बंटवारे की विभीषिका को याद कर नम हुईं आंखें

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14 अगस्त वर्ष 1947 को पाकिस्तान में मची थी जबर्दस्त मारकाट,  लाखों लोगों को हिंसा के बीच छोड़ना पड़ा घर-बार

आगरा, 14 अगस्त। विभीषिका के दंश को याद करते हुए आंखे नम हो गईं। हिंसा का ऐसा भयानक दौर था कि उसकी कल्पना मात्र से ही रुह कांप उठती है। भारत-पाक बंटवारे की विभीषिका को याद करते हुए पुरखों की याद में मोमबत्तियां जलाकर उन्हें श्रद्धाजंलि दी गई।दरेसी स्थित होटल लाल्स-इन में भारतीय सिंधु सभा ने विभीषिका दिवस मनाया। 14 अगस्त, 1947 को देश के विभाजन का दंश झेला था। लाखों परिवारों को मारकाट के बीच पाकिस्तान में अपना घर-बार छोड़कर जान बचाने के लिए भागकर यहां आना पड़ा था। इस दौरान हुई गोष्ठी में वक्ताओं ने अपने, बुजुर्गों से सुने संस्मरण सुनाए। महामंत्री चंद्र प्रकाश सोनी की अध्यक्षता में हुई संगोष्ठी में त्रासदि को याद किया गया। उन्होंने बताया कि किस तरह से विभाजन के दौरान लाखों परिवारों को सिंध से रातों-रात पलायित होना पड़ा था।
अन्य वक्ताओं ने भी बताया कि उनके परिवार के परिजन सब कुछ छोड़कर खाली हाथ यहां आए थे। जिंदगी तो किसी तरह बच गई, पर संघर्ष करना पड़ा। सिंधी समाज के लोगों ने विभीषिका को याद करते हुए अपने घरों और प्रतिष्ठानों  पर मोमबत्तियां जलाईं। बैठक में भारतीय सिंधु सभा के प्रदेश सारक्षक घनश्याम दास देवनानी,महामंत्री चंद्र प्रकाश सोनी,मीडिया प्रभारी मेघराज दियालानी,अमृत मखीजा,राज कुमार गुरनानी,किशोर बुधरानी,नरेश देवनानी,अशोक परवानी,जगदीश डोडानी,परमानन्द आटवानी,जयराम होतचंदानी,सुशील नोतनानी , रोहित आयलानी, गन्नू भाई,लाल एम सोनी अशोक चावला,राजू खेमानी,जय प्रकाश केशवानी,कन्हैया सोनी,हरीश मोटवानी,योगेश शटवानी ,वासदेव गोकलानी आदि उपस्थित थे।

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