लाखों लोगों की आंखों के आपरेशन किये, पुत्र के बाद पौत्र भी नेत्र रोग विशेषज्ञ, ईरान में आंखों के अस्पताल खुलवाये
एक जमाना था, जब आंखों के डाक्टर गांव-गांव और घर-घर जाकर लोगों की आंखों का इलाज किया करते थे
87 साल की उम्र में वे स्टेडियम में टहलना नहीं भूलते
एल एस बघेल, आगरा, 6 सितंबर। एक जमाना था, जब आंखों के डाक्टर गांव-गांव और घर-घर जाकर लोगों की आंखों का इलाज किया करते थे। वहीं पर शिविर लगाकर मरीजों की आंखों के आपरेशन तक करते थे। ताजनगरी में इस परंपरा को बंद कर आंखों के अस्पताल खोलने वाले पहले चिकित्सक डा. आर बी सक्सेना बने। उन्होंने सन् 1980 में विदेश से लौटने के पश्चात आगरा में वजीरपुरा रोड पर संजय प्लेस में आई क्लीनिक खोला। लोग वहीं पर अपनी आंखों का इलाज कराने आने लगे। उन्होंने धर्मार्थ नेत्र चिकित्सालय भी चलाया । यही नहीं आगरा को लगातार तीसरी पीढ़ी में नेत्र रोग विशेषज्ञ देने वाले वे पहले चिकित्सक हैं। जिनका बेटा और फिर नाती भी आई स्पेशलिस्ट हैं। देश -विदेश में लाखों लोगों की आंखों को रोशन करने वाले 87 साल के चिकित्सक डा आर बी सक्सेना ईरान में आंखों के अस्पताल भी खुलवा चुके हैं।
चरखारी स्टेट जिला महोबा में 16 नवंबर 1936 को जन्मे डा. आर बी सक्सेना ने प्राथमिक शिक्षा चरखारी में ही प्राप्त की। इसके पश्चात रीवा, मध्य प्रदेश से इंटरमीडिएट किया। इसके पश्चात ही अखिल भारतीय मेडिकल परीक्षा उत्तीर्ण कर 1956 में आगरा के एस एन मेडिकल कालेज में एमबीबीएस में एडमिशन लिया। वे बताते हैं कि सन 1950 में पूरे हिंदुस्तान में केवल 30 मेडिकल कालेज हुआ करते थे। जिनमें से दो आगरा और लखनऊ, उत्तर प्रदेश में थे। उस जमाने में एस एन मेडिकल कालेज में एमबीबीएस में देशभर से 70 छात्रों का चयन किया जाता था, जिनमें 30 छात्राएं हुआ करती थीं। एमबीबीएस करने के पश्चात उन्होंने एम एस में एडमिशन आगरा में ही लिया। 1964 में एम एस किया। वे बताते हैं कि नेत्र रोग विशेषज्ञ के लिए केवल दो ही जूनियर डाक्टरों का चयन किया जाता था। एस एन मेडिकल कालेज में एम एस और एम डी में केवल 20 चिकित्सा छात्र हुआ करते थे। इस दौरान वे जूनियर डाक्टरों को पढ़ाते भी थे। यहां से वे वर्ष 1965-66 में भोपाल के गांधी कालेज में चिकित्सा शिक्षक बन गये। इसके पश्चात 1967 में गुजरात चले गये। वहां सूरत, अहमदाबाद, जामनगर के मेडिकल कालेज में पढ़ाया। इस दौरान कांफ्रेंस अटैंड करने के लिए विदेश भी जाते रहते थे।
ईरान में आंखों के अस्पताल खुलवाये
1973 में तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने भारत सरकार की ओर से डा. सक्सेना को ईरान भेज दिया। पूरे चिकित्सा दल के साथ वे ईरान पहुंच गये। वहां आंखों के अस्पताल खुलवाये। वहां के निवासियों की आंखों का उपचार किया। डा. सक्सेना बताते हैं कि उन दिनों ईरान में लड़कियां काफी संख्या में सरकारी दफ्तरों में काम करती थीं। नर्स अस्पताल में प्रापर ड्रैस में ड्यूटी करती थीं। उस समय ईरान में राजशाही शासन था। भारतीय दल वहां एक साल के लिय़े गया था लेकिन वहां के लोगों की मांग रक पर भारत सरकार ने इनका कार्यकाल बढ़ा दिया। लगभग छह-सात साल बाद 1980 में आगरा लौटकर आ गये। तब से यहीं संजय प्लेस में आंखों उन्होंने क्लीनिक खोल लिया था।
कई देशों में कांफ्रेंस में हिस्सा लिया
डा. आर बी सक्सेना बताते हैं कि उन्होंने अपने चिकित्सक के कार्यकाल में कई देशों में जाकर कांफ्रेेंस में हिस्सा लिया। जिनमें ईरान के अलावा अमेरिका, जापान, जर्मनी, सिंगापुर, मलेशिया , फ्रांस आदि देश शामिल हैं।
लाखों लोगों की आंखों के आपरेशन किये
बुजुर्ग चिकित्सक बताते हैं कि उन्होंने देश-विदेश में लाखों लोगों की आंखों के आपरेशन किये। एक-एक दिन में 70-80 नये मरीज देखे। वर्तमान में वे साकेत कालोनी में रहते हैं। जहां उनकी धर्मपत्नी श्रीमती सुमन सक्सेना के अलावा बेटा डा. मनोज सक्सेना, पौत्र डा. हर्ष सक्सेना जो कि आई सर्जन हैं। पौत्र ने एम एस के अलावा नेशनल बोर्ड से डिप्लोमा किया है। प्रसाद नेत्र चिकित्सालय चलाते हैं। उनके पुत्र डा. मनोज सक्सेना योगानंद चिकित्सालय इंडस्ट्रियल एरिया, सिकंदरा में चलाते हैं। डा. सक्सेना बताते हैं कि पहले वे धर्मार्थ चिकित्सालय चलाते थे। जिसमें गुरुवार को निशुल्क मरीज देखते थे। लेकिन वहां गरीबों के वजाए कार वाले लोग आने लगे। तो फिर धर्मार्थ शब्द हटाना पड़ा।
तीसरी पीढ़ी में नेत्र रोग विशेषज्ञ बनवाने वाले आगरा के पहले चिकित्सक
डा. आर बी सक्सेना इस समय आगरा के ऐसे पहले नेत्र रोग विशेषज्ञ हैं, जिनकी तीसरी पीढ़ी भी नेत्र रोग विशेषज्ञ है। वर्तमान में वे प्रैक्टिस तो नहीं करते लेकिन पौत्र डा. हर्ष सक्सेना के साथ बैठ जाते हैं। जिससे कि उनको सलाह मशविरा देते रहें। उन्होंने कहा कि दूसरी पीढ़ी तक नेत्र रोग चिशेषज्ञ देने वाले तो की चिकित्सक हैं। लेकिन लगातार तीन पीढ़ी तक पहुंचने वाले आगरा में शायद ही कोई होंगे।
एकलव्य स्टेडियम जाना नहीं भूलते
विगत कई वर्षों से उन्होंने मरीज देखना बंद कर दिया है लेकिन आईएमए की बैठक में जरूर जाते हैं। इसके साथ ही प्रतिदिन अपने पुत्र डा. मनोज सक्सेना के साथ कार में बैठकर एकलव्य स्टेडियम जाते हैं। वहां थोड़ा घूम लेते हैं। हालांकि वे किसी से बात नहीं करते हैं लेकिन कहते हैं कि मैं यहां सब देखता रहता हूं। शायद ही कोई दिन ऐसा जाता है कि वे स्टेडियम नहीं जाएं।
नेत्र चिकित्सा के उपकरण महंगे
वे बताते हैं कि पहले तो आंखों के आपरेशन की मशीनें बहुत कम पैसों में आती थीं। लेकिन अब बहुत महंगी मशीनों से मरीजों के आपरेशन करने पड़ते हैं। जिससे चिकित्सकों के खर्च भी बढ़ गये हैं। उन्होंने कहा कि आगरा में ऐसा शायद ही कोई नेत्र रोग विशेषज्ञ होगा, जो उनसे नहीं मिला हो। सबसे अधिक महत्वपूर्ण बात यह है कि वे 87 साल की आयु में भी चश्मा नहीं पहनते। पूछने पर बताया कि पढ़ने के लिए भी जरूरत पड़ने पर ही वे चश्मा लगाते हैं।