीं उन्होंने human characters को भी कला के माध्यम से canvas पर उकेरने का काम किया है।और खास बात ये है कि गुरुदेव टैगोर ने अपने अधिकांश कार्यों को कोई नाम ही नहीं दिया। उनका मानना था कि उनकी पेंटिंग देखने वाला खुद ही उस पेंटिंग को समझे, पेंटिंग में उनके द्वारा दिए गए संदेश को अपने नजरिए से जाने।उनकी पेंटिंग्स को यूरोपीय देशों में, रूस में और अमेरिका में भी प्रदर्शित किया गया है।मुझे उम्मीद है कि आप क्रांति मंदिर में उनकी पेंटिंग्स को जरुर देखने जाएंगे।

मेरे प्यारे देशवासियों,मै हमेशा कहता हूँ, जो खेले वो खिले और इस बार के खेलो इंडिया मेंढ़ेर सारे तरुण और युवाखिलाड़ी खिल के सामने आए हैं।जनवरी महीने में पुणे में खेलो इंडिया यूथ गेम्स में 18 गेम्स में करीब 6,000 खिलाड़ियों ने भाग लिया।जब हमारा sports का local ecosystem मजबूत होगा यानी जब हमारा base मजबूत होगा तब ही हमारे युवा देश और दुनिया भर में अपनी क्षमता का सर्वोत्तम प्रदर्शन कर पाएंगे। जब local level पर खिलाड़ी best प्रदर्शन करेगा तब ही वो global level पर भी best प्रदर्शन करेगा।इस बार ‘खेलो इंडिया’ में हर राज्य के खिलाड़ियों ने अपने-अपने स्तर पर अच्छा प्रदर्शन किया है। मेडल जीतने वाले कई खिलाड़ियों का जीवन ज़बर्दस्त प्रेरणा देने वाला है।

मेरी आप सबको बहुत-बहुत शुभकामनाएँ, बहुत-बहुत धन्यवाद।

 

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