आस्ट्रेलिया में बसे भारतीयों ने ही छीना भारतीय हाकी का स्वर्णिम युग

SPORTS उत्तर प्रदेश उत्तराखंड मध्य प्रदेश राजस्थान स्थानीय समाचार

कामनवेल्थ गेम्स में लगातार सातवीं बार आस्ट्रेलिया बना हाकी का बादशाह, ओलंपियन जगबीर सिंह ने फिर कहा , सुविधाएं मिलें तो लौट सकता है भारतीय हाकी का स्वर्णिम काल

लाखन सिंह बघेल, आगरा । एक समय था, जब विश्व हाकी पर भारतीयों की धाक थी । एक बार नहीं 8 बार हम ओलंपिक के चैंपियन बने । एक समय था, जब दादा ध्यानचंद और उनके साथियों की तूती बोलती थी । लेकिन देश के आजाद होने के बाद कुछ भारतीय आस्ट्रेलिया में जाकर रहने चले गए । उन्होंने वहां पर हाकी की भारतीय शैली को अपनाया और फिर क्या था वे विजेता बनते चले गए । उसी का परिणाम है कि आस्ट्रेलिया कामनवेल्थ गेम में लगातार सात बार चैंपियन बन गया । बीते दिवस ही उन्होंने खिताबी मुकाबले में भारत को 7-0 से पराजित कर दिया । एक समय वह भी था, जब भारत ओलंपिक में लगातार हाकी का स्वर्ण पदक जीतता था । 1928 से लगातार तीन ओलंपिक 1932, 1936 में स्वर्णिम छटा बिखेरी । विश्व युद्ध के चलते कुछ वर्षों तक ओलंपिक खेल नहीं हुए । इसके पश्चात 1948, 1952, 1956 और 1964 के ओलंपिक खेलों में हमने चैंपियन का दबदबा कायम रखा ।
इसके बाद भारती हाकी में गिरावट शुरू हुई। वहीं आस्ट्रेलियाई टीम मजबूत होती गयी ।  1964 के ओलंपिक के बाद भारत को हाकी में रजत और कांस्य से भी संतोष करना पड़ा। इसके बाद 1980 में जाकर भारत ने हाकी में स्वर्णिम छटा बिखेरी । तब से लेकर लगातार भारतीय हाकी संघर्ष करती रही । एक पुस्तक के मुताबिक 1947 में जब देश आजाद हुआ तो काफी संख्या में लोग आस्ट्रेलिया चले गये। उन्होंने वहां जाकर भारतीय हाकी शैली का प्रचलन शुरू कर दिया । हालांकि उस समय आस्ट्रेलियाई हाकी शैली अलग थी । भारतीय हाकी के विशेषज्ञ ओलंपियन जगबीर सिंह का कहना है कि 1956 के मेलबोर्न ओलंपिक में आस्ट्रेलियाई टीम में 4-5 एंग्लोइंडियन खिलाड़ी थे । हालांकि इस ओलंपिक में भी भारत ने ही हाकी का स्वर्ण पदक जीता था । श्री जगबीर सिंह का कहना है कि आस्ट्रेलिया का पैनाल्टी कार्नर का बैस्ट स्कोरर माना जाने वाले खिलाड़ी क्रिस सेरेलो की मां कोलकाता की रहने वाली थी। सेरेलो जगबीर सिंह की कप्तानी में पंजाब वारियर से खेले । कोरोना से पहले आगरा में भी उनकी टीम ने एक प्रदर्शनी मैच खेला था। भारतीय हाकी टीम के पूर्व कप्तान का मानना है कि भारतीय हाकी शैली के दम पर ही 1970 से आस्ट्रेलिया ने हाकी में बढ़त लेना शुरू कर दिया था । 1976 में ही उनके यहां एस्ट्रोटर्फ लग गए थे। जबकि भारत में पहली बार एस्ट्रोटर्फ 1982 में आया ।
आस्ट्रेलियाई टीम में टेरी वाल्श, पाल गोडाइन आदि कई एंग्लो इंडियन रहे हैं। कामनवेल्थ हाकी का तो आस्ट्रेलिया बादशाह बना ही हुआ है। 2004 के एथेंस ओलंपिक खेलों में भी उन्होंने हाकी का स्वर्ण पदक जीता था । एक समय भारतीय हाकी टीम के कोच रहे आस्ट्रेलियाई माइकल नार्ब्स का कहना था कि मुझे हाकी खेलने की प्रेरणा ही भारतीयों से मिली । इसीलिए तो कहा जाता है कि हाकी भारतीय खेल था । लेकिन अब उसी में हम पिछड़ गए । पिछले ओलंपिक में भारतीय हाकी टीम ने कांस्य पदक जीता था। इससे देश के हाकी खिलाड़ियों में एक नये जोश का संचार हुआ है। इससे उम्मीद है कि आगे चलकर भारतीय हाकी का स्वर्णिम काल लौट भी सकता है । ओलंपियन जगबीर सिंह का कहना है कि इंग्लैंड में हुए कामनवेल्थ गेम्स में हाकी के सेमीफाइनल मुकाबले में भारतीय हाकी टीम दक्षिण अफ्रीका से कड़े मुकाबले में जीतकर फाइनल में पहुंची थी । उसी से अंदाजा लग गया था कि फाइनल में आस्ट्रेलिया के सामने टिकना कितना मुश्किल है और हुआ भी वही, कंगारूओं ने हमें 7-0 के भारी अंतर से पराजित कर स्वर्ण पदक हथिया लिया। हमें रजत पदक से ही संतोष करना पड़ा ।  कुल मिलाकर आस्ट्रेलिया के एंग्लो इंडियन ने ही भारत और पाकिस्तान की हाकी को पीछे धकेल दिया है । इस बीच ओलंपियन जगबीर सिंह ने कहा है कि सुविधाएं बढ़ायी जाएं तो भारतीय हाकी एक बार फिर अपना वही स्वर्णिम काल प्राप्त कर सकती है जो कि पहले था।

 

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *