इन्दौर । मर्यादा पुरुषोत्तम श्री राम के पूर्वज मांधाता के वंशजों की गौरवमयी मौजूदगी में कोली/कोरी समाज की वीरांगना झलकारी बाई की स्मृति को चिरस्थाई बनाने के लिए अखिल भारतीय वीरांगना झलकारी महासंघ द्वारा आयोजित झलकारी महोत्सव के तहत माई मंगेशकर सभागृह में झांसी की झलकारी नाट्य मंच एवं वीरांगना झलकारी अलंकरण समारोह से एक बार फिर कोली समाज की समाज व राष्ट्र के प्रति अपनी प्रतिबद्धता का परिचय ही नहीं दिया गया, बल्कि इतिहास में कोली समाज की उपेक्षा के खिलाफ भी सशक्त आवाज उठाई गयी।
झलकारी महोत्सव के तहत भगवान श्री राम के पूर्वज अयोध्या सम्राट राजा मांधाता के वंशज एवं औंकारेश्वर ज्यार्तिलिंग न्यास के मुख्य ट्रस्टी श्रीमंत राव देवेन्द्रसिंह एवं अखिल भारतीय कोली समाज के नवनिर्वाचित राष्ट्रीय अध्यक्ष विरेन्द्र कश्यप एवं वीरांगना झलकारी बाई के वंशज हृदेश वर्मा जतारिया के आतिथ्य में आयोजित झलकारी नाट्य मंचन एवं झलकारी अलंकरण समारोह में कोली/कोरी समाज की 11 उत्कृष्ठ समाजसेवी महिलाओं को अलंकरण से अलंकृत किया गया। वहीं समाज के विकास में उल्लेखनीय सेवाओं के लिए पांच समाजसेवी पुरुषों को कोली रत्न की उपाधि से नवाजा गया। इसके पूर्व मंच पर अभिनव कला समाज के सौजन्य से झांसी की झलकारी नाट्क मंचन “प्रयास उडी” के कलाकारों द्वारा प्रस्तृत किया गया। कार्यक्रम की अध्यक्षता अखिल भारतीय वीरांगना झलकारी महोत्सव समिति के राष्ट्रीय अध्यक्ष प्रकाश महावर कोली ने की।
इस अवसर पर अखिल भारतीय कोली समाज “महिला विंग की राष्ट्रीय अध्यक्ष अजमेर नगर पालिका की नेता प्रतिपक्ष सुश्री द्रोपती कोली, पूर्व राष्ट्रीय अध्यक्ष एवं पूर्व सांसद सत्यनारायण पंवार राष्ट्रीय कार्यवाहक अध्यक्ष एवं हाथरस के पूर्व विधायक हरिशंकर माहौर, राष्ट्रीय महासचिव डी. पी. शंखवार, राष्ट्रीय सचिव सुनिल कछवाय, महामंडलेश्वर स्वामी ब्रम्हानंद जी महाराज, संतश्री राधादेवी, राजस्थान प्रदेश के अध्यक्ष नाथूलाल कोली मौजूद थे। इस अवसर पर राजा मांधाता के वंशज श्रीमंत राव देवेन्द्रसिंह ने कहा कि कोली समाज का इतिहास सबसे श्रेष्ट व गौरवशाली रहा है। लेकिन यह विडम्बना रही कि कोली समाज के स्वर्णिम इतिहास को जानबूझ कर इतिहास के पन्नों से वंचित रखने का प्रयास किया। अखिल भारतीय कोली समाज के राष्ट्रीय अध्यक्ष विरेन्द्र कश्यप ने कहा कि मैं हिमाचल की उस सीट के जनप्रतिनिधि के रूप में दो बार चुना गया, जहां से देश की आजादी के बाद से आज तक जितने भी सांसद चुने गये वे सभी कोली समाज के ही रहे हैं। यह सत्य है कि हजारों वर्ष की हमारे पूर्वजों के त्याग और बलिदान को आजादी के 78 वर्षों में वह सम्मान नहीं मिल पाया जिसके हम हकदार है। 1857 के स्वतंत्रता आन्दोलन में वीरांगना झलकारी बाई के शौर्य, साहस, पराक्रम एवं वीरता को भी दफन करने का प्रयास किया। लेकिन समाज के सामाजिक संगठनों खास कर देवी अहिल्याबाई की पावन तपोभूमि इन्दौर में अखिल भारतीय वीरांगना झलकारी महासंघ विगत 28 साल से झलकारी बाई की स्मृति को चिरस्थाई बनाने रखने में लिए महासंघ के राष्ट्रीय अध्यक्ष प्रकाश महावर और उनकी पूरी टीम का सार्थक प्रयास कर रही है, यह सराहनीय है। कार्यक्रम का संचालन अखिल भारतीय वीरांगना झलकारी महासंघ के राष्ट्रीय महासचिव दिनेश वर्मा दानिश एवं सुश्री जया सेट्टी ने एवं अंत में आभार राष्ट्रीय कोषाध्यक्ष प्रहलाद टाटवाल ने माना।