हाईकोर्ट ने अपनाया कड़ा रुख, कहा बच्ची की कस्टडी और जीवन से जुड़ा है मामला
देरी का सटीक कारण बताने के लिए निदेशक को किया तलब
आगरा। 16 माह से बाल गृह में अनिरुद्ध बालिका की डीएनए बालिका और उसकी जैविक पिता होने का दावा करने वालों की डीएनए जांच रिपोर्ट ना आने पर हाईकोर्ट इलाहाबाद हाईकोर्ट ने कारो के अख्तर किया है हाई कोर्ट ने कहा है कि यह मामला एक नाबालिक बच्ची की कस्टडी और जीवन से जुड़ा हुआ है इसमें लापरवाही बर्दाश्त नहीं की जाएगी। हाईकोर्ट द्वारा दिए गए दो अवसरों में भी डीएनए की जांच रिपोर्ट पेश नहीं हो सकी। इस पर हाईकोर्ट ने नाराजगी व्यक्त की। सरकारी अधिवक्ता मुकुल त्रिपाठी ने कहा कि उन्होंने फोरेंसिक विज्ञान प्रयोगशाला एफएसएल) आगरा के उप निदेशक अशोक कुमार से बात की। उन्होंने बताया है कि नाबालिग बच्चे की डीएनए जांच रिपोर्ट जमा करने के लिए उन्हें छह सप्ताह का समय चाहिए होगा। दो-तीन मामले लंबित होने के कारण समय की आवश्यकता है, जिसमें उच्च न्यायालय द्वारा तत्काल रिपोर्ट मांगी गई है और लगभग चार मामले जिला अदालतों के समक्ष लंबित हैं जिनमें फिर से शीघ्र रिपोर्ट मांगी गई है। ऐसी परिस्थितियों मे उन्होंने प्रार्थना की है। इसलिए डीएनए परीक्षण रिपोर्ट जमा करने के लिए छह सप्ताह का समय दिया गया।
बच्ची के जीवन और कस्टडी पर हाईकोर्ट गंभीर
बच्ची लंबे समय से बाल गृह में निरुद्ध है। वह परिवार से दूर है। बच्ची के जीवन और कस्टडी पर हाई कोर्ट गंभीर है हाईकोर्ट ने कहा कि इस मामले में नाबालिग बच्ची की कस्टडी और उसका जीवन शामिल है। रिपोर्ट में देरी नहीं होनी चाहिए। रिपोर्ट में विफल रहने पर निदेशक एफएसएल आगरा को अदालत में देरी का सटीक कारण और उन सभी मामलों का विवरण बताने के लिए अदालत में उपस्थित रहने का आदेश जारी किया है। याचिकाकर्ता के अधिवक्ता विपिन चंद्र पाल ने बच्ची के भविष्य की दलील दी। निजी प्रतिवादी के वकील को भी सुना गया। इस मामले अगली सुनवाई 29 जनवरी निर्धारित की गई है। अनुपालन के लिए आदेश की प्रति
निदेशक एफएसएल आगरा को उपलब्ध करा दी गई है।
लंबी अवधि में न करें समय बर्बाद
हाईकोर्ट ने कहा है कि विधि विज्ञान प्रयोगशाला विशेष रूप से डीएनए परीक्षण के संबंध में अपनी सुविधाओं को उन्नत करने के लिए सर्वोत्तम प्रयास करे ताकि न्यायालयों के आदेशों का पालन करने या परीक्षण करने में अनुचित रूप से लंबी अवधि का समय न बर्बाद हो। हाईकोर्ट में बच्ची को न्याय दिलाने की पैरवी कर रहे चाइल्ड राइट्स एक्टिविस्ट नरेश पारस ने कहा है कि बालिका का सर्वोत्तम हित परिवार में ही सुरक्षित है। बच्ची ने अपनी हर काउंसलिंग रिपोर्ट में पालनहार यशोदा को ही मां के रूप में पहचाना है तथा उसी के साथ जाने की इच्छा जाहिर की है। डीएनए जांच रिपोर्ट के बाद उसके जैविक माता-पिता के बारे में स्पष्ट जानकारी हो सकेगी। हाईकोर्ट के आदेश पर हर मंगलवार को पालनहार मां की मुलाकात बच्ची से कराई जा रही है। इससे कुछ हद तक दोनों के बीच संबंध मजबूत हो रहे हैं।